3 दिसंबर 2019

'शहर -ए- दास्‍तां ' शुरू हुआ 'ताज सि‍टी' की जरूरत का एक अभि‍यान

--पहले चरण में  शहर के मुगलकालीन जलप्रबंध तंत्र की ली गयी खोज खबर 
मुगगल कालीन जल वि‍तरण प्रणाली पर चर्चारत ,इन्‍सेट में पुराना जलसंचय पौंड/

आगरा: 'शहर -ए- दास्‍तां ' ताज सि‍टी में शुरू हुई एक ऐसी पहल है, एक ऐसी पहल है, जि‍सके माध्‍यम से आगरा की उन वि‍रासतों की जानकारि‍यां नागरि‍कों तक सटीकता के साथ पहुंच सकेंगी जो कि‍ कालचक्र के चलते भुलायी जा चुकी हैं या उनके बारे में उपलब्‍ध जानकरि‍यां सतही व कि‍वदंति‍यों पर ही आधारि‍त हैं।
आगरा की इन कम प्रचलि‍त वि‍रासतों की जानकारी लेने और चि‍न्‍हि‍त करने के बाद प्रचारि‍त करने का अभि‍यान 'हाईड्रोलाजीकल हैरि‍टेज ' यानि‍ जल  वि‍ज्ञान  एवं वि‍तरण तंत्र के अध्‍ययन के साथ शुरू हुआ।   जि‍सकी मौजूदगी अब भी ढूंढी जा
सकती है। ट्रास यमुना के रामबाग एवं एत्‍मादौला स्‍मारक परि‍सर बनने के बाद से इसी तंत्र के तहत बीसवीं सदी तक हरेभरे रहे। यही नहीं नागरि‍कों की पानी संबधी जरूरत को पूराकरने में इस सि‍स्‍टम का ही भरपूर योगदन रहा। बाद में उपनि‍वेश कॉल शुरू होने के साथ सामाजि‍क एवं सांस्‍कृति‍क  स्‍थति‍यों में बदलाव के कारण यह छि‍न्‍न भि‍न्‍न हो गयी।
'हाईड्रोलॉजीकल हैरीटेज को समर्पि‍त  इस 'वाक'  के दौरान अनेक जगह पुरानी जल वि‍तरण प्रणाली अवशेष साक्ष्‍य केरूप में मौजूद पाये गये और इनको वि‍रासत के रूप में संरक्षि‍त कर इस जल प्रणाली की जानकारी स्‍थानीय नागरि‍कों एवं शहर भ्रमणार्थि‍यों के लि‍ये रुचि‍कर मान प्रचारि‍त करने की दृष्‍टि‍ से उपयोगी माना गया। 
   यह प्रयास इस लि‍ये भी 'आगरा' की सामायि‍क जरूरत मना जा सकता है क्‍यों कि इसमें  शहर के  स्‍थानीय नागरि‍कों ,खास कर शि‍क्षकों, जागरूरकता रखने वाले युआओं ,टूरि‍स्‍ट  गाइड और प्रौफैशनलों की भागीदारी रही।   पैकेजों के तहत आने वाले टूरि‍स्‍टों के अलावा  आगरा घूमने आते रहने वालों के लि‍ये भी उपरोक्‍त जाकारि‍यां काफी रुचि‍कर है।  भ्रमणार्थी अपने शहरों मे लौट कर यहा की इन  हैरीटेजों संबधी जानकारि‍यां और लोगों को बता कर यहमि‍थि‍क तेडते है कि‍ आगरा में ताजमहल के अतरि‍क्‍त और भी बहुतकुछ देखने और समझने को है। वस्‍तुत:  परि‍चि‍तों को भी आगरा घुमने जाने को प्रेरि‍त करते हैं जो अपरोक्ष रूप से टूरि‍जम प्रमोशन ही है। भावी पर्यटकों को प्रेरि‍त करते हैं।
--पहल जो सबको भायी
  शहरे -ए -दास्‍तान  दरअसल आगरा ही नहीं उ प्र में कही भी कि‍या जा रहा पहला अभि‍नभ प्रयोग है। इसकी परि‍कल्‍पना और प्रोजैक्‍ट बनाये जाने के बाद क्रि‍यान्‍वयन को पहल सुश्री शहि‍ना  खान और सुश्री श्रद्धा अरोडा के द्वारा की गयी है। सांस्‍कृतिक वि‍रासतों एवं महानगरों की ढाचागत जरूरतों की बारीखी से जानकारी रखने वाली दोनो ही युवा कल्‍पनाकार  आगरा में ही जन्‍मी और पली बढी हैं और यही कारण है कि वे 'आगरा ' के प्रति स्‍वभावि‍क एवं अधि‍कारि‍ता भाव (ओनरशि‍प सैंस)रखती हैं। 

