पान की खेती नहीं केवल खपत करता है आगरा
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पान दरीबां आगरा फोटो:असलम सलीमी |
आगरा: पान के बाजार को उर्दू और हिन्दी भाषा - भाषी क्षेत्रों में दरीबा कलां, पान दरीबां या केवल दरीबा कहा जाता है । मुस्लिम शासकों के समय से यह नाम प्रचलन में आया । हकीकत में दरीबां अक्सर पान की थोक मंडी का पर्यायवाची सा रहा है। आगरा में दरीबा यानि पान की थोकमंडी आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन की छोटी लाइन(अब ब्राडगेज ) के पूर्वी गेट(जामा मस्जिद ओर का गेट ) की ओर है। पान की इस थोक व्यापार मंडी में जहां आढतियों के पास दूरदराज से थोक मे पान लेकर बेचने वाले आते हैं, वहीं यही से केंटीनों,पान की दूकानों के संचालक ( पनवाणी ), पानदान का शौक रखने वाले खानदानी भी यही से अपनी कई कई दिन की जरूरत को पूरी करने वाली खरीद कर ले जाते हैं।
--पान की मार्किटिग
पान की मार्किटिग करने में बैंडरों की भूमिका भी अब बढ गयी हे। कुछ दशक पूर्व तक यहां से थोक के भाव पान खरीद कर साइकिलो के कैरियर या फिर सिर पर ही टोकरियों में भीगे पानी के कपडे से ढांक कर पान बेचने वाले अक्सर सडकों पर घूमते दिख जाते थे लेकिन अब आईस बाक्स या एयरटाइट बास्किट या थर्मस को मोटर साइकिल या स्कूटरों पर लेकर पानसप्लाई करने का काम प्रचलन में आ गया है।
पान के कारोबार के इस स्थान को लेकर हो सकता है कि और अधिक सटीक और सारगर्भित जानकारियां भी हों किन्तु प्रचलित मान्यता और जानकारियों के अनुसार आगरा का पान दरीबां मुगलकाल से मंडी स्थल के रूप में संचालित है। आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन के बनने से पूर्व किले के दिल्ली दबाजा और जामामस्जिद के बीच परकोटे वाला एक त्रिपोलिया बाजार हुआ करता था। तब दरीबां कला इसका ही अंतरिम भाग था।
दरीबा के यहीं बने रहने का एक बडा कारण रावतपडा बाजार भी है,जहां कि पान को बनाये जाने के लिये चूना के अतरिक्त सुपाडी,लोंग, तम्बाकू, इलाइची, गिरी ,गुलकन्द ,किमाम सहित विविध मसाले मिलते हैं।अक्सर पान की ढोली खरीदने वाले राबत पाडा बाजार होकर ही अपनी दूकानों या ठिकाने पहुंचते हैं।
-- तमोली पाडा
अब तो कर्म के आधार पर जातियो की बसावट को दौर नहीं रहा लेकिन किसी वक्त आगरा में यही प्रचलन था और इसी के फलस्वरूप शाहगंज में तमोली पाडा मोहल्ले में ज्यादातर पान की खेती और विप्पण की प्रक्रिया से जुडे हुओं की बसावट थी । इस मौहल्ले का नाम तो अब भी यह बताने को पर्याप्त है ही कि पान के बेचने और खेती से जुडे लोगों का यहां कभी जमघट रहता होगा।
-- शिष्टाचार का केन्द्र 'पान की दूकान '
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पान अगर देसी हो तो बात कुछ अलग ही होती है। फोटो:असलम सलीमी |
जहां तक पान खाने का सवाल है यह भारत में रोजमर्रा पान खाने की आदत का है, उसके लिये न तो पुराने समय कोयी खास नियम था और नहीं अब है।बस इतना फर्क अवश्य तब औरअब में हो गया है,जहां पहले घर घर में पानदान न रख कर बाजार में दूकान से अपनी पंसंद का पान खाना और खिलाना शिष्टाचार का भाग बन गया है।
दो किस्मों के पान की चर्चा जरुर होती है एक बनारसी पान दूसरा मगही पान | बनारसी पान का सम्बंध उत्तर प्रदेश के बनारस से होती है तो मगही पान बिहार के मगध से सम्बन्धित है | मगध का संबन्ध मौर्य वंश से है अत: स्वभाविक रूप से 'मान क पान के रूप में 'मगही' भी इसी राजवंश से जुडा माना जाता है | वैसे आगरा में देसी पान ज्यादा प्रचलित है ।इसकी एक दम सटीक परिभाषा तो पनवाणी ही कर सकते हैं लेकिन आम आदमी के लिये हरे पत्ते का ऐसा पान जिसकी नसें एक दम दिखती हों तथा उसके बेल से तोड़ कर उपभोक्ता के हाथ में पहुंचने के बीच में कोयी कृतिम प्रक्रिया (तोडने के बाद पकाने) आदि की न अपनायी गयी हो। सामान्यत: वैद्यिक उपचारों के लिये इसी को उपयोग में लाया जाता है।
पान लोगों के लिए शौक के साथ ही एक ऐसी औषधी है जिसका आयुर्वेद चिकित्सा पद्यति के वैद्यों के माग्रदर्शन में उपयोग करने से कई रोगो में उपचार संभव हो जाता है। इसके अलावा पूजा में भी उपयोग किया जाता है | पान की मांग देश के अलावा विदेशों में होने के कारण राज्य सरकार किसानों को पान की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है |
आगरा में कितने पान की खपत होती है, इसका आंकलन उद्यान उपज होने के बाबवजूद अब तक आधिकारिक रूप से उपलब्ध नहीं है किन्तु औसतन लगभग एक करोड से ज्यादा की कीमत का पान हर दूसरे दिन आगरा में खपजाता है।
-- मगही को जी आई टैग
इसी के तहत बिहार सरकार मगही पान को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही है | इस वर्ष मगही पान को जी.आई.टैग भी मिल गया है | जी.आई.टैग का मतलब यह होता है कि किसी खास वस्तु को किसी खास जगह से जुड़ाव होना तथा यह दुसरे जगह नहीं मिलेगा | इसका मतलब यह हुआ कि मगही पान केवल बिहार में ही उत्पादन होता है |