-- आगरा को जरूरत है हॉकी के फिक्रमंन्द एक ' सरदार दर्शन सिंह' की
राइट इन खोलन ज्यादा भाता था ,आगरा वालो के अपने स्टार सरदार दर्शन सिंह को। |
जयादातर स्टिक वर्क और स्टेमिने के बूते पर ही अपनी जगह बना पाते थे।अधिकांश वे हाकतक थे,जिनका अपना इतिहास था।
दरअसल
इस टीम के कर्त्ता धरता थे , सरदार दर्शन सिंह । इन्हीं की मेहनत और टीम के ब्रदर्स ने ध्यान चंद हॉकी टूर्नामेंट की शुरूआत की थी। सिंह साहब ही इस टूर्नामेंट की आयोजन समिति के सैकेट्री थे। उनका जुनून रहता था कि बढिया टीमें आये और जो भी आयें नेशनल और इंटरनेशनल टूर्नामेंटों में भग ले चुके खिलाडियों की मौजूदगी हो। सैंट जॉस कॉलेज की हाकी फील्ड से शुरू हुआ यह टूर्नामेंट आगरा कॉलेज का हॉकी ग्राऊंड में खूब पनपा और स्टेडियम पहुंच का गुम हो गया।हाकी पर खूब बतियाता था शहर
स्मृति चित्र: दादा ध्यान चन्द और
आगरा के स्टार सरदार दर्शन सिंह |
बीती सदी के आठवें दशक(1970-80) में टूर्नामेंट को राष्ट्रीय स्तर का आकर्षण युक्त आयोजन बनाने के लिये टूर्नामेंट में इनामी राशि 11 हजार रुपये रखी थी । जोकि विजेता टीम को दी गयी थी । इससे पहले हाकी टूर्नामेंट में इनामी राशि का कोई प्रचलन नहीं था ।
टूर्नामेंट का एक विशिष्ठ पक्ष था, दादा ध्यानचन्द का स्वयं महत्वपूर्ण अवसरों पर मौजूद होना। जब तक जीवत रहे वह इसे देखने लगातार आते रहे । उनके निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जानकी देवी भी आगरा आती रही थीं। उनको आयोजकों द्वारा सम्मानित किया जाता था । जब तक ध्यान चन्द जीवित रहे टूर्नामेंट के दौरान आगरा आने वाले हाकी के दिग्गजों के आने का एक कारण ताजमहल देखने के साथ ही हाकी के जादूगर दादा ध्यानचंद से उनकी मुलाकात सहजता के साथ हो जाना भी था। स्व. दर्शन सिंह के बेट भारतीय हाकी टीम के कप्तान रहे ओलंपियन जगवीर सिंह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उन दिनों मैं छोटा था । दादा ध्यानचंद मैच के समय मुझे अपने पास बैठा लेते थे । हालांकि इस दौरान उनका पूरा ध्यान मैच पर होता था, वे किसी से बात करना पसंद नहीं करते थे । उन दिनों देश के साथ ही पाकिस्तान, स्पेन आदि देशों की हाकी टीम भी आगरा आती थीं ।दर्शन सिंह और उनका ब्रदर्स क्लब
उदारमाना जीपी सेठ और राजेन्द डंग
ताजनगरी में इस अखिल भारतीय हाकी टूर्नामेंट की शुरूआत 1970 में हुई। आयोजन समिति के सचिव सरदार दर्शन सिंह के अलावा अध्यक्ष जीपी सेठ, डा. वाईआर ग्रोवर तथा ग्रांड होटल वाले राजेंद्र डंग संयुक्त सचिव होते थे । इस समिति द्वारा सबसे पहले सैंटजोंस कालेज के मैदान पर मेजर ध्यानचंद हाकी टूर्नामेंट की शुरूआत की। सैंटजोंस कालेज से यह टूर्नामेंट आगरा कालेज के मैदान पर कराया जाने लगा । इसके पश्चात सदर बाजार स्थित स्टेडियम में कराया जाने लगा ।
बिना हो हल्ले के ही पनपा 'स्पोर्ट टूरिज्म '
सत्तर और अस्सी के दशक में हाकी मैच देखने के लिए दर्शकों का हुजूम लग जाता था । 1975 के विश्वकप के बाद हाकी का क्रेज और ज्यादा बढ़ गया था । उन दिनों के जितने भी ओलंपियन हुआ करते थे, लगभग सभी अखिल भारतीय ध्यानचंद हाकी टूर्नामेंट में खेलने के लिए ताजनगरी जरूर आते थे। विदेशी टीमें भी जो नेहरू कप में खेलने आती थीं, वे ताजमहल देखने के बहाने आगरा आती थीं तो प्रदर्शनी मैच जरूर ताजनगरी में खेलती थीं ।
