26 जून 2017

जे पी सहित आगरा के चार स्टार होटल बिना अनुमति के ही कर रहे हैं जलदोहन

--दो अन्य विख्यात होटलों को मिली अनुमति भी चुनौती के दायरे में
 आगरा: नेशनल ग्रीन ट्रब्यू्नल ( एन जी टी) ने आगरा चार पांच सितारा होटलो से ट्यूब वैल और सबमर्सेबिल पंप लगाकर किये जा रहे जलदोहन को अवैध मानकर इसके लिये नियमानुसार सेंट्रल ग्राऊंड वाटर अथार्टी से अनुमति लेने को कहा है। ये चारों होटल अति दोहित जनपद आगरा के सबसे निचले जलस्तर वाले फतेहाबाद रोड होटल काम्पलैक्स  में स्थित हैं। होटलों के द्वारा जलदोहन का यह
मामला  सितम्ब‍र 2015 में एन जी टी के समक्ष  याची शैलेश सिंह ने पेश किया था। मूल याचिका में आगरा के  ओबराय पैलेस, जे पी पैलेस, मान सिंह, आई.टी सी. मुगल, रैडीसन ब्लू, क्लालर्क शीराज होटलों के नाम थे। इनमें से ओबराय और आई टी सी मुगल ने ग्राऊंड वाटर आयोग से अनुमति मिल जाने संबधी जानकारी पेश कर दी जबकि अन्य चारों में से कोई भी नियत समय मे कागजात पेश नहीं कर सका है। प्राप्त जनकारी के अनुसार ग्राऊड वाटर अथार्टी ने एन जी टी को पक्षाकार के रूप में सूचित किया था कि ये सभी होटल अति दोहित क्षेत्र में हैं और इनकी अर्जियां निरस्त हो चुकी हैं। बाद में आई टी सी मुगल और ओबरॉय की ओर से सैंट्रल ग्राऊंड वाटर अथार्टी की ओर से प्राप्त अनापत्ति  प्रमाण पत्र दाखिल कर दिये गये।
अनुमति की गुंजायिश संदिग्‍ध
याची शैलेया सिंह का कहनाहै कि मुगल और ओबरॉय की अनापत्ति पर भी उन्हें एतराज है जिसे कि आने वाले समय में एन जी टी के समक्ष उठायेंगे ,क्यो कि अति दोहित जनपद के अतिदोहित क्षेत्र में इस प्रकार की अनुमित नही दी जा सकतीं। वहीं सैंट्रल वाटर अथार्टी इस मामले मे अभी खामोश है।
उल्लेखनीय है कि आगरा जनपद देश के 75 और उप्र के 34 अति दोहित जनपदो में से एक है और इसके नाम 113 प्रतिशत तक जलदोहन दर्ज है। उ प्र की स्थिति का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि प्रदेश के सूचीबद्ध अति दोहित जनपदो में से शामली और प्रतापगढ 140 प्रतिशत से अधिक भूजल दोहित करने वाले जनपद हैं, जबकि सहारनपुर 132 प्रतिशत,फीरोजाबाद 117 प्रतिशत तथा आगरा आगरा 113 प्रतिशत जलदोहन वाले जनपद हैं।
 वैसे  याचिका के माध्यजम से याची भले ही और कुछ भी करवाने में सक्षम नहीं हो सके तो भी क्लोज मानीर्टिंग वाले  पर्यावरण संरक्षण को प्रतिबद्ध ताज ट्रिपेजियम जोन अथार्टी (टी टी जै ए) के समक्ष यह तो उजागर करने मे जरूर कामयाब रहे हैं कि सेंट्रल ग्राऊंड वाटर अथार्टी तक अपना दायित्व किस प्रकार निर्वाहन कर रही हैं। 
 ऐजैंसियों के कामकाज के तरीको में बदलाव जरूरी
जला अधिकार फाऊंडेशन नई दिल्लीथ के जर्नल सैकेट्री अवधेश उपाध्याहय का कहना है कि ग्रीन ट्रिब्यूहनल में इस मामले को कौन लेकर गया और उसे अपने प्रयास में कितनी कामयाबी मिली यह बात अलग है किन्तुी सबसे बडा सवाल केन्द्रीय एजैंसी के रूप में केन्द्री य ग्राऊंड वाटर अथार्टी ( सी जी डव्लू  ए) के काम काज का है।113 प्रतिशत जलदोहित जैसे क्षेत्रमें कामर्शियल परपज के लिये जल दोहन की अनुमति देना वाकई में एक गंभीर मामला है। यह कैसे संभव होता रहा है इसकी जानकारी तो सार्वजनिक होनी ही चाहिये। जिससे कि अतिदोहित क्षेत्र मे अनुमति के प्राविधान अगर है तो अन्य। भी इनके आधार पर अपने लिये अनापत्तिर जुटा सकें।
श्री उपाध्याय ने कहा है कि केन्द्री य जला आयोग और केन्द्रीय भूजल अथार्टी की जलसंरक्षण के लिये दिशा देने और भविष्य की कार्ययोजनाये बनाने में महज कागजी भूमिका ही रही हें। यमुना  और चम्बनल तटीय क्षेत्रों में जलस्तयर लगातार तेजी से गिर रहा है।नागरिक जब भी अपने स्ता्र से कोयी प्रभावी कदम उठाने की कोशिश करते है तो इन आयोगों का कागजी तंत्र सक्रिय हो जाता है। भूमिगत जल तथा नदियों में सिल्टश सफाई के आंकडे प्राप्तक करने के प्रयासों को हतोत्साचहित किया जाता है और छोटी से छोटी जानकारी के लिये आर टी आई एकटिविस्टक बनने को प्रेरित किया जता है। उन्होंदने कहा कि वह इन आयोगों की                          इस कार्यसंस्कृति
 को सकारात्मयक  परिणामों से दूर करने वाला  मानते हैं और केन्द्रीय मंत्रियों के संज्ञान में लाकर इसमें बदलाव को प्रयास करेंगे ।