--वेद व्यास का प्रकट्य स्थल है मांगरौल गांव का मच्छोंदरी नगला
सृष्टी के आदिकाल से ही हैं। इन्हे किसी ने लिखा नही है। यह स्वम भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रगट हुये थे। आज जितना विज्ञान है। वह सब हमरे वेदो मे पहले से ही निहित है। जेसे नवग्रह बिज्ञान ने अब जाकर खोजे लेकिन वह तो वेदो ने हजारो सालो पहले ही बता दिया रामायण मे भी प्रमाण मिलता है।ओर जब हम इसका अध्यन करते है।तो पाते है की यह मानव निर्मित बुद्धि से परे है। वेद विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य है।वेद प्राचीन भारत के पवित्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर का ज्ञान है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं।
समाज सेवी आर के सदेवा में मांगरौल गांव स्थति व्यास पीठ को वेद किये भेंट साथ मे थे , इंजीनियर राजेश शर्मा व पत्रकार राजीव सक्सेना । |
आगरा: 'वेद' भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का आधार माने जाते हैं, ऋषिमुनियों और बृह्मा जी की वाणी व प्रचलित श्रुतियों को संपादित कर चार खंडों में मानवमात्र को संभव करवाने वाले व्यास जी के प्रकट्य स्थल मंगरौल स्थित व्यास पीठ, अब वेद संपन्न हो गयी है। अछनेरा विकास खंड के यमुना तटीय मंगरौल गांव के मच्छोन्दरी नगले में यह स्थित है।7 सितम्बर को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सहित वेद के चारों खंड fह्यमन ड्यूटीज फाऊंडेशन (एच डी एफ) के चेयरमैन श्री आर के सचदेवा ने श्रद्धाभाव के साथ पीठ पुजारी एवं मंदिर के सेवक पं.लक्ष्मण दास शर्मा को प्रदान किये ।इस अवसर पर कुछ ग्राम मवासी भी
मौजूद थे।
श्री सचदेवा ने कहा कि यह आगरा के पवित्रतम स्थानों में से प्रमुख है, कोशिश करेगे कि इसको पौराणिक महत्ता के अनुसार गारिमामय महत्ता मिले । अध्यात्मिक श्रद्धालुओं के अलावा वेद और संस्कत में रुचि रखने वालों को दृष्टिगत आयोजन हों। श्री सचदेवा जो कि ' ह्यूमन ड्यूटी फाऊंडेशन ' के चयरमैन हैं ने कहा कि धार्मिक स्थलों को भी पर्यटकों के बीच प्रचारित और पहचान दिये जाने की उ प्र सरकार की नीति है, वह चाहेंगे कि वेद व्यास के जन्म स्थान तक पहुंच को सहज बनाये जाने के लिये पर्यटन विभाग साईनेज लगवाये व अपने प्रचार साहिय में यहां की जानकारी समाहित करे। इस अवसर पर सचदेवा मिलेनियम स्कूल के प्रबंधन के वरिष्ठ सदस्य इंजीनियर श्री राजेश शर्मा एवं पत्रकार राजीव सक्सेना भी साथ में थे।
-- स्थापित जन मान्यता
जन श्रुतियों और स्थापित मान्यता के अनुसार ऋषि पराशर और निषादाज की कन्या मतस्य गंधा से यही व्यास जी का जन्म हुआ था और जन्म लेने के साथ ही मां की आज्ञा लेकर जीवन लक्ष्यों की प्राप्ति को जंगल में निकल गये। लेकिन चलते समय मां को वचन दे गये कि जब भी वह संकट में हों और उन्हे याद करेंगी तो वह ततकाल प्रकट हो जायेंगे। बाद में मत्स्य गंधा सत्यवती के नाम से जानी गयीं और इसी नाम से उनका महाभारत में उल्लेख है।
-- पहुंच मार्ग
अकबरा गांव में यमुना पुल के बाये ओर मांगरौल गांव है और इसके मंच्छोदरी (मत्य गंधा ) मझरे में यह स्थित है।इस नगले तक शनिदेव मन्दिर मार्ग रुनकुता होकर भी पहुंचा जा सकता है। आगरा के तमाम कम महत्व के स्थान भी प्रचार पाते रहे किन्तु संयोग से मांगरौल गांव स्थति वेद व्यास पीठ और उनके जन्म स्थल के रूप में इस स्थान को पर्याप्त प्रचार नहीं मिल सका।इसका ।जिसका एक कारण गांव का यमुना तटीय होने के नाते पहुंच मुश्किल भरी होना तथा मंदिर का स्वरूप भव्य न हो पाना है।
व्यास पीठ (मन्दिर) मौजूदा मन्दिर स्ट्रैक्चर आगरा में रहे सिधिया शासन काल का है जो कि 1803 तक आगरा में रहा और दौलत राव सिधिया के की सेना के फ्रेंच जर्नल पैरों की सेना की अंग्रेजो के हाथ हारजाने तक रहा। प्रख्यात वेद ज्ञाता एवं संस्कृित त विद्वान मैक्स मुलर ने व्यास पीठ का 1898 में यहां का भ्रमण किया थाजबकि वह राधास्वामी मत का अध्ययन करने और मत के गुरू स्वामी शिवदयाल सह जी महाराज से मिलने और सत्संग में सहभागी होने के लिये आगरा में कई दिनों के प्रवास पर आये हुए थे।
--रोज पूजा होती है
मन्दिर में व्यास जी की प्रतिमा स्थापित है और उसकी पूजा अर्चना की परंपरा को श्री लक्ष्मण दास शर्मा बनाये हुए हैा
वेदों की महत्ता से शायद ही कोई भारतीय अनिभिज्ञ हो इनकी जानकारी अत्यंत सीमित वर्ग को ही है। वेदों के ज्ञान और उल्लेखित पद्यतियों को ही प्रमुखता देने वाले 'आर्य समाज ' की ओर से वेद प्रचार कार्यक्रम होते रहते हैं, अपने समय में आगरा के प्रख्यात उद्यमी रहे स्व धर्म पाल विद्यार्थी के परिवार ने एक वेद प्रचार वाहन तक उपलब्ध करवाया हुआ है।इसी क्रम में विकलांगों के लिये सेवारत रहने वाले समाज सेवी भीश्री विष्णू कपूर भी व्यास पीठ आते रहे है और प्रयास रत रहे है कि इसस्थान की जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।
-- वेद सृष्टी के आदिकाल से ही हैं। इन्हे किसी ने लिखा नही है। यह स्वम भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रगट हुये थे। आज जितना विज्ञान है। वह सब हमरे वेदो मे पहले से ही निहित है। जेसे नवग्रह बिज्ञान ने अब जाकर खोजे लेकिन वह तो वेदो ने हजारो सालो पहले ही बता दिया रामायण मे भी प्रमाण मिलता है।ओर जब हम इसका अध्यन करते है।तो पाते है की यह मानव निर्मित बुद्धि से परे है। वेद विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य है।वेद प्राचीन भारत के पवित्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर का ज्ञान है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं।