21 मई 2015

बहादुर वायू सेनाअधि‍कारी पदक नीलाम घर से छुडाने को धन नहीं दि‍या कल्‍चर वि‍भाग ने

--वायूसेना को अपने इंटरनल फंड से खरीदने पडे हैं जम्‍बू मजूमदार के क्रास और मैडि‍ल

(सरकार की उदासीनता के कारण जॉबाज जम्‍बू मजूमदार के
मैडि‍ल लंदन के नीलाम घर से खुद ही छुडाने पडे एयरफोर्स को) 
आगरा:टीपू सुल्‍तान की तलवार को तो लंदन के आक्‍शन हाऊस से भारत वापस लाने को एक उद्यमी आगे आकर खरीद सकता है,वहीं भारतीय वायुसेना को गौरवमयी परंपराओं का इति‍हास आधार देने वालों में से मुख्‍य करण कृष्‍ण  (जम्‍बू )मजूमदार के मैडि‍ल लंदन के नीलाम घर से..
वापस देश में लाने को कार्पोरेट घरानों के उद्यमी तो दूर भारत सरकार तक पैसा खर्च करने को तैयार नहीं है। फलस्‍वरूप एयरफोर्स को अपने...
ही धन से डि‍स्‍टवंगि‍श फ्लाइंग क्रास (डी एफ एस)और वार मैडि‍ल की खरीद करनी पडी।
 भारतीय वायू सेना को दूसरे वि‍श्‍वयुद्ध के अपने बहादुर अफसर जम्‍बू मजूमदार को दि‍या गया डि‍स्‍टवंगि‍श फ्लाइंग क्रास (डी एफ एस)और वार मैडि‍ल लंदन के पुरानी वस्‍तुओं के नीलमाधर मार्टन एंड ईडन से खरीद पर तीस हजार पौंड (28 लाख रुपये) रुपया अपने (इंटर्नल फंड)धन का इस्‍तेमाल करना पडा है।
हकीकत में वायू सेना को अपना धन इस प्रकार के काम पर खर्च करने का दुर्लभ या पहला अवसर है।रक्षामंत्रालय के द्वारा मैडि‍ल को अधि‍ग्रहि‍त करने के लि‍ये सांस्‍कृति‍क मंत्रालय को फाइल भेजी थी कि‍न्‍तु जब वहां से कोई जबाव नहीं आया और आक्‍शन हाऊस के द्वारा वायुसेना को सबसे सटीक ग्राहक मानकर लगातार संपर्क कि‍या जाता रहा कि‍न्‍तु सांस्‍कृति‍क मंत्रालय की उदासीनता बरकरार ही रही। जब खरीदने का तय की गयी अंति‍म तारीख 26मई एक दम नि‍कट आ गयी तक यह नि‍र्णय करना पडा।
वायू सेना के लि‍ये इस खरीद को लंदन स्‍थि‍त भारतीय हाईकमीशन में तैनात एयर अटैची ने कि‍या। इस खरीद को अंजाम देने के बाद वायूसेना मुख्‍यालय की ओर से कोई भी प्रेस रि‍लीज जारी नहीं की गयी और नहीं इनको कही प्रदर्शि‍त  कि‍या गया।संभवत: ऐसा सरकार के सामने इस खरीद को लेकर उसके अपने सांस्‍कृति‍क मत्रालय की कार्यशैली को लेकर उत्‍पन्‍न हो सकने वाले वि‍वादा और तीखे कटाक्षों का कारण खुद को न बनने देने के लि‍ये कि‍या गया।
