आगरा। भारत के व्यपारियों की प्रमुख संस्था एसोचैम उत्तर प्रदेश के आगरा चैप्टर के अध्यक्ष विष्णु भगवान अग्रवाल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर उद्योगों की श्रेणी को लेकर सुझाव दिए हैं। कहा है कि मानक तय किए बिना, प्रदूषण के सामान्य आकलन के आधार पर उद्योगों पर नियम न थोपे जाएं। इस मामले में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने सभी उद्योगों को प्रदूषण के लिहाज से चार वर्गों में बांट दिया है। हरी, नारंगी, लाल और सफेद। इसमें बजाए प्रदूषण नियंत्रण के मानक बताने के, उक्त उद्योग को पूरी तरह वर्गीकृत कर दिया है। चाहे वह प्रदूषण फैलाता है या नहीं। इससे उद्योग जगत में खलबली मच गई है। एक बड़ा वर्ग उद्योगों का ऐसा है जो प्रदूषण संबंधी सभी मानक पूरा करता है, हरियाली कराता है, और अपना सामाजिक दायित्व भी पूरा करता है। इसके बावजूद इन उद्योगों के
परिचालन और विस्तार को टीटीजेड में रोक दिया गया है। यह अनुचित है। कई ऐसे उद्योग भी हैं जो कतई प्रदूषण नहीं करते, इसके बावजूद उनको नारंगी या हरी श्रेणी में रख दिया गया है। अन्य प्रदेशों की सरकारों ने तो लचीला रुख अपनाया है। प्रदूषण के मानक शिथिल करते हुए प्रदूषण रहित उद्योगों को सफेद श्रेणी में रख दिया है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश सरकार ने आंख मूंद कर उद्योगों पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया है। यह सोचे समझे बगैर कि इस कानून का मंतव्य प्रदूषण करने वाले उद्योगों पर ही लगाम कसने का है, न कि उस श्रेणी के सारे उद्योगों को बंद करने का। इससे उद्योगों की क्षमता वृद्धि और उत्पादन प्रभावित होगा। बेरोजगारी बढ़ेगी और सरकार को टैक्स कम मिलेगा। प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। बेहतर यह होगा कि अन्य प्रगतिशील राज्यों की तरह उ.प्र. सरकार उद्योगों के प्रदूषण संबंधी मानक तय करे। जो उद्योग इन मानकों को पूरा करे, उनको सफेद श्रेणी में रखा जाए। खतरनाक और प्रदूषण करने वाले उद्योगों की स्थापना और विस्तार बंद किया जाए। इसके लिए प्रदूषण विभाग हर इकाई का निरीक्षण करके सलाह देकर सफेद श्रेणी में लाए।