ताजमहल से आगे: आगरा की अनदेखी सांस्कृतिक धरोहर
एक गली, एक अफ़साना
छत्ता बाजार की एक गली है, जहां कहा जाता है कि शाहजहाँ के कारीगर ताजमहल के काम से लौटने के बाद वहीं चाय पीने बैठते थे। एक बूढ़ी अम्मा अपने घर के बाहर बैठकर रोज़ वही किस्सा सुनाती थी , जो उनके दादा ने उन्हें सुनाया था। यह जो पत्थर की चौखट है ना बेटा,वो कहती हैं, "यहाँ कभी एक कारीगर बैठा करता था, जिसे बादशाह ने अपनी अंगूठी इनाम में दी थी।"आज वो अंगूठी तो नहीं है, पर चौखट वैसी ही है — टूटी-फूटी, पर गवाह।
स्वाद जो कभी नहीं बदला
पुरानी गलियों में घुसते ही एक महक आपके दिल को छूती हैकिसी नुक्कड़ पर बृजवासी हलवाई 80 साल से पेठा बेच रहा है। वही नुस्खा, वही मिठास।पास ही एक दुकान है, जो पांचवीं पीढ़ी चला रही है — कचौरी और जलेबी के लिए सुबह से लाइन लग जाती है। एक बार एक बुज़ुर्ग दुकानदार ने कहा था, "बेटा, हमारे यहां स्वाद में मसाले नहीं, इतिहास होता है।" कहा जाता है कि किसी ज़माने में जब अकबर का काफ़िला शहर से गुज़रता था, तो इन गलियों में फूल बरसाए जाते थे। कोई ठोस सबूत नहीं है, मगर कुछ गलियों में अभी भी लोग "फूल वाली गली" कहते हैं।