9 सितंबर 2021

आत्‍महत्‍या को प्रेरित करने के कारणें में बढोत्तरी एक गंभीर सामाजिक चुनौती

-विशेषज्ञ  डॉ नवीन गुप्ता ने बताये आत्महत्या के कारण , सुझाये रोकने के टिप्स

आगरा आत्म हत्यायें समाज की एक एसी अप्रिय घटना होती हैजो परिवार,समाज या समुदाय पर दीर्घ कालीन  नकारात्मक असर डालती है। मौजूदा दौर कोविड-19के कारण जनित हुई उन घटनाओं का है, जिनके कारण लोगों ने अपनों को खोया, काम धंधे खोये फलस्वरूप जीवन यापन की स्थितियों पर पडे नकारात्मक असर से प्रभावित हुए।नेशनल चैंबर आफ इंडस्ट्रीज ऐंड कामर्स यू पी आगरा ने 9सितम्बर 2021 को विश्व आत्म हत्या निवारण दिवस की पूर्व संध्या पर  'आत्म हत्या 'विषयक एक वर्चुअल कांफ्रेंस का आयोजन कर इन अप्रिय घटनाओं को रोकने के कारणों और निवारण पर गहन

चर्चा की।

विषय वियोषज्ञ के रूप में इसे संबोधित करते हुए आत्महत्या के मुख्य कारणों एवं उन्हें रोकने के टिप्स देते हुए हिंदुस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड कंप्यूटर स्टडीज के निदेशक डॉ नवीन गुप्ता( बिहेवियरल साइंटिस्ट एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंट) ने कहा यह एक गंभीर समस्या है, इसकी विभीषिका का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि दुनियां में हर सैकिंड एक मौत आत्म हत्या के कारण ही होती है।

डा गुप्ता मानते हैं कि  कोरोना काल में लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है।  उद्योग व व्यापार में काफी नुकसान   उठाये हैं। इन वेदनाओं के कारन अब धीरे धीरे मानसिक प्रभाव दिखने लगेंगे।  इनके भयंकर परिणाम आने वाले हैं।  आत्मा हत्या का मूल कारण मानसिक मुद्दे ही होते है।  हाथों में जलन होना, पैरों में लड़खड़ाहट होना, किसी विशेष घटना के घटित होने की असंका या भय होना, दिल की धड़कन बढ़ना,  गले में कुछ खरास अनुभव करना, साँस लेने में कठिनाई होना, मरने का भय लगना  आदि सिम्टमों में से 5 - 6 दिखने लेंगे तो  इन्हें आत्म हत्या के लिये उन्मुख हाने का सूचक मानकर विशेषज्ञ लेने में संकोच नहीं करना चाहिये। डा. ने इस समस्या का निवारण या तो दवाइओं या फिर विचार परिवेर्तन से संभव है।  न्यूरोसिस का मुख्या कारण चिंता है इसका अनुबनसिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। दूसरा मानसिक रोगी होता है।  जिसमें रोगी अजीव /असामन्य गतिविधि करता है जैसे बार बार उसी बात को कहना, मुझे कोई समस्या नहीं है मेर घरवालों को है, तरह तरह के ख्वाव देखना, तरह तरह की आवाज सुनना, लोग पीछे पड़े हुए हैं ऐसा अनुभव करना आदि जिनका वास्तविकता से कोई सरोकार न हो।  ऐसे मरीज को मनोवैज्ञानिक के परमर्श की आवश्यकता होती है। 

नकारात्‍मकता से उबरें 'फील गुड'

उन्हों ने कहा कि न्यूरोटिक को ठीक तरह से हैंडल नहीं किया जा सकता।  यह मानसिक तनाव के कारन होता है।  यह एक रबर की तरह होता है।  ऐसे मरीजों में भावनातमक रेसिस्टेन्स बढ़ाने की जरूरत होती है।  उनको चार प्रकार के विचार आते हैं ( 1. जिन्हें किसी से साझा नहीं कर सकते २. तर्कहीन विचार 3. चॉपिंग स्टेटमेंट एवं 4. केमिकल लोचा।)  इनसे हार्मोन्स प्रभावित होते हैं।  ऐसे मरीजों को डोपामाइन ऑफ़ हार्मोन्स ऑफ़ एक्टिवनेस की जरुरत है। 

