--रियासतो के विलीनी करण और पटेल की माईक्रो इकनामी को लेकर रही समझ
पर भी हुई चर्चा राष्ट्रीय एकता दिवस कार्यक्रम को प्रो सुगम आनंद ने किया संबोधित,
डा. माला भदौरिया, राज किशोर राजे आदि भी थे थे वक्ताओं में शामिल.
डा आनन्द ने कहा महात्मा गांधी से कई मुद्दों पर मत एकता नहीं थी.
जिसे पटेल ने हमेशा मुखर होकर व्यक्त भी किया किन्तु अंतत बापू के ही निर्णय को
ही अंतिम माना. उन्हों ने कहा कि सरदार पटेल भारत विभाजन के पक्षधर नहीं थे, लेकिन गांधी जी ने जब विभाजन के प्रस्ताव को
मान लिया तो वे भी खामोश हो गया. यह बात अलग हे कि ग्रहमंत्री के रूप में इससे
उनकी मुश्किले बढ गयीं.उन्हे हैदराबाद और जूनागढ सहित कई मुस्लिम बहुल रियासतों
के विलीनी करण को कडे कदम उठाने पडे.
डाआनंद ने कहा कि आजादी के बाद बडे पैमाने पर आये शरणार्थियों के पुनर्वास और भारत में ही रह गये मुसमानों की सुरक्षा की एक बहुत बडी चुनौती थी.जिसे ग्रहमंत्री के रूप में उन्हों ने न केवल स्वीकारा अपितु काफी हद तक समाधान भी कर दिया..देश में पहली लोकसभा के चुनाव से पहले ही उनका निधन हो गया अन्यथा कई अन्य चुनौतियों का समाधान करने में भी अनकी अहम भूमिका होती.
आर बी एस कॉलेज की प्रो. सीमा भदौरिया ने कहा कि सरदार बल्लभ भाई पटेल बकालत की पढायी करने इंग्लैंड जाना चाहते थे, इसके लिये उन्होंने बीजा प्राप्त करने को अर्जी दी ,जो स्वीकार भी हो गया तथा डांक से जब पोस्टमैन लेकर आया तो वह उनके बडे भाई विट्ठल भाई पटेल के हाथ पड गया. इस पर जब बडे भाई ने कहा कि अगर वह पहले वकालत पढ आये तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा. अपने भाई की इच्छा जानने के बाद फिर उन्होंने कभी भी उस बीसा की बात नहीं की.जो उनके परिवार के प्रति रहने वाले सरोकरों का परिचायक है.
इतिहास कार राज कुमार राजे ने कहा कि बैरिस्टर के रूप में जब वह अदालत में अपने क्लाइंट के पक्ष में बहस कर रहे थे , उसी समय एक टेलीग्राम आया जिसे पढकर उन्होंने जेब में रख लिया. जब बहस समाप्त हो गयी और उनके चेहरे पर दुख व चिता के भाव बने तब मजिस्ट्रेट को अचानक बहस के बीच में आये टेलीग्रम की याद आयी और उसने जिज्ञासावश उसके बारे मं जानना चाह तो वह भी दुखी होकर उन्हे स्वांतना देने लगा ,दरअसल यह टेलीग्राम उनके घर से आया था जिसमें उन्हे उनकी पत्नी की मौत की जानकारी दी गयी थी.
जर्नलिसट राजीव सक्सेना ने कहा कि देश की लघु एवं सीमांत अर्थव्यवस्था को मजबूत करने को लेकर गंभीर थे. अहमदाबाद नगर निगम के मेयर के रूप में उन्हों ने अंग्रेज हुकूमत के नाराज हो सकने की संभावना के बावजूद निगम के इतिहास विज्ञ प्रो. सुगम आनंद ने किया द्वीप प्रज्वलित
क्षेत्रीय
अभिलेख अभिलेख अधिकारी रमेश चन्द्र ,जर्नलिस्ट राजीव सक्सेना आदि
कर्मियों के लिये खद्दर की ड्रैस बनवायी. संभवत यह देश के किसी भी सरकारी प्रतिष्ठान के लिये खादी की पहली खरीद थी.इसी प्रकार उन्होंने आज के अमूल दुग्ध उत्पाद करने वाले प्रतिष्ठान आनंद डेयरी की स्थापना का मार्ग प्रश्स्त कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में श्वेत क्रांति को अभिन्न भाग बना डाला.
क्षेत्रीय अभिलेख अधिकारी श्री रमेश चन्द्र ने कहा कि राष्ट्रीय एकीकरण ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी सरदार पटेल के रहे योगदान की जाकारी आम जनता को है,किंतु इसके बावजूद साक्ष्यों का अध्ययन कर बहुत कुछ नया आने की संभावना अब भी है.