19 जुलाई 2020

दुनियाभर मेंलोकप्रिय अध्‍यात्‍म की वि‍धा 'फालुन दाफा' का चीन में दमन

-- 20 जुलाई को भारत में अभ्‍यासि‍यों ने मनाया वि‍रोध दि‍वस 
भारतीय 'फलुन दफा अभ्‍यासि‍यों ने  चीनी के वि‍रोध में की आवाज बुलंद।

आगरा: चीन की तमाम वस्‍तुओं का वि‍रोध हो रहाहै कि‍न्‍तु उसके पीछे कारण है, उसके द्वारा व्‍यापार के माध्‍यम से अपने आर्थि‍क उपनि‍वेश को बढाने के छुपे हुए एजैंडे पर काम करना जो कि‍ वि‍श्‍वसमुदाय के सामने अनावरत हो चुकी उसकी वि‍स्‍तारवादी नीति‍ का ही एक भाग है। लेकि‍न अपने भौति‍क संसाधनों की भरपूरता के बावजूद चीन अपने अपने दोस्‍त और दुश्‍मनों को लेकर शंकालू रहे यह तो समझ में आता है कि‍न्‍तु अपने ही जानमानस के मानसि‍क स्‍वस्‍थ्‍ा और परपक्‍व होने को  तक को पसंद नहीं करता । यह एक एसी हकीकत है जि‍सपर सहज वि‍श्‍वास नहीं होता कि‍न्‍तु ' फालुन दाफा ' को लेकर जो कुछ वहां चल रहा है इसके लि‍ये वह पर्याप्‍त
साक्ष्‍य है।
दरअसल मन और शरीर की साधना  पद्धति ' फालुन दाफा' मूल रूप से चीनी है और वहां की सरकार इसे धर्म से जुडा हुआ तथा अध्‍यात्‍म से जुडा हुआ मानने के साथ ही भौति‍कवादी कम्‍यूनि‍स्‍ट वि‍चारधारा का वि‍रोधी माने हुए है।  वर्तमान में  'फालुन दाफा' का  अभ्यास विश्व में 100 से अधिक देशों के  10 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन जो कि‍ कि चीन, जो फालुन दाफा की जन्म भूमि है, वहां 20 जुलाई 1999 से इसका दमन किया जा रहा है जो आज तक जारी है।इसी लि‍ये  20 जुलाई के दिन को दुनि‍यां भर में फालुन दाफा के  ' विरोध दिवस' के रूप में मनाते हैं। इस दि‍न  शांतिपूर्वक प्रदर्शन और कैंडल लाइट विजिल द्वारा लोगों को चीन में हो रहे बर्बर दमन के बारे में अवगत कराते हैं।
फालुन दाफा (जिसे फालुन गोंग भी कहा जाता है) के बारे में कम जानकारी रखने वालों के लि‍ये यह जानना दि‍लचस्‍प और ज्ञानबर्धक होगा कि‍  बुद्ध और ताओ विचारधारा पर आधारित एक प्राचीन साधना पद्धति है जिसे मौजूदा दौर मे में श्री ली होंगज़ी द्वारा 1992 में चीन में सार्वजनिक किया गया। फालुन दाफा और इसके संस्थापक, श्री ली होंगज़ी को, दुनियाभर में 1,500 से अधिक पुरस्कारों और प्रशस्तिपत्रों से नवाज़ा गया है। श्री ली होंगज़ी को नोबेल शांति पुरस्कार व स्वतंत्र विचारों के लिए सखारोव पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया जा चुका है।
बौद्ध मत की वि‍धा होना ही चीन में वि‍रोध का अपने आप में एक सबल कारण।
चीन में फालुन गोंग का दमन
इसके स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक शिक्षाओं के कारण फालुन गोंग चीन में इतना लोकप्रिय हुआ कि 1999 तक करीब 7 से 10 करोड़ लोग इसका अभ्यास करने लगे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप उस समय 6 करोड़ ही थी। चीनी कम्युनिस्ट शासकों ने फालुन गोंग की शांतिप्रिय प्रकृति के बावजूद इसे अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा माना और 20 जुलाई 1999 को इस पर पाबंदी लगा कर कुछ ही महीनों में इसे जड़ से उखाड़ देने की मुहीम चला दी। 
पिछले 20 वर्षों से फालुन गोंग अभ्यासियों को चीन में यातना, हत्या, ब्रेनवाश, कारावास, बलात्कार, जबरन मज़दूरी, दुष्प्रचार, निंदा, लूटपाट, और आर्थिक अभाव का सामना करना पड रहा है। अत्याचार की दायरा बहुत बड़ा है और मानवाधिकार संगठनों द्वारा दर्ज़ किए गए मामलों की संख्या दसियों हजारों में है।
चीन में अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण अपराध
यह अविश्वसनीय लगता है, किन्तु चीन में प्रत्यारोपण के लिए अंग न केवल मृत्युदण्ड प्राप्त कैदियों से आते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में कैद फालुन गोंग अभ्यासियों से आते हैं। चीन में मानवीय अंग प्रत्यारोपण के इस अपराध में बड़े पैमाने पर अवैध धन कमाया जा रहा है।बताया जाता है कि‍  चीन के अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण उद्योग का सालाना कारोबार 1 बिलियन डॉलर का है।
भारत में भी 20 जुलाई को मनाया  विरोध दिवस
दुनिया भर के फालुन दाफा अभ्यासियों की भांति भारत के फालुन दाफा अभ्यासी भी 20 जुलाई को शांतिपूर्वक प्रदर्शन और कैंडल लाइट विजिल का आयोजन करते हैं। क्योंकि इस लॉक डाउन अवस्था में बाहरी गतिविधि नहीं की जा सकती, इस लि‍ये भारत के फालुन दाफा अभ्यासी इस वर्ष सोशल और प्रिंट मीडिया द्वारा चीन में हो रहे दमन के बारे में लोगों को अवगत करा रहे हैंकराने तक सीमि‍त रहे। 
यह भारत के लिए प्रासंगिक क्यों है?
भारत और चीन के बीच पुराने सांस्‍कृति‍क रि‍श्‍ते रहे हैं ,लेकि‍न चीन अपने सामरि‍क और अर्थि‍क हि‍तो को देखते हुए  अब इन्‍हें औपचारि‍क भी नहीं रहने देना चाहता । वह इस सत्‍य तथ्‍य को भी नकार रहा है कि‍ बुद्ध की भूमि‍ भारत के पास उसे देने के लि‍ये  भारत के पास चीन को सिखाने के लिये बहुत कुछ है। फालुन दाफा के अीयासि‍यों का मानना है  कि‍ भारत को चीन में तिब्बत बोद्ध, वीगर मुस्लिम, फालुन गोंग और हांगकांग हो रहे घोर मानवाधिकार अपराधों की निंदा करनी चाहिए। ((आलेख -नेहाशाह,मो. ९९२०८०१२२६)