-- कायस्थ समाज का प्रमुख आस्था स्थल जहां राज तिलक के बाद राम खुद पहुंचे थे पूजा करने
रावण का दमन कर राम जी जब 14 साल के बाद अयोद्या लौटे तब उनके राजतिलक की धूम धाम से तैयारी की गयी। इस आयोजन में भाग लेने के लिये संदेश (अमंत्रण ) भेजने का काम अयोद्या के अंतरिम शासक भरत ( राम के खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे भरत थे।) ने गुरु वशिष्ठ को सौंपा। जिन्होंने अपने शिष्यों को दायित्वसोप कर राजतिलक की तैयारी शुरू कर दी।
दीपावली को रखी कलम
राजतिलक के भव्य आयोजन के दौरान राम ने सभी देवी देवतओं को देखा किन्तु चित्रगुप्त जी नहीं दिखे। जब उन्होंने अपने अनुज भरत से इस समबन्ध में पूछा तो खोजबीन शुरू हुई और पता चला कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त जी को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये। उधर चिऋगुप्त जी भी राम दरबार मे न बुलाये जाने के कारण को समझ गये थे । उन्हों ने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य माना और और पूरा प्रकरण राजा राम के संज्ञान में लाये जाने के लिये यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया।
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से अपने अपने धमों को लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का का लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजना है। उन्हे त्रेता युग के इस 'रिवोल्ट' की गंभीरता को समझते देर नहीं लगी और इस स्थति को जल्दी से जल्छी समाप्त होने की कामना करने लगे ।
'आत्म सम्मान' की भावना को राजा राम ने दिया आदर
राम तो अंर्तयामी थे ही अपने राज्य की इस अप्रिय स्थति को सही करने के लिये सक्रिय हो गये। उन्हों ने सहज भाव से गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझा और अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर दीपावली के तीसरे दिन ' द्विज ' पर भगवान चित्रगुप्त की न केवल स्तुति की अपितु गलती के लिए क्षमा याचना भी की।बस तभी से द्विज को कायस्था समाज में खासमहत्व है और इस दिन उनके रों में इसी दिन 'कलम की पूजा' होती है। भगवान राम के द्वारा कलम के कारण महत्व दिये जाने के बृतांत को याद कर समाज के लो लोग अपने को कलम धनी होने के लिये गौरान्वित महसूस करते हैं।
अब तो खैर कम्प्यूटर का जोर है किन्तु 21 वीं सदी तक कायस्थ परिवरों मे 'कलम दान ' घरों में खासतौर पर करीने से 'ऐंटिक प्रदर्श ' के रूप में जरूर रखा मिलजाता था। कमीज की बॉयी जेब में 'फाऊंटिन पैन ' लगकर रखने का चलन भी था। पुरानी परंपरा के प्रति जागरूकता रखने वाले परिवरों के सदस्य कलम का दिन में इस्तेमाल शुरू करने से पहले एक बार उसे अपने माथे से जरूर छुआते थे। ग्वालियर/कानपुर से प्रकाशित कायस्था समाज की कभी प्रमुख रही पत्रिका 'वालैंटियर' में इस पर एक लेख भी विस्तार से प्रकाशित हुआ था।
'श्री धर्म हरि मंदिर'
यह मन्दिर अब भी है और श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे 'श्री धर्म हरि मंदिर' कहा गया है । धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। कायस्थ समाज में तो इसकी मान्यता सबसे प्रमुख आस्था स्थल के रूप में है।
त्रेता युग में घटी राम राज्य में घटी इस पहले रिवोल्ट की घटना और उसकी परिणिती को चित्रगुप्त के वशंजो ने कभी विस्मृत नहीं होने दिया। ऐसा माना जाता है, कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है।( राजा राम का राजतिलक दीपावली के दिन हुआ था तथा यम-द्वितीया के दिन वह श्री चिऋगुप्त जी के श्री धर्म-हरि मन्दिर पूजा अर्चना करने पहुंचे थे। ) ।
कायस्थ धाम सभा( K D S )
