5 जून 2020

हरि‍याली अच्‍छादन के नाम पर चार दशक पूर्व बोये 'बि‍लायती बबूल' से आगरा असहज

'वेबिनार' में डि‍स्‍कशन सोशल फारैस्‍ट्री नीति‍ को तत्‍काल क्रि‍यान्‍वि‍त करवाया जाये

( आगरा के जनजीवन के चेलैंज: 'बन्‍दर और बि‍लायती बबूल' )
आगरा:चम्‍बल और यमुना नदी के बीहणी क्षेत्र में कटानों को रोक कर हरि‍याली अच्‍छादन के नाम पर चार दशक पूर्व  बोये गये बि‍लायती बबूल को तीन दशक बाद क्रमागत रूप से उखाड कर साफ करना क्षेत्र के पर्यावरणीय तंत्र के लि‍ये सबसे अहम जरूरत है। यह मुद्दा  'वेबिनार' में डि‍स्‍कशन में सबसे अहम रहा। ' वी फॉर आगरा' ,आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन व आगरा सिटी रेडिको के संयुक्त तत्वावधान में वि‍श्‍व पर्यावरण दि‍वस पर आयोजि‍त इस डि‍स्‍कशन में  पर्यावरण  विदों ने कहा कि‍ कि‍ जयूली फि‍लोरा स्थानीय वृक्षों एवं वनस्पतियों को पनपने नहीं दे रही है एवं भूगर्भीय जल पर भी विपरीत प्रभाव डाल रही है। तितलीयों और अन्य पक्षियों को भी इन जंगलों में जगह नहीं मिल
पाती है। इसलिये इन विलायती बबूल के जंगलों को हटा कर स्थानीय प्रजाति के वृक्ष लगाये जाने चाहिये।
देश के प्रख्‍यात  पर्यावरण विद् डा0 सी0आर0 बाबू के इस संदेश से बेबि‍नार में भागीदारी करने वालो में से अधि‍कांश ने सहमति‍ व्‍यक्‍त की कि‍  'आगरा के वनों में विलायती बबूल की जगह स्थानीय वृक्ष लें। जो यहां के वनस्पती व वन्य जीव को वापस ला सकें और जो शहर व शहर के लोगों की प्राकृतिक सेवा कर सकें'।   
 बबूल का बबाल
वी फॉर आगरा, आगरा डवलपमेन्ट फाउंडेशन व आगरा सिटी रेडिको के संयुक्त तत्वावधान में आज एक वेबिनार आयोजित हुआ। जिसमें  अपर मुख्य वन संरक्षक  प्रवीन राव ने कहा कि‍ वन संरक्षण और उनके स्‍वरूपों नि‍र्धारण होना एक सत्त प्रक्रि‍या है।  ए0डी0एफ0 सचिव के0सी0 जैन द्वारा यह बात रखी गयी कि विलायती बबूल विदेषी प्रजाति है। जो कि पर्यावरण का नुकसान कर रही है। स्थानीय वृक्षों एवं वनस्पतियों को पनपने नहीं दे रही है एवं भूगर्भीय जल पर भी विपरीत प्रभाव डाल रही है। तितलीयों और अन्य पक्षियों को भी इन जंगलों में जगह नहीं मिल पाती है। 
डी0एफ0ओ0, मनीष मित्तल ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार जाहिर की कि वर्ष 1970 में यमुना के खादरों वाली जगह में विलायती बबूल का बीज बो दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के 2015 के आदेश  के रहते इन विलायती बबूल के पेड़ों को हम नहीं काट सकते हैं। यह सही है कि आगरा के आस-पास के जंगलों में 90 प्रतिशत  विलायती बबूल है। हां इन विलायती बबूल के पेड़ों के बीच-बीच में हम गैप फिलिंग मॉडल के अनुसार पेड़ लगा सकते हैं। कुछ छोटे-छोटे क्षेत्रों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में सुप्रीम कोर्ट की अनुमति लेकर स्थानीय पेड़ों को विलायती बबूल की जगह लगाया जा सकता है।
कम से कम बन्‍दरों  के लि‍ये तो  जंगल फलदार पेड़ लगाये
सोशल फारैस्‍ट्री और फलदार पेड आज की जरूरत

एफ0मेक0 अध्यक्ष श्री  पूरन डाबर द्वारा भी शहर में बन्दरों की समस्या की बात उठायी गयी और उन्होंने कहा  कि शहर के निकट वाले जंगलों में विलायती बबूल के कारण यह बन्दर वहां नहीं जा सकते हैं। क्यों न वहां पर फलदार पेड़ लगाये जायें और पानी का इन्तजाम किया जाये ताकि हम इन बन्दरों की समस्या से निजात पा सकें। 
 सोशल फारैस्‍टी आगरा की सबसे बडी जरूरत

'वेवि‍नॉर' का एक अनय मुद्दा एग्रोफोरेस्टरी था। बात यह रखी गयी कि आगरा में लगभग 6 प्रतिषत ही वनावरण है। जबकि राष्ट्रीय टारगेट 33 प्रतिषत है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 दिसम्बर 2019 को टी0टी0जैड में एग्रोफोरेस्टरी को प्रमोट करने के लिये आदेष हो चुके हैं। जब तक हम निजी स्टेकहोल्डर्स को वृक्षारोपण के लिये प्रेरित नहीं करेंगे तब तक हरियाली आगरा में नहीं बढ़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेष के सम्बन्ध में मनीष मित्तल का यह कहना था कि आदेष के सम्बन्ध में विधिक राय प्राप्त की जा रही है। जिसको लेकर आगे कार्यवाही होगी। 
 आगरा डवलपमेन्ट फाउन्डेषन के सचिव के0सी0 जैन द्वारा भी हार सिंगार के पौधों को भी निःषुल्क उपलब्ध कराने की बात रखी गयी। धन्यवाद ज्ञापन डा0 सुषील गुप्ता ने किया। कार्यक्रम का समन्वय श्री हेमन्त जैन द्वारा किया गया।   
 वेबिनार में डा मुकुल पाण्डया (पर्यावरण विद्), अंकुष दवे (पर्यावरण योद्धा), डॉ0 सुषील गुप्ता (अध्यक्ष अप्सा), पूरन डाबर (अध्यक्ष एफ0मेक0), तरूण अग्रवाल (सचिव ए0बी0एफ0), इन्दर जैन (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आई0आई0ए0), प्रवीन कुमार (सेवानिवृत्त अपर जिला जज), विनोद गुप्ता, अजय बंसल, किषोर जैन आदि‍ कार्यक्रम में सहभागी थे।