4 जनवरी 2021

यथार्त के पथ पर सौहाद्रता की मशाल लेकर ताजिंदगी खूब दौडे 'कृष्‍ण चन्‍द्र सहाय'


-- साइकिल,खादी का कुर्ता और सफेद धोती पहचान थी इस कर्मठ गांधीवादी की

आगरा । स्‍व कृष्‍ण चन्‍द्र सहाय को गुजरे एक साल हो गया। आगरा कोकर्मभूमि मानकर सक्रिय गांधीवादी कार्यकर्त्‍ता के रूप में खूब सक्रिय रहे। सही मायने में पिछले सदी के सातवें दशक के बाद के आगरा में मौजूद रहे प्रमुख गांधी वादी थे। हिंसा,गरीबी और शोषण संबधी सभी समस्‍याओं का हल अपनी अभिनभ क्षमता से गांधी दर्शन में ढूढने का प्रयास करते थे।गांधी शंतिप्रतिष्‍ठान के पूर्णकालीन कार्यकर्त्‍ता के रूप में उनका आगरा के जनजीवन में प्रवेश हुआ था और शारीरिक रूप से सक्षम बने रहने तक लगभग 50 साल तक अनवरत उनकी उपस्‍थिति का अहसास सबको होता रहा । 

सार्वजनिक जीवन की शुरूआत

स्‍व.सहाय के सार्वजनिजक जीवन की शुरूआत एक समाजवादी

चिंतने के साथ हुई। महान समाजवादी विचारक डा राम मनोहर लोहिया का रहा सानिध्‍य संभवत: इसकी वजह थी। आचार्य बिनोवा भावे के नेतृत्‍व में चले सर्वोदय आंदोलन में भी उनकी भागीदारी रही।प्रख्‍यात गांधीवादी श्री सुब्‍बाराव,अनीश्वरवादी देव समाज के स्वामी निर्भयानन्द जी तथा गांधीवादी नेता  करण भाई के साथ उनका संपर्क और अनेक अभियानों में सहकारिता रही। शांति,अहिंसा,सांप्रदायिक सदभावना को लेकर हमेशा उनकी संवेदनशीलता बनी रही।

गोवा मुक्‍ति आंदोलन

19जनवरी 2020 को आगरा ने स्‍व.सहाय की दी श्रद्धाजली, लताकुंंज में हुई इस सभा 
 की अध्यक्षता की सरोज गौरिहार ने संचालन किया हरीश सक्‍सेना चिमटी ने
 ।

 भारत 1947 में आजाद हो गया था ,लेकिन केवल अंग्रेजों से ।फ्रांसीसी जहां पांडेचेरी में जमे हुए थे,वहीं  गोवा ,दमन,द्वीव ,दादर,नागर,हवेली पुर्तगालियों के भारत भूमि में स्‍थित उपनिवेश थे। फ्रांसीसी कहते थे कि उसी दिन भारत से पूर्णशांति के साथ चले जायेंगे जैसे ही पुर्तगाली गोवा से विदा होंगे।लेकिन गोवा उपनिवेश पूरी मजबूती के साथ  लिस्‍बन से संचालित रहा। 

राजनयिक प्रयास असफल हो जाने के बाद 1961 में पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व जवाहर लाल नेहरू के दिये गये आदेश के तहत के तहत भारतीय सेना की कार्रवाही में 19दिसम्‍बर 1961 को गोवा आजाद हो गया था।गोवा के अंतिम गर्वनर जर्नरल  मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा वौसलो को भारत छोड कर पाकिस्‍तान के करांची में शरण लेनी पडी थी।

