1950 का दशक आगरा के लिए केवल ताज महल या लाल किला ही नहीं, बल्कि शहर की सड़कों पर जिंदगी के छोटे‑छोटे दृश्य भी उतने ही जीवंत थे। उस समय बड़े‑बड़े फॉर्मेट कैमरे, ट्राइपॉड और फिल्म रोल्स वाले फोटोग्राफर शहर के माहौल को अपने लेंस में कैद करने की कोशिश करते थे।
स्टूडियो से सड़क तक
उस समय आगरा में कुछ प्रसिद्ध फोटोग्राफ़ी स्टूडियो थे, जैसे Priya Lall & Sons Photo Studio, जो 1878 में स्थापित हुआ था। यहाँ मुख्यतः पोर्ट्रेट और परिवारिक फोटो खींचे जाते थे। लेकिन कुछ फोटोग्राफ़र ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने बड़े कैमरे लेकर सड़क की जीवंत झलक को कैद करने की ठानी।
इन फोटोग्राफ़रों के लिए चुनौती थी,बड़े कैमरों को ले जाना कठिन था।हर तस्वीर के लिए फिल्म रोल सीमित था। शहर की हलचल और लोग अक्सर कैमरे के प्रति आशंकित रहते थे।
सड़क‑फोटोग्राफ़ी के दृश्य
1950 के आगरा में आप रिक्शा, बैलगाड़ी, हाथ में सामान लिए दुकानदार, बच्चों का खेल और बाजार की हलचल देखते। बड़े कैमरे के साथ फोटोग्राफ़र इन क्षणों को सावधानी से फ्रेम करते।
एक आम दृश्य: ताज महल की सफेदी के पीछे, सड़क पर बैठे रिक्शा चालक
या फुटपाथ पर बैठा बच्चा, जिसकी आँखों में उम्मीद और मासूमियत झलक रही होती। ऐसे क्षणों को कैद करना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि संवेदनशील दृष्टि की भी आवश्यकता होती थी।कैमरे और तकनीक
उस समय फोटोग्राफ़रों के पास मुख्यतः कोडेक्स, रॉलबैक या बड़े फॉर्मेट कैमर होते थे। प्रत्येक शॉट सावधानी से लिया जाता। फिल्म की सीमित संख्या और कैमरे की सेटिंग्स के कारण तस्वीरें एक‑एक करके खींची जाती थीं। इस प्रक्रिया में धैर्य और अवलोकन क्षमता सबसे अहम होती थी।
सड़क‑फोटोग्राफी की महत्ता
आज के डिजिटल युग में हम ताज महल और आगरा के पर्यटक स्थलों की अनगिनत तस्वीरें देखते हैं। लेकिन 1950 के दशक में सड़क‑फोटोग्राफ़र ने आगरा की असली आत्मा को कैद किया जीवन के छोटे‑छोटे क्षण, लोगों की मुस्कान, थकान, संघर्ष और साधारण दिनचर्या।
उन तस्वीरों में केवल इमारतें नहीं, बल्कि शहर के दिल की धड़कन भी नजर आती थी। और यही कारण है कि पुरानी फिल्म रोल्स और स्टूडियो आर्काइव आज भी इतिहास के लिए अनमोल हैं।
