‘मुझे नहीं लगता मुगले आजम थीम पार्क बनाने वालों पर पैसे की कमी है’
(अवधेश उपाध्याय: तेरी मेरी नहीं अब ,आगरा की आवाज) |
अ.उ. मेरा फोकस केवल और केवल आगरा की
जनता की पानी की समस्या का समाधान करने वाले ‘आगरा बैराज’ पर ही है।मेरे स्थलीय निरीक्षण और बाद में जानकारों के साथ किये गये विश्लेषण
में बढी बांईपुर इसके लिये सर्वथा उपयुक्त स्थल है।यह भरपूर क्षमता का तभी
बनसकेगा जबकि इसे परंपरागत रूप से पाइलिंग बेस पर बनाया जाये।यमुना नदी साल के 365
दिनों मे से केवल 170 दिन ही गोकुल बैराज से किये जाने वाले 1200 से 700क्यूसेक
डिस्चार्ज के साथ 480फुट(जवाहरपुल पर) के जलस्तर पर बहती है ,अन्यथा 195 दिनों नदी का मिजाज बदलाव वाला रहता है। इनमे भी 55दिन ऐसे
होते है जबकि नदी में से 20हजार क्यूसेक से ज्यादा जलराशि बहकर गुजरती है।अगर
गलत नहीं हूं तो 15 दिन तो वे होते है जबकि नदी से होकर 60हजार से 7लाख क्यूसेक
तक पानी गुजरता है और नदी का जलस्तर 495फुट से ऊपर यानि वार्निंग लेविल के असापास
होता है।अब आप ही बताये कि शिवालिक पर्वत श्रंखला से होकर गुजरने वाली अपने कुल
कैचमेंट एरिया 3,66223वर्ग कि मी में से आगरा तक के 1,70,000 वर्ग
कि मि के पानी को अपने में सिमेट कर बहने वाली देश की इस प्रमुख नदी पर रबड या
गटापार्चा का डैम बनाये जाने को कैसे उपयुक्त माना जाये।
आ.स.फिर भी बनने दें नये प्रयोगों की
तो हमेशा गुंजायिश रहती ही है?
अ.उ. मैं कहां कह रहा हूं कि प्रयोग
नहीं करें, मेरा तो केवल इतना ही कहना है कि आगरा की जनता
पानी की समस्या से दशकों से जूझ रही है, उसके शांत और सहष्णुता
वाले स्वभाव का फायदा उठाकर लगातार प्रयोग ही होते रहे है जिनकी अब तक इंताह हो
गयी है, इस लिये अब यहां के लोगों को बख्श दिया जाये। यमुना
तट की हैरीटेज कॉरीडोर के नाम पर की गयी अवैज्ञानिक खुदाई,
जलशोधन के लिये उस एम बी बी आर टैक्नेलाजी का उपयोग जिसे सुचारू रखने को जलसंस्थानके
पा अपना कोई ट्रेड इंजीनियर नहीं है क्या कम प्रयोग नहीं हैं।इसके अलावा पाइप
लाइन प्रोजेक्ट के नाम पर लगभग 35हजार करोड के अनचाहे जापानी कर्ज से आगरा की
जनता को लाद देना अपने प्रयोग वादियों को
भरपूर मौका दिया जाना नहीं है।
अब आप ही बतायें कि पूरा शहर
जलसंसथान को जलमूल्य, जलकर ,सीवर कर दिये जा रहा
है साथ ही अपनी जरूरत पानी की बातल और बकेट खरीद कर पूरी कर रहा है। मेरा मानना है
कि आगरा में भी पानी माफियाअसरदार हो गया है, अगर ऐसा नहीं
होता तो कम से कम एम बी बी आर टैक्नेलाजी का एक लाख लिटर से अधिक की शोधन क्षमता
वाला डैमो प्लांट शो पीस बनाकर नहीं रख छोडा होता, जबकि इसे
ट्रांस यमुना क्षेत्र में लगाकर जनता को राहत देने के लिये योजना तक बनायीजा चुकी
थी।
आ.स. बैराज के लिये पैसा कहा से
आयेेगा?
अ उ :यह प्रश्न बेमानी है, केन्द्र और राज्य का ‘फिफ्टी -फिफ्टी’ फंडिंग पैटर्न तय है। भारत सरकार पैसे देने
के लिये तैयार बैठी है, मेरी निजी जानकारी में केन्द्रीय
शहरी विकास मंत्रालय की ओर से इसके लिये एक आधिकारिक पत्र भी भेजा हुआ। अब राज्य
सरकार को पहल करनी चाहिये।
अ स : राज्य सरकार के पास संसाधन
बेहद सीमित है, इसे कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है?
अ .उ :आपकी बात एक दम गलत है, जो सरकार ‘मुगले आजम ‘ थीम
पार्क बनाये जाने जैसे बेहद खर्चीले और
देश भर में अपने आप में नायाब प्रयोग करने में मशगूल हो उसके संसाधनों की
थाह आप किस पैमाने से नापेंगे। वैसे मैं तो पहले से ही काफी कुछ समझा हुआ हूं , इसी लिये जनहित के इस काम को प्राथमिकता दिलवाने के लिये सत्याग्रही के
रूप में एक रूपये बैंक ड्राफ्ट आगरा बैराज फंड के लिये मुख्य सचिव को भेज चुका
हूं।
आ .स: 27 अगस्त की सभा के बाद भी
अगर सरकार ने आगरा बैराज के लिये कुछ नहीं किया तब आप क्या करेंगे?
अ .उ : मुझे नहीं लगता कि जनता के
द्वारा संगठित रूप से उठाई गयी आवाज कभी नकारी जा सकती है, प्रदेश सरकार को भी देर सबेर इस हकीकत को स्वीकारना पडेगा। जहां तक जल
अधिकार फाऊंडेशन का सवाल है, संगठन हरसंभव विधि और
लोकतांत्रिक मर्यादा सम्मतउपाये करते रहने को सक्रिय रहगा।
आ स: राजनैतिक दलों के सहोग के बारे
में क्या विचार है?
अ उ : मेरी जानकारी के अनुसार आगरा के
जनजीवन से जुडे हुए सभी राजनीतिज्ञ आगरा में बैराज बनाये जाने को लेकर एक राय है, ताज बैराज से शहर के पानी की जरूरत को जोड कर उन्हें भ्रमित करने का जो काम
लखनऊ में बैठी अफसरशाही ने कर रखा था, वह हमने काफी हद तक दूर
कर दिया है। जनधन की बबार्दी का पर्याय ‘रबड डैम ‘ कसैप्ट के बारे में भी राजनीतिज्ञों को सटीक जानकारियां दी हैं। मैं तो चाहता
हू कि राजनैतिक दलों की इकाईयां अपनी बैठको में आगरा बैराज, ताज
बैराजऔर रबड डैम आदि को अहम मुददा मानकार चिंतन मनन कर खुद निष्कर्ष निकाले कि आगरा
की जनताप के लिये क्या उपयोगीहै ,क्या नहीं।