7 जनवरी 2022

आगरा के जमदाग्नि ऋषि परिसर में 'विचित्र वीर हनुमान मन्दिर ' लाईब्रेरी हुई शुरू

 -- धार्मिक के अलावा सामाजिक साहित्य भी होगा उपलब्ध

लाइब्रेरी के उद्घाटन अवसर पर उपस्‍थित , मंहत पुजारी
तथा शहर के प्रबुद्धजन। फोटो:असलम सलीमी


आगरा:जमदाग्नि ऋषि मन्दिर परिसर में स्थित विचित्र चीर हनुमान मन्दिर प्रांगण  में ब्रह्मण समाज के द्वारा एक ग्रांथालय की स्थापना की गयी है।  गुरुवार  7जनवरी 2022 को हुई इस नयी शुरूआत में शैव,वैश्णव,सनातन धर्म से संबधित साहित्य के अलावा महाकवि सूरदा,तुलसीदस तथा कबीर से जुडा साहित्य भी होगा। संस्कृत के महान ज्ञाता मैक्समुलर के अलावा कइ अन्य अनुवाद और व्याख्यायें यहां अध्ययन कर्त्ताओं के लिये मॉजूद रहेंगे।

ब्राह्मणों का यह प्रयास सकल हिन्दू समाज के लिये लक्ष्य कर किया गया है।फिलहाल ग्रंथालय (लाइब्रेरी ) में अध्ययन और सामूहिक डिस्कशन

के पच्चीस व्यक्तियों के बैठने योग राऊंड टेविल तथा कुर्सियां उपलब्ध है1 इनके साहित्य संकलन करने के लिये अलग से  एक पुस्तकालय कक्ष है।जिसमें अध्ययन करने की भी व्यवस्था है।

ब्राह्मण प्रोफेशनल एसोसिएशन,अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा, महिला प्रकोष्ठ जिला आगरा एवं अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा  आदि ने 'संयुक्त ब्राह्मण समिति',के तत्वावधान में , 12 नवम्बर 2021 को  होटल पी एल पैलेस आगरा में हुए हिन्दुओं के आस्था स्थल रुनकता संबध मे उन कार्यों को लेकर चर्चा हुई थी,जो जनसामान्य के द्वारा अपेक्षित किये जाते रहे हैं।

जमदाग्‍नि ऋषि मंदिर के संत श्री शिवानन्द जी महाराज का अनिल शर्मा 
  एवं डा पंकज नागयिच ने ब्राह्मण समाज की ओर से किया सम्‍मान ।
 

पौराणिक माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि मंदिर के संत श्री शिवानन्द जी महाराज  और गोवेर्धन से पधारे स्वामी श्री रामप्रपन्नाचार्य जी महाराज और श्री राजनारायण आचार्य जी महाराज ने आशीर्वाद दिया और मार्ग दर्शन किया. ग्रामीणों ने ब्राहमण समात के लाब्रेरी शुरू करने के कार्य का स्वागत किया।   लोकार्पण में  इतिहासकार डॉ आर सी शर्मा, , डॉ पंकज नगायच, राजेश पंडित जी , श्री नारायण सिंह, अनिल शर्मा, वरिष्ट  पार्षद श्री शिरोमणि सिंह, श्री राजीव सक्सेना  पत्रिकार, श्री असलम सलीमी वरिष्ट फोटोग्राफर,डॉ महेश शर्मा,श्री अवधेश उपाध्याय,मास्टर महावीर सिंह, श्री मनमोहन सिंह, श्री नरोत्तम शर्मा,श्री बी डी शर्मा, श्री बबन, श्री अमरपाल, श्री रवि आदि उपस्थित रहे.! 

संयुक्त ब्रह्मण समिति के सचिव ने कहा है कि आम लोगों को प्रयास उपयुक्त लगा है, हमारी कोशिश होगी कि धर्म के अलावा ज्ञान अर्जन संबधित अन्य उपयोगी साहित्य भी यहां उपलब्ध हो। यह स्थान धार्मिक,सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्ष का केन्द्र के रूप में पहचाना जाये।

