"सुना है..वो आजकल गंगा में डुबकी लगता है"
महाकवि नीरज जी 97 वीं जयंती पर उनके बल्केश्वर निवास पर हुआ स्मृति | "काव्यांजलि", कवि सम्मेलन। |
कार्यक्रम में मैनपुरी से आये गीतकार बलराम श्रीवास्तव के गीतों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया..
बेर शबरी के भी अब कसैले मिले
प्रेम के घर मे बारूदी थैले मिले
जिंदगी ग्रंथ सी अब पलटता हू में
आचरण के सभी पृष्ठ मैले मिले..
जयपुर से आये मशहूर कवि बनज़ कुमार बनज़ ने अपने दोहो से समा बांध दिया..
बहकाने में शोर का बहुत बड़ा था हाथ.. वरना मेरा मौन तो खुश था मेरे साथ.. राष्ट्रीय टेलीविजन के कार्यक्रमों में अपनी विशिष्ठ पहचान रखने वाले पवन आगरी ने अपने अंदाज में शब्द जिनके होठों से निकलकर गीत बन गए.. वो नीरज ही थे जो जाने कितने लोगों के मीत बन गए..काव्यांजलि प्रस्तुत की।
अपने गीतों के लिए खासा जाने जाते है आगरा के प्रसिद्ध गीतकार रामेंद्र त्रिपाठी ने
इस एक प्यासे को बादल सघन चाहिए बदलो को नीला गगन चाहिए.. चाहे मन में खिले या वन में खिले फूलों को तो किसी की चुबन चाहिए..
रचना प्रस्तुत कर माहौल को काव्यमय बनाये रखने में रही सही कमी को भी दूर कर दिया।
दौसा राजस्थान से आई सपना सोनी ने कार्यक्रम में
'मेरे मन की धरा पे मधुर भाव से चित्र अपना सलोना बना दीजिए जितनी गज़ले कही है मेरे वास्ते उनके कुछ शेर तो गुनगुना दीजिए....' प्रस्तुत किया।
आगरा की प्रख्यात और बृजभाषा की शसक्त हस्ताक्षर कुसुम चतुर्वेदी ने भी कार्यक्रम में गीतों का रस घोल दिया
गीत मैंने जो तुम्हारे लिए लिखे वो पारस पा तुम्हारा भजन हो गए..
नीरज जी के सुपत्र शशांक ने जिन्होंने कार्यक्रम का संयोजन किया करते हुए
' कही ताली कही मजमा कही चुटकी बजता है वो अपने दुश्मनों को इस तरह पटकी लगता है नया हथकंडा है साहेब का अपने पाप धोने का सुना है आजकल वो गंगा में डुबकी लगता है..' की अपने अंदाज में प्रस्तुति करते हुए श्रोताओं को मत्रमुग्ध कर दिया।
विशिष्ट अथिति पार्षद अमित ग्वाला और पार्षद विमल गुप्ता भी इस मौके मौजूद थे। कार्यक्रम के अंत में श्रीमती वत्सला प्रभाकर ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया जबकि संचालन शशांकजी के द्वारा किया गया।