-- तथ्यात्मक जानकारी नहीं पहुंच पाने से लौटी है योजना: शलभ शर्मा
(चैंबर अध्यक्ष शलभ शर्मा) |
श्री शर्मा ने बताया कि सिंचाई विभाग के कैनाल सिस्टम की इस महत्वपूर्ण जल संचय एवं उसे नियंत्रित करने वाली संरचना को पुनर्जीवित करने की बात जब भी की गई है, सिकंदरा राजवाह में पानी की कमी का मुद्दा उठाया गया है। जबकि वास्तविकता में भरपूर जल उपलब्धता है। जलाशय के लिए किसी अतिरिक्त जल आवंटन की जरूरत ही नहीं है। मानसून काल में ओवरफ्लो बहने वाली नहर के दो-तीन दिन का पानी ही जलाशय के लिए पर्याप्त है। इसके अलावा लोकल केचमेंट का पानी और जायद की फसल के दौरान नॉन रोस्टर पानी भी इस को जल से भरपूर रखने की जरूरत को पूरा कर देता है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय सरोवर (जोधपुर झाल)
सिकंदरा राजवाह से झाल में पहुंचता है,पानी |
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जैसे राष्ट्रीय नेता के गांव नगला चंद्रभान से संबंधित विकासखंड से संबंधित होने के साथ ही उनके इस सपने के अनुरूप है जो कि कभी जल किल्लत से जूझते अपने गांव के परिप्रेक्ष्य में संजोया था ,चेंबर अध्यक्ष के अनुसार जोधपुर झाल के संबंध में कुछ आधारहीन भ्रांतियां चल रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि योजना को लौटाए जाने संबंधी शासन के पत्र को नहीं देखा है फिर भी अमर उजाला समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार के अनुसार इस योजना को यह कहकर नकारा गया है कि जखीरा की जगह खुदाई नहीं की जा सकती। जो भ्रम आधारित है क्योंकि जखीरा मूल रूप से एक रिजर्वायर है जिसका जल भरण के लिए 1873 से उपयोग होता रहा है। जलाशयों और नेहरों की क्षमता की पुनर्स्थापना के लिए डिसिल्टिंग शासन की जलसंचय नीति और नदियों नहरों और जलाशयों की क्षमता पुर्नस्थापना अनुरूप कार्य है।
'जोधपुर झाल' जब पानी होता है,तभी पहुंचते हैं,परिदे। |
दरअसल जोधपुर झाल में 1873 से , आगरा कैनाल के, सिकंदरा राजवाह की क्षमता से अधिक पानी को संचित रखा जाता था। 1905 तक 'सिकंदरा राजवाह' आगरा कैनाल के जोधपुर गांव के टर्मिनल से शुरू होकर जीवनी मंडी वाटर वर्क्स से होकर यमुना नदी में समाहित होने वाला नौ वाहन चैनल ( navigation channel) था । चैंबर एवं आगरा के जलसंसाधनों के जानकारों का प्रयास रहा है कि आगरा केनाल से पोषित ' सिकन्दरा राजवाह' के कीठम एस्केप के डाउन में उस सरप्लस पानी के अलावा लोकल कैचमेंट एरिया के पानी को पुन:उसी प्रकार से संग्रहित किया जाये,जैसा कि चार दशकों से पूर्व तक किया जाता रहा था। कीठम में जलस्तर अब 18.5फुट ही बनाया रखा जा सकता है, मानसून में नहर में भरपूर पानी रहता है, इस लिये जोधपुर झाल को जलाशय में पुन: बदलने को किसी अतरिक्त जल आवंटन की जरूरत नहीं है।
चेंबर अध्यक्ष
शर्मा ने कहां के जोधपुर झाल जला से पंडित दीनदयाल सरोवर योजना एक सीमित खर्च की
योजना है योजना को क्रियान्वयन के लिए 1100 मीटर के मनरेगा योजना के तहत
