--आजादी के पूर्व रहे वैचारिक द्वन्द की आगरा में सशक्त मंचिय अभिव्यक्ति
पूना पैक्टके दृष्य ने जीवंत किये आजादी के इतिहास के पन्ने --फोटो: असलम सलीमी |
त्मा गांधी और डा भीम राव अम्बेडकर के बीच आजादी के पूर्व जो अंर्तद्वन्द चला था उससे वर्तमान युवा पीढी को डाअम्बेडकर विश्वविद्यालय के 'जे पी सभागार' में मंगलवार को 'गांधी और आंबेडकर' नाटक मंचितकर रूबरू करवाने का प्रयास किया गया।
गांधीजी का उनके स्वराज्य ,छूआ छूत और हरिजन संवधी विचारों के लिये जनमानस में जो चित्र रहता आया है उसे शब्दों से उकेर कर एकदम ताजा करने में मंचीय कलाकार काफी हद तक कामयाब रहे। ठीक इसी प्रकार बाबा साहिब के बारे नयी पीढी को उनके उस सामाजिक संघर्ष की जानकारी देने का प्रयास किया गया जो कि उन्हें युग पुरुष के रूप में तो जानती है किन्तु उन स्थितियों से अनभिज्ञा है जिनका कि उन्हें मानसिक अंर्तद्वन्द और सामाजिक संघर्षों के द्वारा
वर्ग विशेष में सदियों से चले आ रहे दासत्व भाव से छुटकारे को चलायी अपनी मुहिमो के वक्त सामना करना पडा था ।डा अम्बेडकर विविआगरा के वी सी डा अरविंद कुमार ने किया 'गांध और आंबेडकर नाटक का उद्घाटन।फोटो:असलम सलीमी |
नाट्य अभिव्यक्ति में भी इस तथ्य को नहीं लाया जा सका कि डा अम्बेडकर और नेहरू जी के बीच ही वस्तविक मतभेद थे, गांधी जी तो एक बीच की ऐसी कडी थे सामाजिक और धार्मिक संरचनाओं केआधार पर देश को और अधिक टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। दोनों के ही अंग्रेजों से बहुत अच्छे संबध थे। नेहरू जहां चाहतेथे कि पहले अंग्रेज भारत से जायें वहीं डा अम्बेडकर को लगता था कि जायें तो जरूर किन्तु जो भावी व्यवस्था हो वह कट्टर हिन्दूवादी उस व्यवस्था की संरक्षक न हो जिसके तहत शूद्र,दलित या हरिजन हाशिये पर ही रखेजाते रहे। नाट्य मंच से अभिव्यक्तियों की व्यापक संभावना रहती हैं,शायद इस पर भी कभी प्रस्तुत नाटक के लेखक राजेश कुमार जी की ही सशक्त कलम चले।मंचन के दर्शकों में मुख्यातिथि के रूप में डा अम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति डा अरविंद कुमार दीक्षित तो गारिमा बढायीरहेथे किन्तु दर्शक वर्ग में की शोभा बढाने वालों श्री करतार सिंह भारतीय एडवोकेट भी शामिल थे । जो शायद अकेले थे जिन्होंने डाक्टर साहब को ने केवल आगरा मेहुईउनकी सभाओं में बोलते सुना बल्कि तत्कालीन आयोजनों की व्यवस्थाओं में एक युवा के रूप में भागीदारी भी की थी।
स्व जयप्रकाश नारायण के नाम पर बने 'जे पी सभागार' का मंच हुई इस सशक्त प्रस्तुति से जो वैचारिक अभिव्यक्तियों का सिलसिला शुरू हुआ है उसे अगे भी चलते रहने की अपेक्षा को डादीक्षित कीइस घोषणा से बल मिलता है कि वह स्वयं भी कुछ स्क्रिप्ट मंचन के लिये देंगे। डा डीबी शर्मा ,डाआनंद टाईटलर , दिलीप रघुवंशी ,पत्रकार का.स्नेही किंथ, डा गिरजा शंकर,ओम प्रकाश पाराशर, कविवर रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी आदि जो भी नट्यविधा की सूझ रखते थे ,ने डाकुलदीप त्यागी(डा भीमराव अम्बेडकर),सुभाष चन्द्र(महात्मागांधी),श्रष्टी गुप्ता(रमाबाई अम्बेडकर-बाबासाहिब कीपत्नी)विराज नायक,स्वपनिल सोलंकी,विपिनकुमार,रिहान खान, रियाज अहमद, खुशी, याशिका अग्रवाल,वैशाली पाराशर आदि सभी कलारों ने मंचन में छोटी से छोटी भूमिका को जीवंत करने का कोयी अवसर नहीं छोडा।
फ्रंडस थियेटर की इस प्रस्तुति का निर्देशन युवा डायरैक्टर अभिनव पाराशर ने जिसअंदाज में किया उससे उम्मीद हैकि वह वक्त दूर नहीं जबकि वहअपनेआपमें एक खास पहचान बनचुकेंगे। सोनू सोलंकी, इमरान खान,कनिष्ठापाठक,आशीश कुमार, की मंचीय व्यवस्थाओं में सक्रिय सहभागिता रही।