25 जून 2015

केजरीवाल से ले सबक उ प्र की समाजवादी सरकार

(राजीव सक्सेना) चाहे बि‍जली कंपनि‍यों के खि‍लाफ लडाई हो ,या फि‍र मीडि‍या माफि‍या के खि‍लाफ ,केवल केजरी वाल मोर्चे पर असली लडाई लडते नजर आये हैं। जबकि‍ उ प्र की समाजवादी सरकार और भारतीय जनता पार्टी 'घुटना टेकू' की स्‍थि‍ति‍ में । दि‍ल्‍ली के हाल में बजट सत्र में उन्‍हों ने दि‍ल्‍ली में मजीठि‍या वेतन बोर्ड की सि‍फारि‍शें लागू करने की घोषणा कर दी है।अत्‍यंत सहास भरा काम है।दि‍ल्‍ली का आम पत्रकार इससे लाभान्‍वि‍त होगा।उन्‍होंने यह उस हालत में कि‍या जब कि‍ बड बडे मीडि‍या हाऊस उन पर उसी दि‍न से दबाव डालने लगे थे जब से उनसे मि‍लने जस्‍टि‍स मजीठि‍या पहुंचे थे..
जहां तक यू पी का सवाल है,सबसे ज्‍यादा दुर्गति‍ प्रेस वालों की राज्‍य में है।सचि‍वालय के मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों को पूरे प्रदेश का पत्रकार मानलि‍या गया है,उन्‍हीं को मुख्‍यमंत्री जो कि‍ खुद प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क वि‍भाग के मंत्री भी है उपकृत करते रहते हैं।अगर आर टी आई का उपयोग जानकारी जुटाने में कि‍या जा सके तो सरकार के चमत्‍कारी कृत्‍य सामने आ जायेंगे।अब तो पत्रकारों के संगठनों की बैठक तक में खुद पहुचना समय नष्‍ट करना मानकर अपने 'एवजि‍यों ' को भेजते रहते हैं। यू पी में प्रकाशनों की संख्‍या जहां कम हुई है वहीं बहुसंस्‍करणीय प्रकाशन संख्‍या में बढे हैं कि‍न्‍तु उनका असर कम हुआ है।टाइटि‍ल की पहचान बनी रहे इसके लि‍ये ज्‍यादातर को मेले ,शि‍वि‍रों जैसे आयोजन करने पड रहा हैं,चादर,टी सैट आदि‍ ग्राहक आकर्षि‍त करने जैसे फंडों को इस्‍तेमाल करने को वि‍वश होना पड रहा है।पडोसी राज्‍य एम पी की हालत तो और ज्‍यादा खराब है।कम तन्‍खा और न्‍यून सुवि‍धाओं के बाबजूद मजीठि‍या कमीशन लागू होना तो दूर छटनी का काम ही अब तक चल रहा है।हालतों से अजीज आ चुके हर छोटा बडा पत्रकार मौका मि‍लते ही एम पी छोडने में ही अपना भवि‍ष्‍य सुरक्षि‍त मानता है।