बनाए गए बंधे एवं सिकंदरा राजवा के कीठम एस्केप से अछनेरा मार्ग की पुलिया तक के 2
किलोमीटर गांव का सुदृढ़ीकरण सदाचार से न्यूज़ गेट लगाया जाना है
ज्यादातर कार्य सिंचाई विभाग के रोटीन कार्य हैं सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शैलेश
गेट आधारित प्रबंधन से जलाशय का पानी जल किल्लत के जनों में यमुना नदी में भी
सिंचाई विभाग के जखीरा नाराज होकर पहुंचा नदी की डी ओ बी डी ओ की कमी और प्रदूषण
की अधिकता को नियंत्रित किया जा सकता है वैसे भी जोधपुर झाल सिंचाई विभाग की
स्थापना का महत्वपूर्ण भाग है और यहां बाकायदा सिंचाई विभाग की नहर कोठी है चार
बाबू और सिंह पाल आदि स्टाफ यहां नियुक्त रहता है आधा दर्जन से ज्यादा अनहरी
चैनलों के रेगुलेटर यहां यहीं से ऑपरेट होते हैं उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार
और उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्रालय की जल संचय और पुराने जलाशयों को पुनर्जीवित
करने की नीति के वृक्ष में जोधपुर झाल का पंडित दीनदयाल सरोवर के रूप में विकसित
किया जाना सर्वथा शासन की नीति के अनुरूप जल संरक्षण नीति का ही भाग है शासन ने इस
योजना को इस योजना की फाइल को 3 साल अंतराल के बाद वापस लौटा
दिया है लगता है कि योजना को लेकर तकनीकी रूप से रह गए कई तथ्यात्मक भ्रम ही इसका
कारण है
'अमर उजाला' में प्रकाशित समाचार के संबध में शर्मा ने कहा कि समाचार को
देखने से लगता है कि जलसंचय प्रधान इस योजना को 'पयर्टन
प्रधान योजना' के रूप में अनावश्यक बडे बजट की
अपेक्षा के साथ शासन के पास भेजा गया,जो कि इसके निरस्त होने का एक अन्य कारण और माना जा सकता है।
कीठम झील से
भी कहीं ज्यादा पुराना है जोधपुर झाल :- चेंबर अध्यक्ष ने आगे बताया कि
जोधपुर झाल की डल झील से भी कहीं पुराना 1803 से अस्तित्व
में रहा जला से है विभिन्न कारणों से यह अपने अस्तित्व समाप्ति की स्थिति में जा
पहुंचा है अब इसकी स्थिति में सुधार की आवश्यकता एवं सम्यक जरूरत है दीनदयाल सरोवर
योजना एक जल संरक्षण योजना है जो कि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार
की उस नीति के अनुरूप है जिसके तहत एक एक बूंद पानी को बचाने की अपेक्षा की गई है
प्रदेश सरकार की नीति के तहत भी पानी को बचाना विभागीय और सामूहिक दायित्व मारा
गया है उन्होंने कहा कि वह इसे प्रशासन की समक्ष ले जाने का प्रयास करेंगे 16
करोड़ घन मीटर का जला से बनाए जाने की संभावनाओं को मुख्यमंत्री जी
और उनके सिंचाई मंत्री अनदेखा कर सकेंगे
चार सैल्यूस
गेट ही पर्याप्त होंगे :- चैम्बर अध्यक्ष ने कहा कि जोधपुर झाल जलाशय (पं
दीन दयाल सरोवर) योजना एक सीमित खर्च की योजना है, योजना को
क्रियान्वयन के लिये 1100मीटर के मनरेगा योजना के तहत बनाये
गये बंधे एवं सिकंदरा राजवाह के कीठम एस्केप से
अछनेरा मार्ग की पुलिय तक के दो कि मी भाग का सुध्रढीकरण तथा चार सैल्यूस गेट
लगाया जाना है। ज्यादातर कार्य सिंचाई विभाग के रुटीन कार्य हैं।
