10 सितंबर 2024

अब दुनिया भर के देशों में भी दाल काफी लोकप्रिय हो गई है

 

दाल खाने का एक लंबा इतिहास
भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना, सूरीनाम, जमैका, मॉरीशस, फिजी और भारत में दाल खाने  का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है। किन्तु अब दाल यूरोप और अमेरिका तथा अन्य देशों में भी काफी लोकप्रिय हो गई है। पुरातात्विक साक्ष्यों पर नज़र डालने से  पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में दालें एक  भोजन का मुख्य आकर्षण होती थीं, जो लगभग 3300 ईसा पूर्व की हैं।

ऋग्वेद जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भी मसूर की दाल का उल्लेख देखा जा सकता  है, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व के हैं। इसे बनाना भी काफी  आसान है, यह प्रोटीन, कार्ब और फाइबर से भरपूर है।  यह भारत में शाकाहारियों  एक मुख्य भोजन है।  दाल  अधिकांश घरों में खाना आम है क्योंकि भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। दाल का उपयोग कई पारंपरिक व्यंजनों जैसे दाल मखनी, सांभर, रसम, पायसम आदि में किया जाता है।

 दालों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। दाल को शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर परोसा जाता है। इसे धार्मिक त्योहारों में 'प्रसाद' के रूप में भी परोसा जाता है।

8 सितंबर 2024

खजियार को "भारत का मिनी स्विट्जरलैंड" क्यों कहा जाता है ?

 

( खजियार भारत का मिनी स्विस )

( राजीव सक्सेना द्वारा ) क्या आपको पता है कि हिमाचल प्रदेश की चंबा घाटी में बसे  खजियार को  "भारत का मिनी स्विट्जरलैंड" कहा जाता है क्योंकि यह दुनिया के कुछ स्थानों में से एक है जो स्विट्जरलैंड से और वहाँ की स्थलाकृति से काफी मिलता जुलता है। यह जगह दुनिया की उन सीमित जगहों में से एक है जो स्विट्जरलैंड से उष्णकटिबंधीय समानता रखता  है। 1992 में स्विस चांसलर आधिकारिक तौर पर खज्जियार को मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से से नामित किया था। उन्होंने यहाँ एक पैदल ट्रैकिंग चिन्ह का भी उद्घाटन किया था जो खज्जियार और  बर्न ( स्विस राजधानी ) के बीच की दूरी को दर्शाता है। बर्न स्थित  स्विस संसद के बगीचे में एक  खजियार पत्थर भी रखा गया था।

 खजियार, एक सुरम्य गांव, हिमाचल प्रदेश की चंबा घाटी में बसा है और एक प्राकृतिक स्वर्ग है। खजियार घने अल्पाइन जंगलों और खूबसूरत हरे घास के मैदानों से घिरा हुआ है, साथ ही यहाँ बीचों बीच  एक झील भी है।  इस प्रकार खजियार में तीन पारिस्थितिक तंत्रों का एक दुर्लभ संयोजन दिखाई देता  है, झीलें, चरागाह और जंगल। यहाँ  से हिमालय की राजसी धौलाधार पर्वत श्रृंखला के दृश्य भी देखे जा सकते हैं।


1 सितंबर 2024

लक्षद्वीप वर्तमान में पर्यटकों के बीच मालदीव से बहुत पीछे नहीं

 

भारत का सबसे छोटा भूभाग, लक्षद्वीप वर्तमान में पर्यटकों के बीच अवश्य देखे जाने वाले गंतव्य के रूप में उभर रहा है। लोगों का मानना ​​है कि यह भूभाग सुंदरता के मामले में मालदीव से बहुत पीछे नहीं है।

दुनिया के सबसे शानदार उष्णकटिबंधीय द्वीप प्रणालियों में से एक, लक्षद्वीप केरल तट से 220-440 किलोमीटर दूर स्थित है। ये द्वीप पारिस्थितिकी और संस्कृति की एक अनमोल विरासत प्रदान करते हैं।