ऑलंपियन आगरा आने का मौका नहीं छोडते थे
जगबीर सिंह बताते हैं कि उन दिनों के ओलंपियनों में अजितपाल सिंह, हरचरण सिंह, शिवाजी पवार, वीरेंदर सिंह, मुखबैन संह, असलम शेर खान, दादा ध्यानचंद के सुपुत्र अशोक कुमार, अजित सिंह, बीपी गोविंदा, जानेमाने गोलकीपर अशोक दीवान, जफर इकबाल, एम के कौशिक, परगट सिंह, मो. शाहिद, आदि खेलने के लिए आगरा आते थे । देश की जानी मानी हाकी टीमें नार्दन रेलवे दिल्ली, बीएसएफ, इंडियन एयरलाइंस, एएससी जालंधर, कोर आफ सिगनल, सिख रेजीमेंट के अलावा कंबाइन यूनिवर्सिटी , इंडिया व्हाइट और इंडियाब्लू आदि टीमें आती थीं ।
लगभग दो दशक तक 1970 से 1990 तक ताजनगरी में खेले गये इस अखिल भारतीय की टूर्नामेंट में इंडियन एयरलाइंस, नार्दन रेलवे के अलावा वेस्टर्न रेलवे मुंबई की टीम सबसे ज्यादा बार विजेता बनी थीं । वेस्टर्न रेलवे की टीम में ओलंपियन बलवीर सिंह, गुरबख्श सिंह, पूरन सिंह आदि खेलते थे ।
पेठा और गोला शू होते थे गिफ्ट
खास बात यह थी कि 1970 के दशक में हाकी खेल में पैसे का प्रचलन नहीं था । इनाम में आगरा के गोला शूज और पेठा दिया जाता था । शूज भी दलजीत सिंह, हरविजय सिंह वाहिया , सिंह शूज, वासन शूज आदि द्वारा दान में दिये जाते थे। इन दिग्गज हाकी खिलाड़ियों को ताजमहल, फतेहपुरसीकरी आदि घुमाया जाता था ।
हींग की मंडी से खूब मिलता था सहयेग
हींग की मंडी का शू मार्केट सबसे बड़ा कांट्रीब्यूटर होता था। इस हाकी टूर्नामेंट से पूरा शहर जुड़ा होता था। उन दिनों अखबारों के मुख्यपृष्ठ पर हाकी मैच की खबर छपती थीं । दादा ध्यानचंद के जन्म दिवस पर उनके साथ ही आगरा में हाकी टूर्नामेंट कराने वाले सरदार दर्शन सिंह को लोग आज भी याद करते हैं कि उनके द्वारा इतना बड़ा टूर्नामेंट लगभग दो दशक तक आयोजित कराया गया । जगबीर सिंह बताते हैं कि उनके पिता की पढ़ाई आगरा में ही आगरा कालेज और सैंटजोंस कालेज में ही हुई थी। वे इंडियन क्लब सुभाष पार्क के मेंबर लंबे समय तक रहे ।
अब भीदरकार है एक टूर्नामेंट की
अब भी आगरा को दरकार है कि कोई हाकी प्रेमी आगरा में इसी तरह का बड़ा टूर्नामेंट करा सके । हालांकि अब इस तरह के टूर्नामेंट कराने के लिए बहुत अधिक पैसों की जरूरत होगी । सरदार दर्शन सिंह ने तत्कालीन खेल निदेशक उत्तर प्रदेश एवं बाह के मूल निवासी विजय सिंह चौहान से भी अनुरोध किया था कि सरकार की मदद से ध्यानचंद हाकी टूर्नामेंट को आगरा में जीवित किया जा सकता है । हालांकि स्थित अब भी जस की तस है।
भारत-पाक हाकी सीरीज का मैच भी था कभी
ओलंपियन जगबीर सिंह बताते हैं कि 1988 में भारत-पाकिस्तान हाकी सीरीज खेली गयी थी। जिसके मैच दिल्ली और ग्वालियर के अलावा एक मैच ताजनगरी में भी खेला गया था। जिसको देखने के लिए दर्शकों को हुजूम उमड़ा था । उस समय दस रुपये का टिकट लेकर भी हजारों की संख्या में लोग एकलव्य स्टेडियम पहुंचे थे।
दादा ध्यानचंद ग्रांड होटल में ठहरते थे
अपने नाम से आगरा में होने वाले हाकी टूर्नामेंट को देखने के लिए दादा ध्यानंद स्वयं आगरा आते थे। वे यहां सरदार दर्शन सिंह के सदर बाजार स्थित घर दिन बिताते थे लेकिन रात को ग्रांड होटल में चले जाते थे । आयोजन समिति के राजेंद्र डंग द्वारा उनके लिए रहने की व्यवस्था की जाती थी।