--गोमती रिवर फ्रंट पर प्राईवेट कंपनी से वसूलयावी करवाने की तैयारी
उ प्र में नदी तट पर लगेगा टैक्स, गोमती रिवर फ्रंट से होगी शुरूआत। |
(राजीव सक्सेना) आगरा: यमुना रिवर फ्रंट की मांग लेकर सक्रिय जनों के लिये यह महत्वपूर्ण है कि उ प्र शासन नदी तट का सौदर्यीकरण करने के साथ ही उस पर आमजनता से टिकट लगाकर चसूली करने का इरादा रखता है। इसकी शुरूआत लखनऊ में गोमती नदी से होने जा रही है।लखनऊ विकास प्राधिकरण गोमती के तट पर ने आने वालों से दस रूपया वसूली शुरू करेगा । उ प्र शासन को प्राधिकरण ने इसके लिये एक प्रस्ताव भेज दिया है। जो रूप रेख तैयार की गयी है उसके अनुसार यह वसूली प्राईवेट कंपनी से टोल रोडों और पब्लिक पार्कों की तर्ज पर करवायी जायेगी। एल डी ए के उद्यान अधिकारी को उम्मीद है कि चालू वित्तीय
वर्ष में इसके लागू हो जाने की संभावना है।प्रो वी कॉटली |
ज्यो की सटीक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है किन्तु उ प्र में यह अपने किस्म का पहला प्रयोग होगा। वर्तमान में प्रदेश में जहां जहां रिवर फ्रंट जैसे प्रोजेक्ट संचालित हैं उनमें मथुरा, आगरा , इलहाबाद और वाराणसी मुख्य हैं। चम्बल नदी और लखीमपुर खीरी में शारदा नदी के कुकतरनिया घाट के कुछ छेत्र पर वर्तमान में टिकट व्यवस्थ है किन्तु वहां नदी तट के नाम पर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के नाम पर इसकी वसूली की जाती है। सबसे महत्वपूण यह तथ्य है कि नदियों के ब्यूटिफिकेशन प्रोजेक्ट पर विदेशी फंडिंग से ही धन की व्यवस्था की गयी है और जो जिन डी पी आर को दिखाकर पैसा मांगा जाता रहा है उनमें कर्ज अदायगी के लिये जनता से टैकस वसूली की बात किसी भी रूप में समावेशित नहीं है।
वैसे देश का सबसे पुराना प्लान्ड रिवर फ्रंट गंगा नदी पर हरिद्वार में हरकी पौढी पर बना हुआ है ,जो तमाम विरोध के बावजूद ईस्टइंडिया कंपनी के इंजीनियर पी वी कॉटली ने हरिद्वार हर की पौढी के रूप में विकसित करडाला।
आगरा के जमींदार का योगदान
इससे भी जयादा महत्वपूर्ण यह है कि हरिद्वार में बने रजवाडाई घाटों को नहाने वालो के उपयोग मे बनाने का काम आगरा के ही एक जमींदार हरज्ञान सिंह कटारा ने 1938 में शुरू करवाया। किन्तु जो भी कार्य हुए अब तक प्रभावी है और जनता के द्वारा उपयोग मे लाये जा रहे हैं। नदी के ऋषिकेश से लेकर ज्वालापुर तक के किसी भी भाग पर जनता से कोई वसूली सरकार के द्वारा नहीं की जाती टिकट तो दूर की बात है।
आगरा के जमींदार का योगदान
इससे भी जयादा महत्वपूर्ण यह है कि हरिद्वार में बने रजवाडाई घाटों को नहाने वालो के उपयोग मे बनाने का काम आगरा के ही एक जमींदार हरज्ञान सिंह कटारा ने 1938 में शुरू करवाया। किन्तु जो भी कार्य हुए अब तक प्रभावी है और जनता के द्वारा उपयोग मे लाये जा रहे हैं। नदी के ऋषिकेश से लेकर ज्वालापुर तक के किसी भी भाग पर जनता से कोई वसूली सरकार के द्वारा नहीं की जाती टिकट तो दूर की बात है।