--डी एफ ओ आगरा करेंगे स्थलीय निरक्षण लेंगे जानकारियां
ककरैठा लॉक: वन विभाग के परिसर मे स्थित नौ परिवहन संरचना।, इस पर सूक्ष्म जानकारी युक्त लगेगी पट्टिका। |
डबल फाटक गोदी
प्रभागीय निदेशक अखिलेश पांडेय से ककरैठ लॉक(गोदी) पर जर्नलिस्ट राजीव सकसेना ने की चर्चा। |
सिचाई विभाग के द्वारा दिल्ली -आगरा के बीच 'आगरा कैनाल' के माध्यम से होने वाले नौवाहन के लिये लिये यह एक सृजित संरचना(गोदी) है। लेकिन निष्प्रयोज्य हो जाने के बाबजूद संरक्षण योग्य परिसंपत्ति है।
‘ककरैठा लॉक ( kakratha lock) ' यानि ‘ककरैठ गोदी ‘ आगरा नहर के नहरी परिवहन तंत्र की उन तीस प्रमुख गोदियों में से थी जिन्हें 150 साल पूर्व नहरी परिवहन व्यवस्था वाली नावों पर से सामान उतारे और चढाये जाने को बनाया गया था। आगरा दिल्ली रोड (पुराना मुख्य मार्ग) पर डबल फाटक जहां कि अब फ्लाई ओवर बन चुका है के ठीक नीचे बाई ओर यह स्थित है। 1875 में इसके शुरू होने का बीजक लगा हुआ है।वर्तमान में यह अप्रबंधित है।
आगरा नहर में नौवाहन 1905 तक जारी रहा, इसके बाद यह इरीगेशन कैनाल घाषित कर दी गयी । जोधपुर झाल से आगरा कैनाल से निकलने वाली नहरों में सिंदरा राजवाह नौ वाहन की उपयुक्तता वाला मुख्य वाटर चैनल था। सिचाई विभाग ने सिकन्दरा राजवाह के शास्त्रीपुरम के बाद वाले भाग से तीस साल पूर्व अपना हाथ खींच लिया था और अपने प्रबंधन की जमीन का ज्यदातर भाग हरियाली अच्छादन के लिये वन विभाग को हस्तातरित कर दिया। एक प्रकार से यह गोदी भी अब वन विभाग के नियंत्रण में है। गोदी के परिसर में वन विभाग की नरसरी है, निष्प्रयोज्यता के बावजूद अब भी गोदी में 'लोकल कैचमेंट एरिया' का पानी जमा हो जाता है। वन विभाग की नर्सरी में इसका उपयोग सिंचाई के लिये किया जाता है। जलसंसाधनों का महत्व एक बार पुन: स्थापित हो जाने के फलस्वरूप गोदी भी एक प्रकार से महत्वपूर्ण हो गयी है।
नगर संस्कृति वाहक थी गुम हो चुकी नहर
नहर एक आगरा नहर के जोधपुर झाल स्थित टर्मिनल से शुरू होकर यमुना नदी में जीवनी मंडी जलकल के एकदम डाउन में यमुना नदी में समाने वाला सिकंदरा राजावाह अब शास्तीपुरम के अपस्ट्रीम में खारिज कर दिये जाने के कारण नयी पीढी को शायद ही इसकी जानकारी हो ,लेकिन पुरानी पीढी के लोग शायद ही इससे जुडी यादें भुला सके हों। सिकंदरा राजवाह का ककरैठा से लेकर भावान टाकीज से होकर जीवनी मंडी जलकल के बराबर से होकर यमुना नदी में समाने तक के भाग का शायद ही कोयी 'दो सौ कदमो' का खंड हो जो तत्कालीन जनजीवन के लिये एक न एक कारण से महत्व नहीं रखता हो। दीवानी,भदावर हाऊस परिसर, आर बी एस कॉलेज का खंदारी हाऊस परिसर, भगवान टाकीज चौराह, नेहरू नगर तालब, पालीवाल पार्क,आदि इसके ही पानी से सिंचित थे।
भववान टाकीज चौराहे पर सडक के नीचे से होकर यह बहता था,जहां से एक गूल मौजूदा न्यूआगरा के स्थान पर खेतों में होने वाली फसलों के लिये यह भरपूर पानी का माध्यम था। नगला पदी से आई एस बी टी तक खेती की जमीन थी। अमरूद और जमुन के पेड बडे पैमाने पर लगे हुए थे।दैनिक जागरण के पूर्व समाचार संपादक विनोद भाद्वाज जो कि तब नगला पदी में रहते थे ,उन दिनों की याद ताज कर बताते हैं कि न तो तब पानी की कमी थी और नहीं हरियाली की। पौध रोंपने का मतलब था,फलदार पेड में तब्दील होना। ।खैर अब सबकुछ बदल गया है,खंदारी में नहर के किनारे लगने वाली मऊ (यमुना तटीय गांव) के खरबूजों की हाट अब नहीं लगती। यहां मिलने वाली 'वटिया'मिठास वाला विशिष्ठ खरबूजा तो महज यादों में ही रह गया है। प्रात: फूलो की बगियाओं और फलों के पेडों के बागाें से छन कर आने वाली वायु झोको से सुवासित बना रहने वाला 'नगला पदी' अब नागर निगम की वाकायदा मलिन बस्तियों की सूची में दर्ज है।श्री भारद्वाज भी अब यादे सिमेटे ' शारदा बिहार' शिफ्ट हो चुके हैं।