सबसे महत्वपूर्ण
यह है कि 'सैल्यूसे गेट' आधारित
प्रबंधन से जलाशय का पानी जल किल्लत के दिनों में
यमुना नदी में भी सिंचाई विभाग के 'जखीरा नाला' होकर पहुंचा नदी की डी ओ,बी डी ओ की कमी और प्रदूषण की अधिकता को नियंत्रित किया जा सकता है। वैसे भी जोधपुर झाल सिंचाई विभाग की अवस्थापना का महत्वपूर्ण भाग है और यहां वाकायदा सिंचाई विभाग की नहर कोठी है, तार बाबू और
सिंचपाल आदि स्टाफ यहां नियुक्त रहता है। आधा दर्जन से ज्यादा नहरी चैनलों के
रैग्युलेटर यहीं से आपरेट होते हैं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और उ प्र के
जलशक्ति मंत्रालय की जल संचय और पुराने जलाशयों को पुर्नजीवित करने की नीति के
परिप्रेक्ष्य में जोधपुर झाल का पं.दीन दयाल सरोवर के रूप में विकसित किया जाना
सर्वथा शासन की नीति के अनुरूप जलसंरक्षण नीति का ही
भाग है। शासन ने इस योजना की फायल को तीन साल अंतराल
के बाद वापस लौट दिया है, लगता है कि योजना को लेकर तकनीकि
रूप से रह गये कई तथ्यात्मक भ्रम ही इसका कारण हैं
कीठम झील से
भी कहीं पुराना है'जोधपुर झाल':- शर्मा ने कहा कि जोधपुर झाल ,कीठम झील से भी कहीं
पुराना 1873 से असतित्व में रहा जलाशय है,विभिन्न कारणों से यह अपने असत्व समाप्ति की स्थिति में ही जा पुहुंचा
है। अब इसकी स्थिति में सुधार अतिआवश्यक एवं सामायिक जरूरत है। उन्होंने कहा कि, दीन दायल सरोवर योजना 'एक जलसंरक्षण योजना है,जो कि भारत सरकार के जलशक्ति
मंत्रालय भारत सरकार की उस नीति के अनुरूप है ,जिसके तहत एक
एक बूंद पानी को बचाने की अपेक्षा की गयी है।प्रदेश सरकार की नीति के तहत भी पानी
को बचाना विभागीय और सामूहिक दायित्व माना गया है। उन्हों ने कहा कि वह इसे पुन:
शासन के समक्ष ले जाने का प्रयास करेंगे। 16करोड घन मीटर का
जलाशय बनाये जाने की संभावनाओं को मुख्य मंत्री जी और उनके सिंचाई मंत्री
अनदेखा कर सकेंगे।
डार्क और ग्रे
जोन का विस्तार थामना को जरूरी
श्री शर्मा ने
कहा कि फरह,गोकुल ,बलदेव विकास खंड के
सिस यमुना क्षेत्र (जनवद मथुरा) तथा अछनेरा व फतेहपुर सीकरी विकास खंड के गांवों सहित बिचपूरी विकापुरी विकास खंड के रवि खरीफ फसलों
को करनें वाले गांवों में जलस्तर लगातार नीचा गिरते जाने से कृषि और बागवानी
उपजों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पडा है। में तेजी
के साथ जलस्तर में गिरावट आरही है , रोस्टर पर सिचाई विभाग,
खेतों को समय से और जरूरत का पनी दे नहीं पाता । फलस्वरूप भूमिगत
जलदोहन एक जरूरत बनचुका । फल और अनाज मंडियों से
संबधित कारोबारियों तथा फूड प्रौसिसिंग यूनिटों को
संचालित करने वालों का मानना है कि भूमिगत जल का ट्यूब
वैल , सबमर्सेविल पंप लगाकर दोहन करने के अलावा करने के
अलावा खेती ,किसानी करने वालों के पास कोयी भी विकल्प नहीं
बचा है। नहरों की दुर्दशा ,जल बहाव क्षमता का निरंतर कम होते