डा गुप्ता ने कहा कि  इसका उपचार केवल सकारात्मक मनोवृत्ति लाना है।  केला, हरी सब्जियां भी इसमें लाभकारी हैं।  प्यार, प्रोत्साहन, प्रसंसा, भय दूर करना, मसाज, धूप एवं 50 से ऊपर के लोगों व्यायाम कराकर जीवित जिंदगी का अनुभव करना आदि लाभकारी है।

इस अवसर पर चेंबर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण आत्महत्याओं के मामले काफी बढ़ रहे हैं। यह बहुत ही गंभीर एवं चिंता का विषय है। इसलिए इन कारणों को जानने एवं आत्महत्याओं से बचने  के तरीकों को जानना बहुत ही आवश्यक है। उन्हों ने उम्मीद जतायी कि बेबनॉर के दौरान आयी जानकारियां   घर परिवार एवं समाज तथा उद्यमियों व व्यापारियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी ऐसी हमारी अपेक्षा है और हमें विश्वास भी  है।

कार्यशाला का संचालन कर रहे श्री राजीव गुप्ता ने बताया कि परिवार व दोस्त हैं आत्महत्या के जिम्मेदार है।  कोविड- 19  के प्रकोप से आज दुनिया बहुत बड़ी त्रासदी का सामना कर रही हैं। आये दिन लोगों की जान ले रहा है।  वही दुनियाभर में एक ओर जहां विभिन्न तरह की बीमारियों से हर साल लाखों लोगों की जान जा रही हैं। वहीं, ऐसे लाखों लोग भी हैं जो किन्हीं वजहों से अपने खुद के जीवन के दुश्मन बन जाते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठते हैं।

श्री गुप्ता ने कहा कि आत्महत्या सुनने भर से ही दिलों दिमाग में अजीब सी बैचेनी होने लगती है। जब सुबह अखबार उठाते हैं तो आत्महत्या की खबरों से दो चार होना ही पड़ता है। पुरी दुनिया में 8  लाख लोग आत्महत्या जैसा कदम उठाकर समाज की संरचना और सोच  पर नए सिरे से बहस को जन्म देते हैं। भारत देश में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आत्महत्या के पीछे वे आत्मघाती व्यवहार के लिए कई व्यक्तिगत और सामाजिक कारकों जैसे तलाक, दहेज, प्रेम सम्बंध, वैवाहिक अड़चन, अनुचित गर्भधारण, विवाहेतर सम्बंध, घरेलू कलह, कर्ज, गरीबी, बेरोजगारी, गंभीर बीमारी ,आर्थिक कमजोरी , सरकारी विभागो की निष्कियता और शैक्षिक समस्या आदि प्रमुख कारण होते हैं।  उन्हों ने कहा कि महिलाओं के मुकाबले में पुरुषों की संख्या अधिक है आप इसे इस तरह से भी कह सकती हैं कि ईश्वर ने और प्रकृति ने नारी को वह क्षमता दी है जो बड़े से बड़े कष्ट को बड़े धैर्य से सामना करती है आज अगर नारी पुरुष को संबल दे तो मुझे लगता है कि पुरुष इस तरह के घातक कदम नही उठाएंगे | चैम्बर कोषाध्यक्ष गोपाल खण्डेवाल ने बेबनॉर के भागीदारों के प्रति अभार जाताया।

कार्यशाला में चेंबर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल उपाध्यक्ष अनिल अग्रवाल कोषाध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल और संचालक के रूप में  पूर्व अध्यक्ष राजीव गुप्ता,  के अलावा सर्वश्री सीताराम अग्रवाल, अनिल वर्मा तथा सदस्यों में संजीव गुप्ता, सतीश अग्रवाल, मयंक मित्तल, अखिलेश चंद्र, वीरेंद्र गुप्ता, रवीना चोकर, विश्रुति ट्रस्ट आदि ने मुख्य रूप से प्रतिभाग किया।