अयोद्या में बडे बडे काम हो रहे हैं ,राम परिवार से जुडे तमाम भनों और स्थानों का जीर्णोद्धार हो रहा है ।लेकिन 'श्री धर्म हरि मंदिर' को भव्य बनाये जाने के लिये भी कुछ हो रहा है , कम से कम इसकी जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं है। यह बात अलग है कि चिऋगुप्त वंशजो के स्थानीय संगठन संगठन कायस्थ धाम सभा ने सक्रियता बनायी हुई है और अपने स्तर से तो मन्दिर के जीर्णोद्धार को सक्रिय है।लेकिन अयोद्यामें राम मन्दिर बनाये जाने के बाद अन्य स्थानों के समरूप इस आस्था स्थल को भी भव्य रूप मिल सके इसके लिये काफी संसाधन अपेक्षित हैं।
इस मन्दिर के बारे में कई समाजिक संगठन अक्सर पूछताछ करते रहते हैं , उनके द्वारा मन्दिर की देखभाल करने वाले संगठन कायस्थ धाम सभा( K D S ) अयोद्याजी] (मो नं. 082991 56811 तथा ई मेल- srivastav.aradhana30@gmail.com पर भी संपर्क किया जा सकता है।
मन्दिर की जाकरी व्यापक करने का अभियान
पेशे से जर्नलिस्ट और स्केच आर्टिस्ट सुश्री कनिका चन्देल रायजादा इस मन्दिर के अभियान को गतिदेने के लिसये लगी हुई हैं, वारणसी की सुश्री आकांक्षा सक्सेना, जो कि वारणसी से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ' सच की दस्तक' की न्यूज एडीटर और ब्लागर हैं, मन्दिर के डौक्यूमेंटशन को अनलाइन करने के कार्य को प्रयासरत हैं। (तथ्य साभार: संगठन कायस्थ धाम सभा,अयोद्या)
पेशे से जर्नलिस्ट और स्केच आर्टिस्ट सुश्री कनिका चन्देल राजादा इस मन्दिर के अभियान को गतिदेने के लिसये लगी हुई हैं, वारणसी की सुश्री आकांक्षा सक्सेना, जो कि वारणसी से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ' सच की दस्तक' की न्यूज एडीटर और ब्लागर हैं, मन्दिर के डौक्यूमेंटशन को अनलाइन करने के कार्य को प्रयासरत हैं। (तथ्य साभार: संगठन कायस्थ धाम सभा,अयोद्या)
आस्था स्थल,जहां राजा राम ने स्वयं पहुंच कर 'स्वभिमान' भाव को दिया था आदर |
(राजीव सक्सेना) -आगरा: अयोद्या में 'राम मन्दिर' बन रहा है, देश भर में खुशी और स्वगत का राम मय माहौल है। दिव्य क्षमताओं वाले मर्यादाओं का पालन करने वाले इस महान चरित्र ने समाज को दिशा देने वाले जो आदर्श स्थापित किये हैं ,वे न केवल सुस्थापित हैं वरन् आज भी प्रासंगिक हैं। राजकीय आयोजन में मेहमानों को निमंत्रित करने का प्रोटोकोल के प्रति सत्ता का संवेदनशील होना रामराज्य का पहला संदेश था। बात राममन्दिर के शिलान्यास के भव्य कार्यक्रम के अवसर पर पूर्व उप प्रधान मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी सरीखे 'राम मन्दिर ' आंदोलन से जुडे दिग्गगजो को कार्यक्रम में बुलाये जाने या न बुलाये जाने की नहीं ।त्रता युग में श्री राम के अयोद्या में हुए राजतिलक समारोह के आमंत्रण को लेकर घटी
घटना की है।रावण का दमन कर राम जी जब 14 साल के बाद अयोद्या लौटे तब उनके राजतिलक की धूम धाम से तैयारी की गयी। इस आयोजन में भाग लेने के लिये संदेश (अमंत्रण ) भेजने का काम अयोद्या के अंतरिम शासक भरत ( राम के खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे भरत थे।) ने गुरु वशिष्ठ को सौंपा। जिन्होंने अपने शिष्यों को दायित्वसोप कर राजतिलक की तैयारी शुरू कर दी।
दीपावली को रखी कलम
राजतिलक के भव्य आयोजन के दौरान राम ने सभी देवी देवतओं को देखा किन्तु चित्रगुप्त जी नहीं दिखे। जब उन्होंने अपने अनुज भरत से इस समबन्ध में पूछा तो खोजबीन शुरू हुई और पता चला कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त जी को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये। उधर चिऋगुप्त जी भी राम दरबार मे न बुलाये जाने के कारण को समझ गये थे । उन्हों ने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य माना और और पूरा प्रकरण राजा राम के संज्ञान में लाये जाने के लिये यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया।