जाना भूगर्भ जलदोहन में बढोत्तरी करने का एक अन्य कारण है। सिकंदरा राजवाह के तहत जोध्पुर झाल से नगला पदी, घटवासन
,बांईपुर, ककरैठा ,लश्करपुर आदि गांवों की खेती सिकंदरा राजवाह के पानी से ही पोषित थी
।वर्तमान में इनमें से कई गांव तो नगर सीमा का आवादी क्षेत्र ही बन चुके है।सिकंदरा राजवाह अब शास्त्रीपुरम ( NH 11 bypass road,
Site-C, Industrial Area) के पास तक सीमित किया जा चुका है।
टर्मिनल और
सिकंदरा राजवाह के बीच है 'जोधपुर झाल'
जोधपुर झाल
आगरा कैनाल के टर्मिनेशन point पर 151
एकड क्षेत्र में विस्तृत क्षेत्र है, 1873 में नेवीगेशन
कैनाल के रूप में ओखला से शुरू होने वाली आगरा नहर के
पानी का भंडारण किया जाता रहा,1905 में आगरा नहर के सिचाई
चैनल में तब्दील हो जाने के बाद जखीरा के पानी की महत्त और बढगयी। इसके पानी का
उपयोग आगरा के नहर से पोषित नहरी तंत्र की जरूरत को पूरा करने के लिये किया जाने
लगा। झाल के पानी की सबसे अधिक उपयोगिता अछनेरा,बल्देव के
सिस यमुना भाग, फरह, बिचपुरी आदि
आगरा-मथुरा विकास खंडों के भूजल रिचार्ज को लेकर हमेशा रही।
श्री शर्मा ने
कहा कि पूर्व में चैंबर सिचाई विभाग के सथ भूगर्भ जल की स्थिति के मुद्दे पर दिनांक 10/09/2021 को बैठक कर चुका है।जिसमें मुख्य मुद्दा था कि खेती, और
आगरा की हरियाली से सीधे तौर पर संबधित सिकंदरा राजवाह की मॉजूदा जीर्णशीर्ण स्थिति
को समाप्त करवा के क्षमता की पुनर्स्थापना पर चर्चा हुई। जिसमें चैंबर की ओर से
सैल्यूस गेट लगवाये जाने तथा राजवाह की क्षमता पुर्नस्थापना का सुझाव दिया गया।
चैंबर के द्वारा इस मीटिंग में सिचाई विभाग को योगदान भी प्रस्तावित किया गया।
मीटिंग में तय हुआ था कि शीघ्र ही सिचाई विभग चैंबर को पत्र लिखेगा। लेकिन अब तक
सिचाई विभाग की ओर से कोयी पत्र नहीं प्राप्त नहीं हुआ है।
श्री शर्मा ने
कहा कि आगरा के भूजल रिचार्ज और पर्यावरण से संबधित चूंकि यह महत्वपूर्ण मुद्दा
है तथा चैंबर के पास इस सम्बन्ध में तथ्यात्मक भी जानकारी है , अत: वह शीघ्र ही इस सम्बन्ध में प्रशासन और सिंचाई विभाग के अधिकारियों
को न केवल पत्र लिखेगे,अपितु इस मामले में मुलाकात भी
करेंगे।
दरअसल जोधपुर
झाल में 1873 से , आगरा कैनाल के, सिकंदरा राजवाह की क्षमता से
अधिक पानी को संचित रखा जाता था। 1905 तक 'सिकंदरा राजवाह' आगरा कैनाल के जोधपुर गांव के
टर्मिनल से शुरू होकर जीवनी मंडी वाटर वर्क्स से होकर यमुना नदी में समाहित होने
वाला नौ वाहन चैनल ( navigation channel)
था । चैंबर एवं आगरा के जलसंसाधनों के जानकारों का प्रयास रहा है कि
आगरा केनाल से पोषित ' सिकन्दरा राजवाह' के कीठम एस्केप के डाउन में उस सरप्लस पानी
के अलावा लोकल कैचमेंट एरिया के पानी को पुन:उसी
प्रकार से संग्रहित किया जाये,जैसा कि चार दशकों से पूर्व तक
किया जाता रहा था। कीठम में जलस्तर अब 18.5फुट ही बनाया रखा
जा सकता है, मानसून में नहर में भरपूर पानी रहता है, इस लिये जोधपुर झाल को जलाशय में पुन: बदलने को किसी अतरिक्त जल आवंटन की
जरूरत नहीं है।