17 नवंबर 2020

श्‍वांसतंत्र की सुचारिता और शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बनाये रखना मुख्‍य चुनौती

-- अभी  ख्‍त्‍म नहीं हुआ संक्रमण 'बनाये रहें डिस्‍टैंस,लगाये रहें मास्‍क:डा सारास्‍वत
आगरा: कोरोना संक्रमण के पहले दो दौरों प्रकोप से जनजीवन अभी तक मुक्‍त नहीं हुआ था,कि तीसरा दौर शुरू हो चुका है।  बतौर सावधानी नागरिकों को अपने बचाव के लिये मास्‍क पहने और आपस में सोशल डिसटैंसिग के लिये पूरी सक्रियता बरतने के परामर्ष दिये जाना शुरू करने पडे हैं। हो गये हैं,  यह कहना है आगरा के प्रख्‍यात होम्‍येपैथिक चिकित्‍सक डा  प्रख्‍यात  कैलाश चन्‍द्र सारास्‍वत का। डा सारास्‍वत का कहना है कि वायु प्रदूषण के रूप में इस समय एक अतरिक्‍त चुनौती और है। दीपावली पर पटाके चलाने की परंपरा को प्रतीकात्‍मक 'ग्रीन क्रेकर ' कर काफी हद तक लोगों ने जागरूकता का परिचय दिया है किन्‍तु श्‍वांस संबधी मरीजों के लिये  सावधानी लगातार बरता जाना जरूरी है।
फरवरी 2021 तक मिलेगी राहत  
                                            फोटो: असलम सलीमी

डा सारास्‍वत ने कहा कि उम्‍मीद है कि अगले साल तक कोरोना को नियंत्रित करने के लिये वैक्‍सीन की प्रतीक्षा खत्‍म हो जायेगी। लेकिन जब तक वैक्‍सी की आधिकारिक उपलब्‍धता नहीं हो तब तक शारीरिक प्रतिरोधक क्षेमता ही संक्रमण से बचाव एक प्रभावी उपाये है। उन्‍होंने कहा कि संक्रमण की किसी भी संभावना महसूस होते ही चिकित्‍सक से जरूर परामर्ष लेलना चाहिये और अगर टैस्‍टिग के वह कहे तो इसे सर्वोच्‍च प्राथमिकता के साथ करवाना चाहिये। अगर संक्रमण से प्रभावित भी होते हैं तो 15.16 दिन कोविड सैंटर या कॉरंटीन वार्ड में बितना ही उपयुक्‍त है।
एक जानकारी में डा सारास्‍वत ने कहा कि जहां तक होम्‍येपैथिक में उपचार का सवाल है, एक चिकित्‍सक के रूप में केवल शारीरिक प्रतिरोधक  क्षमता को बढाने की दबा ही डाक्‍टर देते हैं। उन्‍होंने कहा कि जैविक संक्रमण समाज के समक्ष हमेशा बडी चुनौती रही है। यह सही है कि अन्‍य पद्यतियों के डाक्‍टरों के समान ही होम्‍येपैथिक डाक्‍टरों को भी अपने प्रेफैश्‍नल कैरियर के चिकित्‍सा में काम आने लायक अत्‍यंत उपयोगी अनुभव होते है।किन्‍तु इस समय एपैडैमिक एक्‍ट के प्राविधानों के तहत स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के द्वारा निर्धारित पोटोकॉल के तहत ही उपचार किया जा रहा है। 
आक्‍सीजन बहुत जरूरी
कोरोना वायरस का संक्रमण सबसे ज्‍यादा श्‍वांस तंत्र को प्रभावित करता है समय से चिकत्‍सक के परामर्ष से सही तरीके से आक्‍सीजन मिलने मात्र से मरीजों की समस्‍या काफी कम हो जाती है।पेशागत रूप से  'एक्‍सप्‍लोरिंग होम्‍योपैथी विद मार्डन एप्रोच ' के पक्षधर हैं,लेकिन मौजूदा माहौल में कुछ नया करने की अपेक्षा जानकारियों का बैहतरीनतम उपयोग तक ही अपने को सीमित किये हुए हैं। 
नकारात्‍मक मानसिकता से उबरना होगा
डा सरास्‍वत कहते हैं कि उनकी नजर में तो इस समय तो सबसे बडी चुनौती जनमानस को उस नकारात्‍मक मानसिकता से उबारना जिसने जनमानस को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित किया हुआ है। जिसके फलस्‍वरूप सामान्‍य खांसी ,जुखाम जैसे मौसमी असर के कारण होने वाली बीमारियों का उपचार करवाने वाले तक शंकालू हो जाते हैं।कई बार तो मरीजों को उपचार करवाने को साथ लाने के  परिचारक तक मिलना मश्‍किल हो ते हैं। डा सरास्‍वत का अनुमान है कि फरवरी 2020 तक आगरा से कोरोना जा चुका होगा।