-- शराब बन्दी के प्रखर योद्धा थे गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी
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यादगार मुलाकात : शारीरिक दुर्बलता के कारण स्व चिम्मन लाल जैन ने कार में बैठे बैठे ही बात की। |
( राजीव सक्सेना ) आगरा:एक थे चिम्मन लाल जैन, बहुत ही सीधी सपाट बात करने के लिये आगरा भर में उनकी एक खास पहचान थी। शराब बन्दी के खिलाफ हमेशा आबाज उठाते रहते थे। उनकी सक्रियता महात्मा गांधी के वालैंटियर के रूप में शुरू हुई थी । गांधी जी के बाद आचार्य बिनोबा भावे उनके आदरणीय नेता रहे और सर्वोदय आंदोलन से ताजिंदगी जुडे रहे। लेकिन जब बिनोबाजी ने 'इमरजैंसी' का समर्थन किया तो वह लोकतंत्र सेनानी बन बैठे । शायद जनपद ही नहीं प्रदेश भर में उन गिने चुने गैर राजनीतिज्ञों मे से थे जो स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही लोकतंत्र सेनानी भी रहे । सोशल इंजीनियरिग की जानकारी के धनी होने के कारण उनकी कई मामलों में अपनी अेपीनियन थी ,इन्ही में 'घरेलू हिसा' का कारण वह शराब की राज्य संरक्षण माना जाना भी था।
--सरकारों से उम्मीद नहीं
मेरा उनसे लगातार कयी दशकों तक संवाद रहा। आगरा के समाजिक ढांचे में जातिय व्यवस्था और शराब बन्दी मुख्य चर्चा बिन्दू रहा करते थे। मेरा मत रहता था कि जातियां समय के साथ स्वयं ही प्रासंगिकता खो देगी जबकि वह इससे सहमत नहीं थे। वहीं दूसरे मुददे शराब बन्दी को लेकर बेहद चितित रहते थे। वह कहते थे कि नील की खेती बन्द हो गयी,अफीम की कोठियों पर भी जन विरोध के डर से अंग्रेजों को तालेे लगाने पड गये । किन्तु आजादी के बाद भी शराब की दूकानें चलती रहेंगी।हमारी अपनी सरकारें भला अपने माफिक व्यवस्था से क्यों मुंह मोडेंगी । राजनीतिज्ञ देश
के विकास और खजाने की जरूरत को शराब के धंधे से प्राप्त होने वाले राजस्व से जोड चुके हैं। आसान धन और धंधे को भला कौन छोडने तैयार होगा । उनका मानना था कि सामाजिक कार्यकर्त्तओं को ही शराब नकारने का माहौल बनाना होगा। एक ऐसा माहौल बनाना होगा जो कि दारू के पैसे से दर्द के इतजाम को लेकर अक्सर इंतजामिया दिया करते हैं।
-- और आ गया 'योद्धा ' का अंतिम पडाव
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शराब बन्दी के मुददे पर लोक स्वर की ओर से राजीव गुप्ता ने किया सम्मानित।वहीं पुलिस उन्हेें जब तब लेती रही हिरासत में। |
हमारी बात चलती रही और सरकारों पर सरकारें बदलती रहीं किन्तु शराब बन्दी करवाने की दिशा में कोयी कदम उठाया जाना तो दूर , खपत बढाने के नये नये फार्मूले आते रहे। लेकिन चिम्मन लाल जी ने अपनी बात सत्याग्रह के माध्यम से सरकार और जनता के सामने रखना लगातार जारी रखा। 97साल की उम्र केअंतिम पडाव 103 साल(लगभग) की उम्र तक उनकी सक्रियता कुछ ज्यादा रही। ठेकों पर पिकेटिग, सैमीनार आयोजन,धरना,पैदल मार्च जो भी सहज स्वीकार्य संभव माध्यम थे अपनी बात को उठाने के लिये प्रयोग करते रहे।कल की सी ही तो बात लगती है जब कि अंतिम विदायी के बाद फरवरी के अंतिम सप्ताह में पूरा शहर महावीर दिगम्बर जैन इंटर कॉलेज में जुटा था कृतज्ञता अभिव्यक्ति को। शराब बन्दी के मुददे पर लोक स्वर की ओर से श्री राजीव गुप्ता ने किया सम्मानित।वहीं ऐसे कम ही मौके होंगे जबकि शराब के ठेकों को बन्द करवाने की मांग उठाने पर शायद ही कभी पुलिस उन्हें हिरासत में लेने से चूकी हो। घरों में सुख शांति के माहौल को खराब करने वाली शराब बिक्री के खिलाफ आवाज उठाने से कैसे बाज आ सकता हूं।
-- सोशल मीडिया से मिला राष्ट्रव्यापी संवाद अवसर
सोशल मीडिया प्लेटफार्म के इस्तेमाल की जानकारी रखने वाले श्री अनिल शर्मा ने तो ' चिम्मन लाल अगेंस्ट ड्रग एडिक्शन ' के नाम से उनके आंदेलनों को खूब वायरल राष्ट्रीय बनाने का भरपूर प्रयास किया।सेंटपीटर्स कॉलेज में एक अंतर्राज्यीय शराब विरोधी सम्मेलन तक करवा डाला। सहज विश्वास न हो किन्तु इस सम्मेलन के बाद स्व. चिम्मन लाल जैन को पंजाब और हरियाणा से नशा विरोधी एक्टिविस्टों के आर्गनाइजेशनों और शिक्षण संस्थानों से इतने बुलावे आये जिनमे से आधों मे भी उनका पहुंच पाना नामुमकिन था।स्वास्थ्य और उम्र का इच्छाशक्ति पर हावी होने का दौर शुरू हो जाना भी उन्हें इसके लिये इजाजत नहीं दे रहा था।
आगरा में श्री के सी जैन और लोक स्वर के श्री राजीव गुप्ता ने भी उनके कार्यों को बेहद सराह। उनको सम्मान देने के लिये कई बार बेलनगंज स्थित निवास तक पर गये। चाय सेवन तक स्वयं को सीमित रखने के साथ स्व चिम्मन लाल जी के अभियान से नजदीकी रहने से बरबस ही जब भी शराब बन्दी या खुलने को लेकर जब भी सरकारें निर्णय करती हैं तब अनायास ही वह यानि चिम्मन लाल जी प्रासंगिक हो जाते हैं। 'बाबा ' के आत्मीय रिश्ते की ठसक से पूरे शहर मे जहां भी जाते लोग उनसे मिलने खुद ब खुद चले आते। जीवन पर्यंत वह उन परिवरों से संपर्क करने जरूर पहुंचते रहे जहां शराब घरेलू का कारण होने की जानकारी उन्हे मिलती।