--ड्रेन के ‘ महावीर का नाला’ वाले भाग की बदहाली पर ‘समुदाय विशेष आक्रोषित
नाला मंटोला, जो कभी हुआ करता था 'गोकुला नदी'
: -- फायल फोटो |
आगरा: नाला मंटोला और इसके तटीय क्षेत्र राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान में शामिल किया जाये यह कहना है सिविल सोसायटी आगरा के जनरल सैकेट्री अनिल शर्मा का जो कि छावनी क्षेत्र के शैडो एम एल ए अभिनय प्रसाद के साथ ‘आगरा विजन 2025’ के लिये नाला क्षेत्र का निरीक्षण कर रह थे। श्री शर्मा ने कहा कि यह नाला नगर निगम आगरा और उ प्र जल निगम की यमुना एक्श न इकाई की अछमता का प्रतीक है1लगता है कि नाले पर खर्च किये जाते रहे करोडों रूपये के धन का उपयोग करने में घर लापरवाही की गयी और साथ ही नाले के किनारे रहने वालो को सरकारी धन से होने वाले कार्यों से याथा संभव दूर ही रखा गया। महानगर के गंदेपानी के निस्ता रण का सबसे बडा स्त्रोकत है किन्तुे इसके प्रबंधन ओर अनुरक्ष्ण के लिये उपयुक्तत इंतजामों का नितात
अभाव है।
अभाव है।
श्री अनिल शर्मा ने कहा कि सबसे शर्मानाक हालात नले के उस भाग के हैं जो कि ‘महावीर का नाला’ के नाम से पहचाना जाता है।एतिहासिक कारण और साक्ष्य तो नहीं मालूम किन्तुी स्था’नीय स्त।र पर प्राप्तइ जन जानकारियों के अनुसार यहां बने महावीर टाकीज( वर्तमान में बन्दय) का नाम जैन समाज के अराध्यु महावीर स्वासमी के नाम पर टाकीज का नाम उसके संचालकों के द्वारा रखा गया था। जो दशको तक यहां लैंडमर्क के रूप में विख्याात रहा, इसी के नाम पर नाले के इस भाग को भी महावीर का नाला कहा जाने लगा और अनायास ही आगरा के जैन समुदाय के लिये भावनात्मगक रूप से अपने से जुडा माना जाने लगा। अब जब नाले की स्थिसति बदहाल है तो निश्चिवत रूप से स्थाानीय जनों के लिये जहां पर्यावरण संबधी नागरिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में कष्टाकारी है, वहीं समुदाय विशेष का कोयी भी व्याक्ति कही भी रहता हो उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।
आगरा छावनी के शैडो एम एल ए अभिनय प्रसाद ने कहा कि नाला मंटोला नाला कभी आगरा की महत्व पूर्ण गोकुला नदी के रूप में पहचान रखता था और इसके तटीय क्षेत्रा में संपन्नन लोगों की बसावट थी किन्तुम अब हालात बदले हुए हैं। नगर निगम, जल निगम की लापरवाही से 55 एम एल डी फ्लो के साथ बहने वाले गोकुला नदी के स्वनर्णिम अतीत पर अन्योन की क्या कहूं मुझे खुद ही कभी कभी विश्वानस नहीं होता। इसके आसपास अब देहाणी रोजी रोटी कमाने वालों की बस्तिययां ही रह गयी हैा। बिना सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्व यन और समाजिक बदलाव को प्रतिबद्ध गैर सरकारी संगठनों के कार्यक्रमों के बिना यहां किसी प्रकार का बडा बदलाव लगभग नामुमकिन सा ही है।