--टोंक के शोध संस्थान में सुरक्षित है कालू राम जी का फरसी में लिखा 'नसबुल अंसाब' ग्रंथ
कालीराम कायस्थ का फारसी ग्रंथ 'नसबुल अंसाब' जिसने दिया राजाओं की धरती को ' राजस्थान 'नाम |
( राजीव सक्सेना) आगरा: गोल्डन ट्राइंगिल के नाम लें या फिर मुगल इतिहास का जिक्र करें पडोसी राज्य ' राजस्थान' का जिक्र जरूर बीच में आता है, लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि मारवाण,मेवाण , हाड़ौती और राजपूताना के नामों से पहचान वाले विभिन्न भू भागों को ' राजस्थान ' के नाम से पहचान देने का काम कालीराम कायस्थ ने किया था और अजमेर रहने वाले होन के कारण उन्हे अजमेरी के नाम से भी जाना जाता था 1जो कलांतर उनके नाम के साथ जुड गया और स्वयं उनके द्वारा भी इसे स्वीकार कर लिया गा।
कालीराम जी के द्वारा जब फारसी में शेधपरक ग्रंथ 'नसबुल अंसाब' लिखा था और उसी में सबसे पहले राजस्थान नाम इस्तमाल में लाया गया। दरअसल रियासतों का इतिहास लिखते समेय कई संदर्भों में मेवाण, मारवाण, हाड़ौती और राजपूताना के बृहद क्षेत्र में विस्तृत रियासतों ,ठिकानेदारों और राज्यों का जब उल्लेख किया तब एक एसे नाम की जरूरत पडी जो पुस्तक में उल्लेखित सभी संबधितों के लिये सहज स्वीकार्य हो। जो जानकारियां हैं उनके मुताबिक 'नसबुल अंसाब' के लिये तथ्य जुटाने के प्रयास में रजवाडों के पुरोहितो, कुल से
संबधित कर्मकांडियों के वर्ग में शामिल माने जाते रहे सेवा प्रदाताओं ,वंश परंपरा के मुलाजिमों , रजबाडाई अभिलेखों आदि का उपयोग किया गया।
राजपूताना का विलय भारत संघ में होने के समय 23 रियासतें थी जिनमें से राजपूताना -अजमेर अंग्रेजो के प्रबंधन में थी जबकि अन्य 22 में देसी रजवाणों के प्रबंधन में थीं। इनमें से 21 के राजा हिन्दू थे और केवल टोंक ही मुस्लिम शासक के प्रबंधन में थी ।
-- अब एक ही प्रति बची है टोंक में
इस एतिहासिक ग्रंथ की जब रचना की गयी तब इसकी कई प्रतियां थीं। संभवत: उन रियासतों को भी इनकी कापियां भेजी गयी थीं जिनका कि इसमें उल्लेख है। किन्तु फारसी भाषा तक राजस्थान में कम ही जानते थे अत:इस ग्रंथ को खास महत्ता नहीं मिल सकी। यहां तक कि उस जयपुर राज्य में, जहां के राजा के राजा की इस ग्रंथ के लिये स्पांसरशिप रही थी । अब इसकी केवल एक ही प्रति बची रह गयी है जो कि वर्तमान में राजस्थान के टौंक शहर के मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान (Maulana Abul Kalam Azad Arabic Persian Research institute, near bus stand, Tonk, Rajasthan 304001) में सुरक्षित है।सबसे ज्यादा आश्चर्य जनक तो यह है कि फारसी भाषा की इस किताब का संदर्भ साक्ष्य के रूप में सटीकता के साथ अनुवाद करवाने की जरूरत तक नहीं समझी गयी। दरअसल टौंक रियसत ही राजस्थान का एक मात्र एसा रजवाडा था जिसका शासक मुसलमान था और उर्दू व फारसी भाषा भाषियों को पराश्रय देता था। यही कारण रहा कि रियासत के रिकार्ड में तमाम उर्दू और फारसी की किताबे भी शामिल थीं।
-- चातुर्य से बना बृहद ग्रंथ
कालीराम जी ने 'नसबुल अंसाब' की रचना 1794 में जयपुर के तत्कालीन शासक महाराजा प्रताप सिंह के कहने पर की । संभवत: महाराज ने यह कार्य अपने राज्य और राजवंश का इतिहास लिखवाने के मकसद से ही शुरू करवाया था। लेकिन कालीराम जी के चातुर्य से इसका विवरण क्षेत्र विस्तृत हो गया और क्रमागत रूप से मेवाड़, मारवाड़ तथा हाड़ौती के राजाओं के वंशों और राज्यों के इतिहस का समावेश इसमें होता चला गया। और अंतत: तैयार हो गया 'नसबुल अंसाब' ।सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसे जयपुर सहित अन्य रियसतों के राजाओं ने भी बिना किसी आपत्ति या संशोधन सुझाये स्वीकार किया।
