--दायित्वों से विमुख न होना संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनायें
आगरा: जिला अधिकारी गौरव दयाल ने कहा है कि अगर कर्त्तव्य - बोध हमारी जीवन शैली और संस्कृति का हिस्सा बन सके तो देश की तमाम समस्यायें स्वत: हल हो सकती हैं ,यहां तक कि न तो पुलिस की जरूरत होगी और न ही मजिस्ट्रटों की । वह ' ह्यूमन ड्यूटीज फाऊंडेशन 'के तत्वावधान
में शास्त्रीपुरम स्थित सचदेवा मिलेनियम स्कूल परिसर में आयोजित 'आओ फर्ज निभायें - एक संप्रेषण ' विषय पर केन्द्रित सम्मेलन में को संबोधित कर रहे थे । उन्होंने कहा कि अपेक्षित प्रगति के लिये नागरिकों को उनके कर्त्तव्य बोध की ओर की ओर प्रेरित करना देश और समाज की की सबसे अहम सामायिक जरूरत है।
प्रख्यात राजनैतिक विश्लेषक एवं ब्राडकास्ट एडीटर एसोसियेशन के महासचिव एन. के. सिंह ने देश के मौजूदा हालातों पर चर्चा करते हुए कहा कि बडे बदलाव की जरूरत है, कानून बनाने या सरकारों से अपेक्षा करने से ज्यादा समाज को इसके बारे में सोचना होगा। पूर्व चीफ इन्कम टैक्स कमिश्नर सुरेन्द्र मिश्र ने कहा कि जब संविधान बन रहा था उसी समय संवैधानिक कर्त्तव्यों को उसमें जोडने की बात भी चली थी किन्तु उस समय तक दुनियां के जिन देशों के संविधानों का अनुसरण कर हम अपना संविधान बना रहे थे उनमें से किसी के भी संविधान में इस प्रकार की व्यवस्था न होने से यह संभव नहीं हो सका था।किन्तु अब कर्तव्य संविधान में शामिल है अत: मलभूत अधिकारों, नीति-निर्देशों के समान ही इन के प्रति भी जनता को जागरूक करना पडेगा।
रेल मंत्रालय के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी संदीप साईलस कहना था कि संवैधानिक व्यवस्था लागू हो जाने के बाद से नागरिकों के विभिन्न वर्ग और समुदाय अपने अपने हित के मुद्दों के लिये व्यवस्थापिका सहित लोकतंत्र के चारों स्तम्भ पर दबाव बनाने को तो कमोवेश सक्रिय हो गये है किन्तु इस तथ्य को भुला चुके है कि जिस संविधान में नीतिनिर्देश तत्व और मूलभूत अधिकार जैसे प्राविधान है उसी में नागरिकों के मूल कर्त्तव्य भी शामिल हैं।
सुप्रीमकोर्ट की एडवोकेट सावित्री पांडे ने वक्ताओं अनुभवों का उल्लेख करते हुए केवल अधिकारों की बात कहते रहने से उत्पन्न स्थिति को राष्ट्रीय चुनौती बताया तथा कहा कि अगर नागरिकों में उनके संवैधानिक कर्त्तव्यों के प्रति चेतना जाग्रत करने का अभियान शुरू किया जाये तो और संवैधानिक कर्त्तव्यबोधउनकी जीवन शैली का अंग बनाये जा सकें तो देश की बहुत सी समस्याओं का समाधान स्वत:ही हो जायेगा। जोकि सरकारों , व्यवस्थापिका और सामाजिक संरचनाओं की मुश्किलें कम करने से भी कही ज्यादा आम नागरिक की जीवन यापन शैली में घर करती जा रही जटिलताओं को दूरकर सहजता के लिये भी जरूरी है ।
फिल्म सैंसर बोर्ड के सदस्य श्याम सिंह यादव सदस्य ने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि देर से ही सही किन्तु संवैधानिक कर्त्तव्यों के प्रति नागरिकों को जागरूक करने को पहल तो शुरू हुई है। आब्जर्वर के रूप में सिख धर्मगुरू बाबा प्रीतम सिंह जी,ईसाई धर्मगुरू फादर मून लाजरस,हिन्दू सनातन संस्कृति के प्रकांड ज्ञाता डॉ राम अवतार शर्मा उपस्थित थे। सम्मेलन का संचालन 'ह्यमन ड्यूटीज फऊंउेशन' के चेयरमेन राजेन्द्र सचदेवा के द्वारा किया गया । आयकर विभाग की अपर आयुक्त (जांच) बृंदा दयाल , ने बच्चों की परवरिश को लेकर बनी व चल रही मौजूदा स्थितियों का मुद्दा उठाकर सभी के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया ।
आयकर उपायुक्त बृदा दयाल ,डीएम गौरव दयाल, वरिष्ठ आई आर एस अधिकारी संदीप साईलस एवं सेमीनार के कार्डीनेटर राजेन्द्र सचदेवा ।फोटो :रोली सिन्हा |
आगरा: जिला अधिकारी गौरव दयाल ने कहा है कि अगर कर्त्तव्य - बोध हमारी जीवन शैली और संस्कृति का हिस्सा बन सके तो देश की तमाम समस्यायें स्वत: हल हो सकती हैं ,यहां तक कि न तो पुलिस की जरूरत होगी और न ही मजिस्ट्रटों की । वह ' ह्यूमन ड्यूटीज फाऊंडेशन 'के तत्वावधान
में शास्त्रीपुरम स्थित सचदेवा मिलेनियम स्कूल परिसर में आयोजित 'आओ फर्ज निभायें - एक संप्रेषण ' विषय पर केन्द्रित सम्मेलन में को संबोधित कर रहे थे । उन्होंने कहा कि अपेक्षित प्रगति के लिये नागरिकों को उनके कर्त्तव्य बोध की ओर की ओर प्रेरित करना देश और समाज की की सबसे अहम सामायिक जरूरत है।