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से अपने अपने धमों को लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का का लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजना है। उन्हे त्रेता युग के इस 'रिवोल्ट' की गंभीरता को समझते देर नहीं लगी और इस स्थति को जल्दी से जल्छी समाप्त होने की कामना करने लगे ।
'आत्म सम्मान' की भावना को राजा राम ने दिया आदर
राम तो अंर्तयामी थे ही अपने राज्य की इस अप्रिय स्थति को सही करने के लिये सक्रिय हो गये। उन्हों ने सहज भाव से गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझा और अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर दीपावली के तीसरे दिन ' द्विज ' पर भगवान चित्रगुप्त की न केवल स्तुति की अपितु गलती के लिए क्षमा याचना भी की।बस तभी से द्विज को कायस्था समाज में खासमहत्व है और इस दिन उनके रों में इसी दिन 'कलम की पूजा' होती है। भगवान राम के द्वारा कलम के कारण महत्व दिये जाने के बृतांत को याद कर समाज के लो लोग अपने को कलम धनी होने के लिये गौरान्वित महसूस करते हैं।
अब तो खैर कम्प्यूटर का जोर है किन्तु 21 वीं सदी तक कायस्थ परिवरों मे 'कलम दान ' घरों में खासतौर पर करीने से 'ऐंटिक प्रदर्श ' के रूप में जरूर रखा मिलजाता था। कमीज की बॉयी जेब में 'फाऊंटिन पैन ' लगकर रखने का चलन भी था। पुरानी परंपरा के प्रति जागरूकता रखने वाले परिवरों के सदस्य कलम का दिन में इस्तेमाल शुरू करने से पहले एक बार उसे अपने माथे से जरूर छुआते थे। ग्वालियर/कानपुर से प्रकाशित कायस्था समाज की कभी प्रमुख रही पत्रिका 'वालैंटियर' में इस पर एक लेख भी विस्तार से प्रकाशित हुआ था।
'श्री धर्म हरि मंदिर'
यह मन्दिर अब भी है और श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे 'श्री धर्म हरि मंदिर' कहा गया है । धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। कायस्थ समाज में तो इसकी मान्यता सबसे प्रमुख आस्था स्थल के रूप में है।
त्रेता युग में घटी राम राज्य में घटी इस पहले रिवोल्ट की घटना और उसकी परिणिती को चित्रगुप्त के वशंजो ने कभी विस्मृत नहीं होने दिया। ऐसा माना जाता है, कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है।( राजा राम का राजतिलक दीपावली के दिन हुआ था तथा यम-द्वितीया के दिन वह श्री चिऋगुप्त जी के श्री धर्म-हरि मन्दिर पूजा अर्चना करने पहुंचे थे। ) ।
कायस्थ धाम सभा( K D S )
सरककार के संज्ञान में न लिये जाने को दृष्टिगत 'कलम धनी' खमोशी के साथ स्वयं जुटे हैं मन्दिर के जीर्णोद्धार में |
अयोद्या में बडे बडे काम हो रहे हैं ,राम परिवार से जुडे तमाम भनों और स्थानों का जीर्णोद्धार हो रहा है ।लेकिन 'श्री धर्म हरि मंदिर' को भव्य बनाये जाने के लिये भी कुछ हो रहा है , कम से कम इसकी जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं है। यह बात अलग है कि चिऋगुप्त वंशजो के स्थानीय संगठन संगठन कायस्थ धाम सभा ने सक्रियता बनायी हुई है और अपने स्तर से तो मन्दिर के जीर्णोद्धार को सक्रिय है।लेकिन अयोद्यामें राम मन्दिर बनाये जाने के बाद अन्य स्थानों के समरूप इस आस्था स्थल को भी भव्य रूप मिल सके इसके लिये काफी संसाधन अपेक्षित हैं।
इस मन्दिर के बारे में कई समाजिक संगठन अक्सर पूछताछ करते रहते हैं , उनके द्वारा मन्दिर की देखभाल करने वाले संगठन कायस्थ धाम सभा( K D S ) अयोद्याजी] (मो नं. 082991 56811 तथा ई मेल- srivastav.aradhana30@gmail.com पर भी संपर्क किया जा सकता है।
मन्दिर की जाकरी व्यापक करने का अभियान