24 अक्टूबर 2025

आगरा की शिक्षा धरोहर: दो सौ साल पुराने कॉलेजों की गौरवगाथा

 

आगरा, जहाँ ताजमहल की दीवारें प्रेम की कहानियाँ सुनाती हैं, वहीं इन गलियों में शिक्षा की पुरानी हवाएँ अब भी बहती हैं। यहाँ के पुराने कॉलेजों की घंटियाँ, पुराने बरगद के पेड़ों के नीचे होती बहसें, और होस्टल की पुरानी दीवारों पर लिखे नाम आज भी एक दौर की याद दिलाते हैं जब ज्ञान को केवल डिग्री नहीं, जीवन का संस्कार माना जाता था।

आगरा की शिक्षा-परंपरा का इतिहास इन तीन महान संस्थानों से जुड़ा है ,आगरा कॉलेज, राजा बलवंत सिंह कॉलेज, और सेंट जॉन्स कॉलेज। तीनों ही संस्थान समय की धूल में भी चमकते रहे, जैसे पुराने सिक्के जिन पर अब भी इतिहास की छाप बाकी है।

 आगरा कॉलेज  जहाँ ज्ञान की लौ दो सौ वर्षों से जल रही है

सन् 1823 जब भारत में शिक्षा की अवधारणा ही आकार ले रही थी, तब पंडित गंगाधर शास्त्री ने आगरा कॉलेज की नींव रखी। अंग्रेज़ी शासन के उस दौर में यह कॉलेज उच्च शिक्षा का दीपक बन गया। कभी इसके गलियारों में चौधरी चरण सिंह जैसे छात्रों की आवाज़ गूँजती थी, तो कभी साहित्यकारों की कलम यहाँ से निकलती थी। पुरानी इमारतें, घड़ी-टावर की टिक-टिक, और पुस्तकालय की लकड़ी की अलमारियाँ सब कुछ आज भी मानो बीते वक्त से बातें करते हैं। आगरा कॉलेज सिर्फ़ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि

एक जीवित स्मारक है जो बताता है कि ज्ञान की जड़ें कितनी गहरी हो सकती हैं।

 राजा बलवंत सिंह कॉलेज — जहाँ खेतों और किताबों ने साथ-साथ सांस ली

सन् 1885 में राजा बलवंत सिंह ने जब इस कॉलेज की स्थापना की, तब उन्होंने शिक्षा को जमीन से जोड़ने का सपना देखा। कृषि, विज्ञान और जीवन — सब कुछ यहाँ एक ही सूत्र में बंधे थे।

यह वही कॉलेज है जिसने पहली बार कृषि शिक्षा को गंभीरता से लिया। खेतों की मिट्टी और प्रयोगशालाओं की गंध यहाँ एक-सी लगती थी। बिचपुरी के शांत माहौल में आज भी पुराने होस्टल की दीवारें युवाओं की हँसी, गीतों और सपनों की कहानियाँ कहती हैं।

 सेंट जॉन्स कॉलेज लाल पत्थरों में बसा एक अंग्रेज़ी-भारतीय सपना

1850 में स्थापित सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा का वह खूबसूरत अध्याय है जहाँ पूर्व और पश्चिम ने मिलकर शिक्षा का नया सूर्योदय किया। चर्च मिशनरी सोसाइटी द्वारा निर्मित यह कॉलेज अपनी लाल पत्थरों की इमारतों और विशाल लॉन के लिए जाना जाता है।

यहाँ शिक्षा केवल विषय नहीं थी, बल्कि संस्कृति का संगम थी। इन दीवारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक विज्ञान तक की यात्रा देखी है। आज भी जब कॉलेज का घंटा बजता है, तो लगता है जैसे समय ठहर गया हो और बीता हुआ युग मुस्कुरा रहा हो।