द्वीपों की अनूठी विशेषता इसकी प्रवाल भित्तियाँ हैं, जो इसे वापस आने के लिए एक प्राचीन अवकाश स्थल बनाती हैं। 4200 वर्ग किलोमीटर का लैगून, जो समुद्री संपदा से समृद्ध है, 32 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 36 द्वीपों पर फैला हुआ है। लक्षद्वीप में पानी के नीचे का दृश्य बहुरंगी और लुभावना है। लैगून तैराकी, विंड-सर्फिंग, डाइविंग, स्नोर्कलिंग और कयाकिंग जैसे जल खेलों के लिए उत्कृष्ट क्षमता प्रदान करता है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि लक्षद्वीप तेजी से भारत का अपनी तरह का एक साहसिक खेल – प्रकृति पर्यटन स्थल बन रहा है। प्रत्येक द्वीप बर्फ से सफ़ेद मूंगा रेत से घिरा हुआ है। क्रिस्टल साफ़ पानी और प्रचुर समुद्री जीवन इन द्वीपों की सुंदरता को बढ़ाते हैं। नीले समुद्र के विशाल विस्तार के सामने, द्वीप पन्ना की तरह दिखते हैं। एक तरफ विशाल उथला शांत लैगून है जिसमें समुद्री जीवित मूंगा पत्थरों से बनी दीवार जैसी चट्टानें बाहरी समुद्र की आने वाली लहरों को रोकती हैं। द्वीप मुख्य भूमि से जहाज, हेलीकॉप्टर, इंडियन एयरलाइंस, किंगफिशर एयरलाइंस और मशीनीकृत नौकायन लकड़ी के जहाजों द्वारा जुड़े हुए हैं। सभी द्वीपों में पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विस्तृत बुनियादी ढाँचा मौजूद है।

31 अगस्त 2024

'इमरजेंसी' भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय

 --राष्ट्रीय युवा संसद में सांसद मनोज तिवारी, मीनाक्षी लेखी सहित कईदिग्गज बने

युवा ससद को संबोधित करते हुए सांसद मनोज तिवारी
,मंचस्थों में है,पूर्व केन्द्री मंत्री मीलाक्षी लेखी।
आगरा: युवा वाहिनी के तत्वावधन में आयोजित राष्ट्रीय युवा संसद में 1975 को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा लगाई गई इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया गया ।
आयोजन में सहभागिता करते हुए बनस्थली विद्यापीठ के विधि संकाय की और से सहभागिता करते हुए युवा सांसद

  सुश्री लवली उपाध्याय ने कहा है कि व्यापक परिवेश में संविधान सभा के द्वारा ‘भारतीय संविधान’ तैयार किया गया था,लेकिन इमरजेंसी लगाकर इसके मौलिक स्वरूप प्रभावित करना एक दुर्भाग्य पूर्ण

28 अगस्त 2024

ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है

 

( अविंद्रा त्रिवेदी द्वारा विशेष ) मेजर ध्यानचंद को याद करके खेल प्रेमियों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनका  जन्म 29 अगस्त सन्‌ 1905 ई. को इलाहाबाद मे हुआ था। वो एक राजपूत परिवार में जन्मे थे  और बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में सन् 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भरती हो गए।

 जब 'फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट' में भरती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी स्वंय भी प्रेमी और खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे देखते ही देखते वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए। सन्‌ 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए।                             

सन्‌ 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन्‌ 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। जब द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हुआ तो सन्‌ 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।

ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में

सांस्कृतिक पहचान संरक्षित करने लिए उ प्र के 8 रेलवे स्टेशनों के नाम बदले

 

उत्तर प्रदेश के आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदल दिए गए हैं। अकबरगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर मां अहोरवा भवानी धाम कर दिया गया है।  जिन आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदले गए हैं उनमें फुरसतगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'तपेश्वरनाथ धाम' कर दिया गया है। कासिमपुर हाल्ट का नाम अब 'जायस सिटी' होगा। अकबरगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर मां अहोरवा भवानी धाम कर दिया गया है। वहीं अमेठी  नाम अब 'गुरु गोरखनाथ धाम' होगा ।  इस सम्बन्ध  उत्तर रेलवे की ओर से अधिसूचना जारी कर दी गई है। 

 आइए जानते हैं कौन से हैं वो रेलवे स्टेशन। गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद भारतीय रेलवे की ओर से यह आदेश जारी किया गया। इस आदेश अनुसार  आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदले गए हैं उनमें फुरसतगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'तपेश्वरनाथ धाम' कर दिया गया है। कासिमपुर हाल्ट का नाम अब 'जायस सिटी' होगा। जायस रेलवे स्टेशन का नाम 'गुरु गोरखनाथ धाम' मिसरौली का नाम 'मां कालिकन धाम' रखा जाएगा। निहालगढ़ का नाम 'महाराजा बिजली पासी' रखा जाएगा। वारिसगंज का नाम 'अमर शहीद भाले सुल्तान' और अकबरगंज का नाम 'मां अहोरवा भवानी धाम' होगा.