27 दिसंबर 2021

गालिब को 224 वीं जयंती पर उनके शहर आगरा ने किया याद

  -- कबीर परंपरा के शायर है मिर्जा गालिब: रामजी लाल सुमन

पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन ने कहा कि 
' गालिब जैसा कोई दूसरा नहीं'

आगरा: 'मिर्जा गालिब' कबीर की परंपरा के शायर है। उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती उन्हें जितनी बार पढ़ो उतनी बार उसके नए मायने निकलते हैं।यह कहना है पूर्व केन्‍दीय मंत्री रामजी लाल सुमन का जो गालिब की 224 वीं जन्म जयंती पर ग्रैंड होटल आगरा में आयोजित 'बज्में गालिब ' को संबोधित कर रहे थे। 

  प्रख्‍यात गजल गायक सुधीर नारायण ने गालिब की गजलों को तरन्नुम से "आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक ",कासिद की आते-आते खत एकऔर लिख सकूं मैं जानता हूं जो वह लिखेंगे जवाब में", जहां तेरा नक्शे

 कदम देखते हैं खयामा खयामा इरम देखते हैं "ये न थी हमारी किस्मत कि मिसाले यार होता" "कोई उम्मीद बर नहीं आती  कोई सूरत नजर नहीं आती ..' आदि

को प्रस्‍तुत कर लोगों को  काफी देर तक गजलों के माहौल में  डुबाये रखा । 

खेमचंद धाकड़ ने हजारों ख्वाहिशें ऐसी गजल प्रस्तुत की ।श्री अरुण डंग ने गालिब की शायरी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी शायरी में अहिंसा का भी जिक्र है और महात्मा गांधी के सिद्धांतों का भी" बुरा मत कहो बुरा मत सुनो"।
सुधर नारायण:"आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
 कौन जीता 
है तेरी जुल्फ के सर होने तक ",

सुशील सरित ने कहा "एक रेशमी एहसास है गालिब की शायरी रूहों में छुपी प्यास है गालिब की शायरी" इसके बाद   कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया और ध्वनि संयोजन किया मुगल साउंड सर्विस ने। अनूप जलोटा दुर्गाशंकर मिश्र पूर्व डीएम सांसद एसपी सिंह बघेल आज की शुभकामनाएं दी इस अवसर पर आई जिन्हें वाचन किया गया

संगत की तबले पर राज मैसी ने ,गिटार पर रमेश कुमार ने ,ढोलक पर राजू पांडे ने और कोरस पर थे देश दीप शर्मा ने ।कार्यक्रम में श्री अशोक चौबे ,कर्नल कुंजरू, रामकुमार अग्रवाल, डॉ अशोक विज, पूजा सक्सेना, विनोद माहेश्वरी डॉ रति खम्बाटा ,डॉ असीम आनंद डॉ संदीप अग्रवाल अरेला  साहब आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही

 श्री राजीव कुमार पाल प्रावीडेन्ट फंड कमिश्नर  दिल्ली की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में श्री अरुण डंग ने जहां अपने सारगर्भित विचार रखे वहीं   नसरीन बेगम ने गालिब की शोखियां खुतूत के आईने में आलेख प्रस्तुत किया। आगरा के प्रख्यात शायर शाहिद नदीम साहब ने कहा" लफ्ज़ कागज़ पर जब भी आते हैं अपनी ताजीम ही कराते हैं ।देखने में उदास झील था वह सोचने में मगर समंदर था खुशबुएं  उसकी आज भी है नदीम उसका लहजा था या   गुलेतर था।"बैकुंठी देवी की कुछ छात्राओं ने मिर्ज़ा ग़ालिब की तस्वीर के सम्मुख शमा रौशन कर किया