प्रख्यात राजनैतिक विश्लेषक एवं ब्राडकास्ट एडीटर एसोसियेशन के महासचिव एन. के. सिंह ने देश के मौजूदा हालातों पर चर्चा करते हुए कहा कि बडे बदलाव की जरूरत है, कानून बनाने या सरकारों से अपेक्षा करने से ज्यादा समाज को इसके बारे में सोचना होगा। पूर्व चीफ इन्कम टैक्स कमिश्नर सुरेन्द्र मिश्र ने कहा कि जब संविधान बन रहा था उसी समय संवैधानिक कर्त्तव्यों को उसमें जोडने की बात भी चली थी किन्तु उस समय तक दुनियां के जिन देशों के संविधानों का अनुसरण कर हम अपना संविधान बना रहे थे उनमें से किसी के भी संविधान में इस प्रकार की व्यवस्था न होने से यह संभव नहीं हो सका था।किन्तु अब कर्तव्य संविधान में शामिल है अत: मलभूत अधिकारों, नीति-निर्देशों के समान ही इन के प्रति भी जनता को जागरूक करना पडेगा।
रेल मंत्रालय के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी संदीप साईलस कहना था कि संवैधानिक व्यवस्था लागू हो जाने के बाद से नागरिकों के विभिन्न वर्ग और समुदाय अपने अपने हित के मुद्दों के लिये व्यवस्थापिका सहित लोकतंत्र के चारों स्तम्भ पर दबाव बनाने को तो कमोवेश सक्रिय हो गये है किन्तु इस तथ्य को भुला चुके है कि जिस संविधान में नीतिनिर्देश तत्व और मूलभूत अधिकार जैसे प्राविधान है उसी में नागरिकों के मूल कर्त्तव्य भी शामिल हैं।
सुप्रीमकोर्ट की एडवोकेट सावित्री पांडे ने वक्ताओं अनुभवों का उल्लेख करते हुए केवल अधिकारों की बात कहते रहने से उत्पन्न स्थिति को राष्ट्रीय चुनौती बताया तथा कहा कि अगर नागरिकों में उनके संवैधानिक कर्त्तव्यों के प्रति चेतना जाग्रत करने का अभियान शुरू किया जाये तो और संवैधानिक कर्त्तव्यबोधउनकी जीवन शैली का अंग बनाये जा सकें तो देश की बहुत सी समस्याओं का समाधान स्वत:ही हो जायेगा। जोकि सरकारों , व्यवस्थापिका और सामाजिक संरचनाओं की मुश्किलें कम करने से भी कही ज्यादा आम नागरिक की जीवन यापन शैली में घर करती जा रही जटिलताओं को दूरकर सहजता के लिये भी जरूरी है ।
फिल्म सैंसर बोर्ड के सदस्य श्याम सिंह यादव सदस्य ने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि देर से ही सही किन्तु संवैधानिक कर्त्तव्यों के प्रति नागरिकों को जागरूक करने को पहल तो शुरू हुई है। आब्जर्वर के रूप में सिख धर्मगुरू बाबा प्रीतम सिंह जी,ईसाई धर्मगुरू फादर मून लाजरस,हिन्दू सनातन संस्कृति के प्रकांड ज्ञाता डॉ राम अवतार शर्मा उपस्थित थे। सम्मेलन का संचालन 'ह्यमन ड्यूटीज फऊंउेशन' के चेयरमेन राजेन्द्र सचदेवा के द्वारा किया गया । आयकर विभाग की अपर आयुक्त (जांच) बृंदा दयाल , ने बच्चों की परवरिश को लेकर बनी व चल रही मौजूदा स्थितियों का मुद्दा उठाकर सभी के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया ।
अधिकारों का सफर
राजेन्द्र सचदेवा की परिकल्पना पर आधारित चर्चित डौक्यूमेंट्री 'आओ फर्ज निभायें' फोटो: रोली सिन्हा |
शुरूआत में ह्यूमन ड्यूटीज फाऊंडेशन के चेयरमैन श्री राजेन्द्र सचदेवा के मौलिक चिंतन पर आधारित नागरिकों को कर्त्तव्य दायित्व का बोध करने वाली ' आओ फर्ज निभाये 'फिल्म को प्रदर्शित किया गया । फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य श्याम सिंह यादव एवं प्रोग्राम हेड 90.8 एफ एम सुश्री रोली सिन्हा ने फिल्म को 'कंटैंटोंं'से भरपूर एक गंभीर शुरूआत बताया ।
ठोस कार्यक्रम बनायें
सांसद बाबूलाल,धर्माचार्य बाब प्रीतम सिंह, फदर मून लाजरस, शिक्षाविद डॉ रामअवतार शर्मा, स्क्वॉर्डन लीडर ए. के. सिह,जे. के. पाठक,अचल कुमार शर्मा एडवोकेट,श्रीमती रानी सिह,डॉ रुचि चतुर्वेदी,शिक्षाविद् ,डॉ ब्रजेश चन्द्रा ,भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक केशो मेहरा, सेंटजोंस कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मधुरिमा शर्मा,श्री हरीश सक्सेना चिमटी,डॉ अमी आधार निडर, रुनू सरकार दत्ता आदि की सहभागिता रही।।कार्यक्रम का संचालन ह्यूमन डयूटीज फाऊंडेशन के संस्थापक राजेन्द्र सचदेवा ने किया जबकि सह संस्थापक रमन बल्ला ने आभार व्यक्त करते हुए सभी जनगरूक बुद्धिजीवियों से एक जुट हो ठोस कार्यक्रम बनाकर जुटने की अपेक्षा की।