चूंकि यह ग्रंथ फारसी भाषा में हैं , इस लिये सीमित शोधार्थियों के द्वारा ही इसके प्रति दिलचस्पी दिखायी गयी।फलस्वरूप इतिहास के संदर्भ ग्रंथ के तौर पर इसे उतना महत्व नहीं मिल सका जितना कि मिलना चाहिये था। इसके बाबजूद इसे ही एक बडी उपलब्धि माना जासकता है कि यह अब तक सुरक्षित है और इसे टौक ने नबाब के कुतुब खाने के बाद टोंक के जनपद पुस्तकालय की संरक्षित सूची में स्थान मिला जिसे कि बाद में राष्ट्रीय महत्व के 'मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान'1 की प्रदर्शों की दुर्लभ पुस्तक सूची मे स्थान मिला।
-- जेम्स टॉड जैसी ख्याति नहीं मिल सकी कालीराम जी को
'जैम्स टॉड' विख्यात हिसटोरियन जबकि
कालीराम कायस्थ का उल्लेख तक नहीं होता। |
राजस्थान को उसके नाम ,भौगोलिक क्षेत्र तथा सांस्कृतिक दृष्टि से रियसतो के समुच्य की पहचान देने का काम करने वाले इतिहास विद् कालीराम कायस्थ के बारे मे जहां काफी कम लोग जानते है वहीं कर्नल जेम्स टॉड का नाम अधिक लिया जाता है। जहां कालीराम कायस्थ ने 1794 में जयपुर के तत्कालीन महाराजा प्रताप सिंह के पराश्रय से 'नसबुल अंसाब' पर काम शुरू किया और उपलब्ध विवरण के अनुसार 1796 में उन्होंने अपनी किताब को पूरा कर दिया। । वहीं राजपूताना के रजवाडों को राजस्थान शब्द देने के लिये स्थापित टॉड 1805 के आसपास राजस्थान आए। महाराजा जोधपुर ने उनके शोध परक काम को अधिक सटीक बनाये जाने के लिये अपने पुस्तकालय और दरबार के रिकार्ड से कई साक्ष्य भी उपलब्ध करवाये। इन्हीं के आधर पर बाद में लंदन जाकर वर्ष 1829 में उन्होंने ने अपनी वह एतिहासिक पुस्तक "एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान अथवा सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया" लिखी जो कि अब तक इतिहासकारो के द्वारा रैफ्रैंस के लिये इस्तेमाल की जाती है।कर्नल जेम्स टॉड कर्नल जेम्स टॉड 20 मार्च 1782 में इंग्लैंड में पैदा हुआ। करीब 24 साल भारत में रहे। उदयपुर राजघ्राने की ओर से टॉड की स्मृति में एक पुरुस्कार भी हर साल दिया जाता है और उसका बस्ट भी मौजूद है। जबकि कालीराम कायस्थ 'अजमेरी की प्रतिमा तो दूर प्रमाणित फोटो या उस समय की कला के अनुसार पैंसिल।
--ग्रंथों का ग्रंथ है ' नसबुल अंसाब'
एक अन्य दिलचस्प तथ्य जिसकी जानकारी राजस्थान में रहने वालों में से भी काफी कम को ही होगी कि, ' नसबुल अंसाब' के लेखक कालीराम कायस्थ के बारे में ज्यादा नहीं जानते और नहीं उन्हें यह मालूम कि में अली अहमद का चचनामा, अमीर खुसरो का मिम्ता उल फुतूह, खजाइन उल फुतूह, जिसमें टोंक के बारे जानकारियां मिलने के साथ ही 'तुजुके बाबरी' 'बाबारनामा', हुमायूनामा, अकनामा(आइने अकबरी), तुजुके जहांगीरी, तारीख -ए-राजस्थान, मुंशी ज्वाला सहाय की 'वाकीया-ए- राजपूताना' के बारे में भी विवरण हैं। और इसमें
-- राजस्थान दिवस
राजस्थान दिवस हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है। इससे पहले इस राज्य के तहत आने वाले क्षेत्र और रियसतों को राजपूताना के नाम से जाना जाता था । इस दिन 1949 को राज्य के बनाये जाने के सात चरणीय प्रयासों में से सबसे महत्वपूर्ण पूर्ण हुआ था जिसके तहत जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय कर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। वैसे "राजस्थान" का शाब्दिक अर्थ है "राजाओं का स्थान" । वैसे कुल २२ रियासतों और एक अंग्रेज सरकार के द्वारा प्रशासित बाद में संघीय प्रशासित इकाई को मिलाकर यह बना है।