 पं.नेहरू के आदेश से हुई  यह सैनिक कार्रवाही वस्‍तुत समाजवादियों के उस आंदोलन के दबाव के कारण संभव हुई थी जो कि गोवा को भारत में विलय करने को लेकर चलाया गया था।स्‍व सहाय इस आंदोलन का सक्रिय हिस्‍सा थे,उन्‍होंने पूर्तगालियों की गोलिशें की बौछार का सामना भी किया था और कुछ समय पुर्तगाली पुलिस की मेहमानी का अनुभव लाभ भी किया था। । सहायजी के इस योगदान को उनके ग्रह राज्‍य उ प्र के शासन के द्वारा भले ही मान्‍यता नही दी जा सकी किन्‍तु जब वह आगरा से जयपुर रहने पहुंचे तो राजस्‍थान सरकार के द्वारा उनके आगमन को न केवल हाथो हाथ लिया गया अपितु 2014 में उनको स्‍वतंत्रता सेनानी का दर्जा प्रदान कर सम्‍मानित भी किया।आजादी की पचासवीं जायेती के अवसर पर गोवा आंदालन से जुडे पूर्व विधायक स्‍व बालोजी अग्रवाल के साथ स्‍व सहाय को गोवा सरकार के द्वारा राजकीय आति‍थि‍ के रूप में सपि‍रवार गोवा आमंत्रि‍त कि‍या  था।

चम्‍बल घाटी

सहाय जी का सबसे महत्‍वपूर्ण योगदान चम्‍बल घाटी शांति  मिशन के सक्रिय योजनाकार के रूप में रहा। दुर्दांत दस्‍युओं को समझाना और उनको समाज की मुख्‍यधारा से जोडनें के काम में जो आरंभिक सफालतायें मिलीं उनमें स्‍व सहाय की अहम भूमिका रहती थी। सन 1960, 1972 एवं 1976 में चम्बल घाटी के दस्युओं के आत्मसमर्पण अपने आप में बडी घटनाये थीं। दस्‍युओं के परिवारों को ढूढना ख्,उनमें विश्‍वास बनाना और संवाद शून्‍यता की स्‍थिति को खतम करवाना कम महत्‍व का नहीं था। सबसे अहम था खूनी रंजिश वाले मामलों में मध्‍यस्‍थता । कोर्ट से बाहर की भूमिका वाकई में बिनोवा जी के अनुयायियों के बूते का ही यह कार्य था।   ये मुकदमें वर्षों चले और बाद में पुनर्वास की ज्‍वलंत समस्‍या से रू ब रू होना पडा।मुझे खेडा राठौर सहित उन अनेक गांवों में जाने का मौका मिला जो चम्‍बल के बागियों के गांव के नाम से दशकों से अपनी पहचान रखते है। उस समय काफी अच्‍छा लगता जब कि गांव वालो से चर्चा के दौरान अनायास ही  सहायजी बीच में प्रासंगिक हो जाते।

स्‍व सहाय के यूं  तो अनेक बडे नेताओं से संपर्क में थे किन्‍तु समाजवादी नेता पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन से हमेशा निकटता बनी रही। यह बात अलग है कि कई मामलों पर दोनों फर्कमत रखते थे। 

बेहद सादगी और मिलनसार 

सहायजी का राधास्‍वामी मत के मतालंवियों

 श्री शशि शिरोमणी,हरीश चिमटी राजीव सक्‍सेना,डा वत्‍सला प्रभाकर,महंत योगेशपुरी
आमर उजाला के पूूूर्वप्रधान संपादक अशोोक अग्रवाल ने स्‍मृतियां ताजा कीं।
 के प्रमुख आस्‍था स्‍थल पीपलपीपल मंडी स्‍थित  'हुजूरी भवन'  हमेशा  आनाजाना बना रहा। धर्मगुरू डा अगम प्रसाद माथुर 'दादा जी महाराज' का हमेशा उनके प्रति उदारभाव रहा।जयपुर शिफ्ट हो जाने के बाद भी सहाय जी  जिनसे मिलते रहे उनमें गांधीवादी श्री शशि शिरोमणी, गोपालजी( बौद्धविहार चक्‍कीपाट)श्री हरीश सक्‍सेना 'चिमटी' मुख्‍य थे। अमर उजाला

