25 मार्च 2017

छत्तीस गढिया ‘ छऊ' शैली की श्रेष्ठ नृत्यांगना भी है ‘ संगीता’

- 'ताज महोत्सव' भारतीय कलाओं की अंतर्राष्ट्री या लोकप्रियता बढाने को सटीक मंच

(संगीता चटर्जी)

आगरा: शिल्प ग्राम के मुक्ताकाशीय मंच पर अपनी आकर्षक प्रस्तुतियों से ताज महोत्सव में चर्चा पाइंं संगीता चटर्जी कत्‍थक और भारत नाट्यम में ही निपुणता नहीं रखती  अपितु 'छऊ' के नाम से पहचाने जाने वाले प्रसिद्ध छत्‍तीस गढ़िया  लोकनृत्‍य की श्रेष्ठतम कलाकार है। अनुभवी और पूर्णतह  नृत्‍य को समर्पित संगीता ने जहां नई पीढ़ी को उसकी जिज्ञासाओं से भी ज्यादा कुछ दिया  है,
वहीं स्वयं को उन नए प्रयोगों की खोज के लिए समर्पित किया जो कि नृत्‍य शैलियों के विकास के लिये महत्‍वपूर्ण हैं।
संगीता की जिंदगी सामान्य रूप में आम भारतीय महिलाओं की तरह ही रही, परिवार की ओर से शौकों की अपेक्षा कैरियर पर बल दिया जाने की ही नसीहत मिलती रही थी। किन्तु इसके बावजूद अपनी मेहनत और लगन से नृत्य की दुनिया में अपना मुकाम हंसिल कर ही लिया।
वाराणसी शिक्षा का ही नहीं, सांस्कृतिक गठबंधनों के लिए भी अपनी पहचान रखती है। बनारस हिंदु विश्व विद्यालय (बी एच यू) से भूगोल विषय में परास्‍नातक और बी एड की शिक्षा पूरी की लेकिन मन चूकी, संगीत - नृत्य में ही अधिक रमता था, फलस्वरुरुप स्कूल के दिनों से ही संगीत, नृत्य के कार्यक्रमों में भागीदारी शुरू हुई।
 आखिरकार नृत्य कला को उन्होंने अपनी जीवन शैली में ही समाहित कर लिया । वाराणसी से   कार्यक्रम प्रस्तुतियों के साथ शुरू हुआ क्रम नई दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई होते हुए  देश के लगभग सभी प्रांतों के प्रमुख शहरों में वह अपनी पहचान बना चुकी हैं। अब आगरा का ताज महोत्सव भी  इसमें शामिल हो गया  हैं।
नृत्य की विभिन्न शैलियों की बारीकियों की समझ रखने वाली संगीता को भरत नाट्यम हमेशा अधिक भाया।  इसकी प्रस्तुति के लिए किए गए श्रंगाार और वेश भूषा में सज कर लौकिक अनुभूति  एक बड़ी वजह रही है। जबकि कत्‍थक में भाव प्रधानता की तुलना किसी भी अन्य नृत्य शैली से  करना बेमानी मानती है नई दिल्ली की इंदिरा पुरम स्थिति 'उद्धव कला केंद्र' की निदेशक संगीता उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जिन्‍हें ताज महोत्सव प्रबंधन ने दो बार मंच दिया । वास्तव में कलापक्ष और दक्षता , के प्रति कलापारखियों की सहृदयता ही इसकी मुख्य वजह है । ताजमहोत्सव जो मूल रूप से शिल्पियों के प्रोत्‍साहन के लिए शुरू किया गया था, वर्तमान में भारतीय कला और संगीत की प्रस्तुतियों के लिए अपनी अंतराष्ट्रीय  पहचान बना चुका  है। विदेशी पर्यटकों की उपस्थिति  आने वाले कलाकारों के उत्साह बर्धन का एक मुख्य कारण बन गया है
कई अन्य नामी गिरामी कलाकारों के यहां रहे अनुभवों  के बाद की गयी अभिव्‍यक्‍तियों के समान ही   संगीता का कहना है कि देश के सभी हिस्सों में वे अपनी प्रस्तुतियां देती रहेंगी लेकिन 'ताज महोत्सव' उनके लिए एक विशेष अवसर साबित हुआ है। वह चाहती है कि भारत की परंपराएं और कलाएं वैश्वीक रूप से लोकप्रिय हो और ताजमहोत्सव का मंच उनकी दृष्टि में इसके लिये  हर तरह से सटीक और उपयुक्त हैं।