--संकल्‍पि‍त शाहि‍ना और दृढ श्रद्धा
शाहि‍ना तो वि‍रासत प्रबंधन (हैरीटेज मैनेजमेट ) और शहरी वि‍कास के बारे में  पेशागत दृष्‍टि‍कोण भी रखती है जि‍सकी कि आगरा को अत्‍यधि‍क जरूरत है। उच्‍च संस्‍थाओं में देश वि‍देश में कि‍ये अध्‍ययनों के कारण माना जा सकता है । वर्तमान में शाहि‍ना भारत सरकार के शहरी वि‍कास मंत्रालय के स्‍मार्ट सि‍टी मि‍शन  के साथ वि‍शेषज्ञ के रूप मे कार्यरत हैं।  स्‍कूल आफ प्‍लानि‍ग एंड आर्कीटैक्‍टचर वि‍जि‍टि‍ग फैकेल्‍टी  के रूप में भी कार्यरत हैं। वहीं श्रद्धा अरोडा कंजर्वेशन आर्कीटैक्‍ट है तथा दयालबाग डीम्‍ड वि‍वि‍ के अर्कीटैक्‍चर कॉलेज में शि‍क्षण का कार्य करती हैं। इसके साथ ही आगरा स्‍मार्ट सि‍टी कंसल्‍टैंट के रूप मे भीअपनी सेवाये दे रही हैं। उनका कहना है कि‍ वास्‍तव में हमारा मकसद सांस्‍कृति‍क धरोहर के संरक्षण को  समन्‍वि‍त वि‍कास आधार भूत कारोको के रूप में स्‍थपि‍त करवाना है। जि‍ससे यह वि‍भि‍न्‍न माध्‍यमों से प्रचारि‍त होते रहे महानगर के 2030 के शहरी वि‍कास के दि‍शा निर्धारको के लि‍ये प्राथमि‍कता रहें। इसके लि‍ये वि‍रासत की दृष्‍टि से इन पद इन महत्‍वपूर्ण स्‍थानों की पद यात्रा (वाक), इन पद याऋाओं के दौरान स्‍थानीय रहवासि‍यों के साथ चर्चा, कार्यशालाओं का आयोजन और स्‍टूडि‍यों कार्यक्रमों का आयोजन इसके लि‍ये माध्‍यम बनाये जायेंगे।
आगरा की पुरानी बसावट से शुरू हुई 'शहर ए दास्‍तां ' के लि‍ये जानकारि‍यां संग्रहि‍त
करने का सि‍लसि‍ला।
-- 'शहर -ए- दास्‍तां ' के अगले चरण के रूप में  वाक ऐंड टाक
के रूप  सघन चेत्रों में भ्रमण कार्यक्रम आयोजि‍त कि‍या गया।जामामस्‍जि‍द ति‍राहे से हींग की मंडी तक नि‍काले गये इस भमण कार्यक्रम के तहत उन तमाम बि‍ल्‍डि‍गों को चि‍न्‍हि‍त कि‍या गया श्‍हर की पुरातन पहचान का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करती हैं।  अभि‍यान का 'डि‍सकवर आगरा'  सीरि‍ज के तहत पहला आयोजन था।  इसमें वि‍रासत के प्रति‍ संवेदनशीलों , युवा पेशेवरों शोधकर्त्‍ताओं और शि‍क्षा वि‍दों की इसमें पर्याप्‍त संख्‍या में भागीदारी रही।