वैसे भारत सरकार के द्वारा खरीद के प्रस्‍ताव को महत्‍व न दि‍ये जाने के बावजूद वायूसेना ने इन सम्‍मान पदकों को शुरू से ही अपने इति‍हास का ‍ महत्‍वपूर्ण साक्ष्‍य माना है।जम्‍बू  का दूसरे वि‍श्‍वयुद्ध के दौरान रॉयल इंडि‍यन एयफोर्स के हवावाज के रूप में  वर्मा अप्रेशन के अलावा चर्चि‍त वर्मा और नारमंडी आप्रेशनों में महत्‍वपूर्ण योगदान था।उनके द्वारा जानजोखि‍म में डालकर असुरक्षि‍त क्षेत्रो में की गयी उडानों को रायल एयरफोर्स ने अत्‍यंत गंभीरता के साथ लि‍ये और सम्‍मानि‍त कि‍या।कि‍सी भी भारतीय पायलट को उस समय तक इस प्रकार के पदकों से सम्‍मानि‍त होने का अवसर नहीं मि‍ला था।दूसरे वि‍श्‍वयुद्ध के बाद भी जम्‍बू  ने वायूसेना के लि‍ये जो योगदान दि‍या उसके लि‍ये आज भी उन्‍हें आधुनि‍क वायू सेना के आधार स्‍थंभ सर्जक के रूप में याद कि‍या जाता है।
 हालांकि‍ आक्‍शन हाऊस से खरीदे गये पदकों के भारत आने में अभी कुछ समय लग सकता है कि‍न्‍तु जब भी यहां पहुंचेंगे उन्‍हें वायू सेना म्‍यूजि‍यम में मुख्‍य प्रदर्श के रूप में स्‍थान दि‍या जायेगा।
खैर भारतीय वायू सेना के महत्‍वपूर्ण प्रदर्श तो अब लौट ही आयेंगे कि‍न्‍तु सबसे शर्मनाक इनका लंदन के आक्‍शन हाऊस तक पहुंचना है।खासकर तब जबकि‍ उनके बेटे सालि‍न मजूमदार ने ही बेचा हो। वहीं उनकी स्‍क्‍वार्डन के  .एयरमार्शल (रि‍टायर्ड) अनि‍ल चोपडा ने अपनी पेंशन राशि‍ से इन मैडि‍लों को खरीदने का प्रस्‍ताव कि‍या हो।  कि‍न्‍तु वायू सेना ने इन्‍हे अपने ही धन से खरदना उपयुक्‍त लगा।
--फ्रांस अप्रेशन के लि‍ये भी सम्‍मानि‍त जम्‍मू
 जम्‍मू मजूमदार का असली नाम  करण कृष्‍ण  मजूमदार था कि‍न्‍तु स्‍क्‍वार्डन लीडर के रूप में जम्‍मू  मजूमदार के रूप में अपने साथि‍यों के बीच ज्‍यादा पहचाने जाते थे।बाद में यही नाम उनके आफीशि‍यल रि‍कार्डों में भी जहां तहां उल्‍लेखि‍त होने लगा।वर्मा आप्रेशन के बाद मजूमदार को फ्रांस आप्रेशन के लि‍ये यूरोप ीोजा गया वहां भी उन्‍होंन ने बाहदुरी से अपने लक्ष्‍यों को पूरा कि‍या और डि‍स्‍टुइंगि‍श फ्लाइग क्रास (डी एफ सी) प्राप्‍त कि‍या ।इस प्रकार जम्‍मू भारतीय वायू सेना के एक मात्र एसे पायलट भी हैं जि‍न्‍होने रायल एयरफोर्स में सेवा करते हुए दो डी एफ सी प्राप्‍त कि‍या हैं। मजूमदार की 17फरवरी 1945 में लायलपुर(अब फैसलाबाद पाकि‍स्‍तान)में उस समय मौत हो गयी जब वह एक एयर आप्रेशन के लि‍ये उडान पर थे और वायूयान दुर्घनाग्रस्‍त  हो गया।उनकी मौत को मि‍त्र राष्‍ट्रों की सेना के शीर्ष अधि‍कारि‍यों ही नहीं इंग्‍लैंड में भी रायल एयरफोर्स को एक बडी क्षति‍ बताया गया था।