 से उनके निकट के संबन्‍ध रहे ।

  एक पत्रकार के रूप में आगरा के लोकजीवन की गहनता से जानकारी रखने वाले अमर उजाला ग्रुप के पूर्व प्रधान संपादक श्री अशोक अग्रवाल उनकी सादगी के बेहद कायल थे।एक बार सहाय जी के बारे में विचार व्‍यक्‍त करते हुए उन्‍होंने कहा था कि ' जब लोग कम्‍प्‍यूटर पर लिखने लगे तब भी सहाय जी ने पैन से ही लिखना जारी रखा। साइकिल से शहर को नापने के शौकीन सहाय जी को अक्‍सर प्रेसों तक पहुंचने मे देर हो जाया करती थी किन्‍तु उनकी हैंडराइटिंग में लिखे प्रेस नोट में काफी कुछ ऐसा होता था जो अक्‍सर अखबार की सुर्खियों में स्‍थान पा जाता था।'अशोक जी ने कहा कि खादी की धोती और आधी आस्‍तीन का कुर्ता धारण करने वाली साइकिल पर भ्रमण करने वाली वे मिसाल थी जो अब यादें बनकर रह गयी है।

गब्‍बरा डाकू सम्‍बन्‍धी एक रिपोर्ट के                                                                                                                  सिलिसले में भिंड जाना हुआ

दरअसल शोले फिल्‍म के गब्‍बर का किरदार  एक असली दस्‍यू गब्‍बरा  पर आधारित है।इस फिल्‍म के लेखक सलीम खान (सलीम अब्‍दुल राशिद खान) ने बचपन में डाकुओं के बारे में अपने पिता सलीम राशिद खान से काफी कुछ सुना था। जो उस समय पुलिस में थे।इन्‍हीं डकैतों में उस समय का चर्चित गब्‍बरा भी था। गब्‍बरा  दुर्दांत बारदातों को करने वाला भिंड के डांग गाँव का था।दुर्दांत बारदातों के चलते उसे समाप्‍त करने की जिम्‍मेदारी भिंड मे डी एस पी के रूप में तैनात अफसर तैनात  त अधिकारी राजेंद्र प्रसाद मोदी के कंधों पर आयी उन्‍होंने उसे मुढभेड में मार गिराया।यह फिल्‍म खूब हिट हुई थी।पत्रकारिता के दौरान जब इस सम्‍बन्‍ध में सुना तो मेरा विचार ओरीजनल 'गब्‍बरा' पर लिखने का हुआ।

अचानक स्‍व सहाय जी से चर्चा हुई बातचीत में उन्‍होंने कहा कि भिंड में पुलिस विभाग के कई उनके परिचित हैं।पर चल कर पता लग सकेगा ।दो तीन दिन बाद ही बस से भिंड पुलिस मुख्‍यालय जा पहुंचे।वहां एक एस आई उनके परिचित निकल आये । काफी जतन कर उन्‍होने कई पुराने रिकार्ड दिखाये।वाटसैप का जमाना तब था नहीं ,बस नोटिग करता रहा था काफी देर तक। अब तो खैर गब्‍बरा और फिल्‍मी डाकू गब्‍बर सिह के बारे में काफी कुछ पब्‍लिश्‍ड हो चुका है।तत्‍कालीन आई जी पुलिस   के एफ रुस्तमजी की डायरी ' 'द ब्रिटिश, द बैंडिट्स एंड द बॉर्डरमैन.' किताब के रूप में सामने आ चुकी है। 

शहीद स्‍मारक पर टिकट का विरोध

शहीद स्‍मारकसंजय प्‍लेस पर टिकट लगने का विरोध स्‍व साय ने किया ,इसके लिये वह कई दिन तक अनशन पर बैठे थे। दरअसल आगरा विकास प्राधिकरण के कुछ अफसर यहां टिकट लगाना चाहते थे जबकि हम लोगों को यह कतई पसंद नहीं आ रहा था। सहाय सहाब ने इसे एक दम गलत और अनैतिक करार दिया और अनशन पर बैठने की घोषणा करडाली। कई दिन के बाद तब ही उठे जबकि खुद मंडलायुक्‍त ने टिकट न लगाने के वायदे के साथ  आकर अनशन समाप्‍त करने का अग्रह नहीं किया। समाजवादी विचारों वाले श्री हरीश सक्‍सेना चिमटी इस आंदोलन में  उनके हमकदम थे।