रुनकता  

 यमुना तटीय गांव ' रुनकता' । यह   मथुरा-आगरा मार्ग पर मथुरा से 35 कि मी तथा आगरा से लगभग 18 कि मी दूरी  पर स्थित है। इस ग्राम का प्राचीन नाम 'रेणुका' क्षेत्र भी कहा जाता है। किंवदंती है कि यहाँ महर्षि जमदग्नि का आश्रम स्थित था। रुनकता ग्राम में एक ऊंचे टीले पर जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका का मंदिर है और अनवरत रूप से वहां पूजा अर्चना का सिलसिला कलयुग में भी यथावत चल रहा है। रेणुका सतयुग में जन्मीं थीं और त्रेतायुग तक रहीं।

रेणुका 

रेणुका राजा प्रसेनजित ( राजा रेणु ) की पुत्री एवं महर्षि जमदग्नि पत्नी थीं । वृतांतों के अनुसार रेणुका माता प्रतिदिन नदी से पानी भरकर लाया करती थी। इसके बाद जमदग्नि ऋषि मुनि नदी में स्नान  करने के लिए जाते थे। स्नान हो जाने के बाद शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे।  एक दिन माता रेणुका को पानी लाते समय देर हो गई। तभी जमदग्नि ऋषि को यह आभास हुआ कि उनका ब्राह्मणत्व समाप्त हो गया है।

रुनकता और रेणुका धाम के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त  क्रम में ही एक अन्य उल्लेख के अनुसार उल्लेख  हैं,नियती के विधान अनुसार एक बार  रेणुका राजा नदी में स्नान के दौरान चित्ररथ पर मुग्ध हो गयी। उसके आश्रम पहुँचने पर मुनि ( महर्षि जमदग्नि )को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गयी। उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों  'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' से अपनी मां को मार देने को कहा किंतु मातृहंता दोष से अभिशप्त होने के स्थान पर उन्होंने  पिता के कोप से ग्रसित होकर जीवन जीना बेहतर समझा।इस पर ऋषि ने चारों पुत्रों को जड़ बुद्ध होने का शाप दिया। जबकि पांचवें पुत्र   परशुराम ने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मान आज्ञा का पालन किया।

जब जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर माँगने के लिए कहा। तो इस पर परशुराम ने पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा और फिर अपने भाईयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम जी को उनके मांगे वर दिये और साथ ही उन्हें अमर होने का वरदान भी दिया।

रेणुका का जीवन एक तपस्वनी के रूप में ही बीता और जीवन पर्यंत अपने पति के साथ लोक कल्याण के काम में लगी रहीं। जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय थी,जिसे कि

सहस्त्रार्जुन ने बलपूर्वक छीन लिया था। बाद में सहस्त्रार्जुन को युद्ध में परुश राम जी ने  मार डाला। बाद में सहस्त्रार्जुन  के पुत्रों ने प्रतिशोध वश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं।

चैत्र मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को  'माता रेणुका चतुर्दशी' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को माता रेणुका प्राकट्य दिवस भी माना जाता है।इस दिवस पर ब्राह्मण समाज ही नहीं हिन्दू धर्मानुयायी देश भर में स्थानीय परंपरा के अनुरूप माता रेणुका की पूजा करते हैं

ऋषि जमदग्नि

मूल रूप से इस स्थान की पहचान मर्हिषी जन्मदाग्नि के तपस्थल और आश्रम के रूप में रही है, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा इनकी गणना सप्तऋषियों(विष्णु पुराण व सातवें मन्वन्तर के अनुसार सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।) में होती है। रेणुका उनकी पत्नी थीं जबकि  'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' और 'परशुराम' आदि उनके पांच पुत्र थे।परषुराम इनमें सबसे छोटे और अत्यधिक पराकृमी थे।इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करने वाली गाय थी जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपनी राजधानी माहिष्मती ले गया। परशुराम को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने कार्तवीर्य को मार दिया ओर कामधेनु वापस आश्रम में ले आए।

मर्हिषी परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि थे मान्यताओं के अनुसार के यहाँ जन्मे थे। जो विष्णु के छठा अवतार हैं । पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये।

भारत में ऋषि परंपरा के तपस्वी किसी एक राज्य या स्थान पर बंध कर नहीं रहते थे,जिस स्थान पर वह ठहरते थे या तपस्या करते थे,वह लोगों में विशेष आस्था स्थल के रूप में स्वीकार कर लिया जाता था। यही कारण है कि एक एक ऋषि के नाम से देश में कई कई स्थान प्रचारित हैं।