3 नवंबर 2025

कबीर की वाणी से गूंज उठा आगरा – क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी में सुधीर नारायण का कार्यक्रम ढाई आखर प्रेम का

 

आगरा की ऐतिहासिक क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी में आयोजित कार्यक्रम ‘ढाई आखर प्रेम का’ प्रेम, भाईचारा और सामाजिक सौहार्द की अनूठी मिसाल बन गया। इस विशेष आयोजन में प्रख्यात ग़ज़ल गायक सुधीर नारायण ने संत कबीर दास की रचनाओं को सस्वर प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

सुधीर नारायण ने कहा कि अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा, पाखंड और ढोंग के खिलाफ जो संदेश कबीर दास ने 15वीं सदी में दिया था, वह आज और भी प्रासंगिक हो गया है। हाल ही में अमेरिका सहित कई देशों का दौरा कर लौटे श्री नारायण ने बताया कि अब विदेशों में भी कबीर के दोहे और सबदों को समझने की जिज्ञासा बढ़ी है।

 कबीर की वाणी का वैश्विक असर

कार्यक्रम के दौरान सुधीर नारायण ने कहा कि इंटरनेट के माध्यम से कबीर दास का दर्शन अब विश्व के हर कोने तक पहुँच चुका है। उन्होंने बताया कि आज दुनिया भर में लोग कबीर की साखी, सबद और रमैनी को न केवल जानते हैं बल्कि उन्हें गहराई से समझते भी हैं। उन्होंने आगरा में अपने पहले कार्यक्रम के रूप में इस मंच को चुनने पर खुशी जताई और कहा कि क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी का

31 अक्टूबर 2025

आगरा से अंतरिक्ष तक: एक अनोखी जीवनगाथा

आगरा के साहसी व्यक्तित्व: अरविंदर “अरवी” सिंह बहाल की कहानी

अरविंदर “अरवी” सिंह बहाल, आगरा के एक ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व हैं जिन्होंने साहस, लगन और जिज्ञासा के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने अपने जीवन में न केवल व्यवसाय में सफलता हासिल की, बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों की यात्रा कर अपनी सीमाओं को चुनौती दी। उनके जीवन की कहानी यह दिखाती है कि उम्र और परिस्थितियाँ कभी भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकतीं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

अरवी बहाल का जन्म आगरा में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यहीं पूरी की और युवावस्था में नई ऊँचाइयों को छूने की ख्वाहिश लेकर विदेश की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने शिक्षा के साथ‑साथ अपने साहसिक गुणों को भी विकसित किया और विभिन्न प्रकार के अनुभवों से अपने जीवन को समृद्ध किया।

व्यवसाय में सफलता

अरवी बहाल ने अपने व्यवसायिक जीवन की शुरुआत में कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन अपने दूरदर्शिता और मेहनत से उन्होंने सफल व्यवसायी के रूप में नाम कमाया। उन्होंने रियल एस्टेट और निवेश के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाया और अपने व्यवसाय को अंतरराष्ट्रीय स्तर

26 अक्टूबर 2025

आगरा: पत्रकारिता की विरासत और बदलता मीडिया परिदृश्य

 

आगरा, ताजमहल की नगरी आगरा न केवल स्थापत्य और पर्यटन के लिए जानी जाती है, बल्कि यह उत्तर भारत की पत्रकारिता का भी एक ऐतिहासिक केंद्र रहा है। आज जब डिजिटल मीडिया तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, तब भी आगरा की मिट्टी में छपी स्याही की खुशबू इतिहास की गवाही देती है।

1850 के दशक में जब देश में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का उदय हो रहा था, तब आगरा से निकलने वाले छोटे छोटे समाचार पत्र लोगों के विचारों को दिशा दे रहे थे। इतिहासकारों के अनुसार, आगरा से निकलने वाला लोकमित्र और सैनिक जैसे प्रकाशन ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठाने वाले शुरुआती पत्रों में गिने जाते हैं। उस दौर में, छपाई की तकनीक सीमित थी, फिर भी स्थानीय मुद्रक और संपादक अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर सच्चाई जनता तक पहुँचाते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन के समय आगरा के पत्रकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। सैनिक पत्र ने 1930 के दशक में स्वदेशी आंदोलन और गांधीवादी विचारों का प्रचार करते हुए, स्थानीय जनजागरण