वीरप्‍पन से मिलने जा पहुंचे

सहाय जी ने एक दिन घर पर चर्चा के दौरान बताया कि वह बैंगलोर जा रहे हैं, वहां कोयी सम्‍मेलन है, मैं कुछ ही दिन पूर्व एक कार्यक्रम में बैंगलूर से भाग लेकर लौटा था। वीरप्‍पन का उस समय वहां काफी जोर था।बात चीत के दौरान अचानक वह बोले कि कर्नाटक तो जा ही रहा हूं, अगर संभव हो गया तो  वीरप्‍पन से मिलूंगा।

 मुझ पर जो कुछ भी वीरप्‍पन के संबध में जानकारियां थीं उन्‍हें दे दीं किन्‍तु साथ ही कहा वहां के जंगल और चम्‍बल के बीहडों में काफी फर्क है।'इस मुलाकात के बाद 'चम्‍बल शांति सत्‍याग्रही अब वीरप्‍पन से मिलेगा'' शीर्षक से एक खबर छाप कर बात आयी गयी हो गयी ।दरअसल मैं तो  भूल भी गया। तभी अचानक एक दिन सहाय जी का पत्र डॉक में मिला जिसमें उनके वीरप्‍पन से मिलने संबधी कन्‍नण और अंग्रेजी भाषा में छपने वाले स्‍थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों की कई कटिंगे भी थीं। उनके आधार पर मेने भी एक समाचार प्रकाशित कर डाला।

एक महीने के आंतराल के बाद सहाय वापस लौटे और बातचीत में उन्‍होंने बताया कि 'इसका एन्‍काऊंटर ' ही होगा । कर्नाटक के ब्‍यूरोक्रेट और पॉलीटीशियन उससे उपकृत हैं और वह इसे जीवित पकडना या समर्पण करवाना अपना खुद का ऐकाऊंटर मान रहे हैं।दुभाषिये की मदद से हुई द्विचरणीय इस वार्ता के दौरान वीरप्‍पन ने कहा कि आत्‍म समर्पध के बाद किसी छद्म घटना को एंकाऊंटर के नाम पर मार दिये जाने से वह असली एंकाऊटर का इंतजार करते रहना ज्‍यादा पसंद करेगा। इस सम्‍बन्‍ध में उन्‍होंने तमिल फिल्‍मों के एक बडे अदाकार से मुलाकात भी किन्‍तु  सकारात्‍मक कुछ नहीं हो सका। अंतत: हुआ भी वही,एन्‍काऊंटर के बाद जो किस्‍से मीडिया में आये वह सफेदपोशों को नागवार गुजरे। अब तो खैर वीरप्‍पन की बेटी खुद ही सक्रिय राजनीति में हैं।

अकबरपुर से जयपुर ब रास्‍ता आगरा

सहाय जी मूल रूप से कानपुर जिले के अकबरपुर गांव (अब अलग जिला) के रहने वाले थे।निधन से कुछ ही पूर्व वह आगरा आये थे लाताकुंज बालूगंज में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया था वहीं हमसब से उनकी वह आखिरी मुलाकात हुई थी। उनका आगरा-जयपुर आना जाना अनवरत बना रहा जिदगी का अंतिम दशक जयपुर में अपनी पुत्री श्रीमती मधु सहाय जोशी के परिवार के साथ बिताया  और 5जनवरी 2020 को  85वर्ष की उम्र में  जयपुर में जयपुर से ही परलोक गमन किया। उनकी इच्‍छा के अनुसार उनका शरीर जयपुर के सवाई मानसिह मैडीकल कॉलेज को दान कर दिया गया।