25 अक्टूबर 2025

रसगुल्ला हाउस – आगरा की मिठास की धरोहर

 

सन् 1958, आगरा शहर में तेज़ रफ्तार ज़िंदगी के बीच भी, कुछ जगहें थीं जो समय के साथ अपने पुराने रंग और खुशबू को बचाए रखती थीं। ऐसी ही एक जगह थी रसगुल्ला हाउस, जो सदर बाजार और आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के पास खुला। उस समय यहाँ आना मतलब था – घर जैसी मिठास का अनुभव करना।

पढ़ाई से लौटते छात्र, रेलवे स्टेशन पर उतरते यात्री, और आस-पड़ोस के लोग – सभी यहां रुकते, ताज़ा रसगुल्लों और जलेबियों की मिठास में खुद को खो देते। पुराने लकड़ी के टेबल, दीवारों पर झूलते पुराने फोटोग्राफ, और ताज़ा बेक्ड मिठाइयों की खुशबू – हर चीज़ में एक पुराना समय बसता था।

रसगुल्ला हाउस सिर्फ मिठाई का ठिकाना नहीं था। यह लोगों के लिए मिलने-जुलने की जगह, बचपन की यादों की बस्ती और छोटे-छोटे जीवन की खुशियों का घर था। यहाँ की रसगुल्लों की नरमी

24 अक्टूबर 2025

आगरा की शिक्षा धरोहर: दो सौ साल पुराने कॉलेजों की गौरवगाथा

 

आगरा, जहाँ ताजमहल की दीवारें प्रेम की कहानियाँ सुनाती हैं, वहीं इन गलियों में शिक्षा की पुरानी हवाएँ अब भी बहती हैं। यहाँ के पुराने कॉलेजों की घंटियाँ, पुराने बरगद के पेड़ों के नीचे होती बहसें, और होस्टल की पुरानी दीवारों पर लिखे नाम आज भी एक दौर की याद दिलाते हैं जब ज्ञान को केवल डिग्री नहीं, जीवन का संस्कार माना जाता था।

आगरा की शिक्षा-परंपरा का इतिहास इन तीन महान संस्थानों से जुड़ा है ,आगरा कॉलेज, राजा बलवंत सिंह कॉलेज, और सेंट जॉन्स कॉलेज। तीनों ही संस्थान समय की धूल में भी चमकते रहे, जैसे पुराने सिक्के जिन पर अब भी इतिहास की छाप बाकी है।

 आगरा कॉलेज  जहाँ ज्ञान की लौ दो सौ वर्षों से जल रही है

सन् 1823 जब भारत में शिक्षा की अवधारणा ही आकार ले रही थी, तब पंडित गंगाधर शास्त्री ने आगरा कॉलेज की नींव रखी। अंग्रेज़ी शासन के उस दौर में यह कॉलेज उच्च शिक्षा का दीपक बन गया। कभी इसके गलियारों में चौधरी चरण सिंह जैसे छात्रों की आवाज़ गूँजती थी, तो कभी साहित्यकारों की कलम यहाँ से निकलती थी। पुरानी इमारतें, घड़ी-टावर की टिक-टिक, और पुस्तकालय की लकड़ी की अलमारियाँ सब कुछ आज भी मानो बीते वक्त से बातें करते हैं। आगरा कॉलेज सिर्फ़ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि

20 अक्टूबर 2025

कश्मीरी मुस्लिम कुम्हार जो दीवाली के लिए मिट्टी के दीये बनाते हैं

 

श्रीनगर के निशात क्षेत्र में स्थित एक मुस्लिम कुम्हार परिवार, उमर कुम्हार और उनके पिता अब्दुल सलाम कुम्हार, दीवाली के लिए मिट्टी के दीये बनाते हैं। 2023 में, उन्होंने 20,000 दीयों का ऑर्डर पूरा किया, जिनकी कीमत प्रति दीया ₹10 थी, जिससे उन्हें लगभग ₹2,00,000 की आय हुई। इन दीयों की मांग जम्मू, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों से थी।

अब्दुल सलाम कुम्हार ने बताया कि दीवाली उनके परिवार के लिए खुशी और एकता का पर्व है। वे अपने बनाए गए दीयों के माध्यम से विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच प्रेम और भाईचारे