--जद यू के यूपी से जुडे बेअसर नेता सबसे बडी बाधा
--सपा नेता रामगोपाल के बयान से विलय विरोधी सुरों को मिला बल
(राम गोपाल:मुझ सा हैवी वेट कोई नहीं) |
लखनऊ: समाजवादी
पार्टी में जनता परिवार का विलय टाले जाने के लिये अवाज बुलंद
होना शुरू हो गया है। वाराणसी,इलहाबाद, लखनऊ मंडलों से समबन्धित नेता ही अब तक
इस मामले में वोल रहे थे किन्तु अब मेरठ मंडल की वह लाबी भी इस मामले में सक्रिय
हो गयेी है जो कि जनता दल यूनाइटिड के नताओं को पसंद नहीं करती और नहीं इसके कुछ
कद्दावर नेताओं को विश्वसनीय ही मानती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार विलय का
उन गैर सपाई नेतओं को
ही अधिक इंतजार हैजो अपनी ताकत न रखने के बावजूद सपा के कधों पर बैठकर ही राज्य सभा और विधान परिषद में घुसने को बेताब हैं।
ही अधिक इंतजार हैजो अपनी ताकत न रखने के बावजूद सपा के कधों पर बैठकर ही राज्य सभा और विधान परिषद में घुसने को बेताब हैं।
फिलहाल विलय विरोधी सपाईयों के लिये सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल
यादव नेतृत्व के निर्णय का केन्द्र बने हुए है।कुछ दिन पूर्व जब उन्होंने कहा
था कि विलय नोट पर दस्ख्त करना सुसाइड नोट पर हस्ताक्षर करना है। वैसे हकीकत यह है कि श्री राम गोपाल के विरोधी
भी अब मानने लगे हैं कि विलय का प्रयोग पहले बिहार में टैस्ट कर लिया
जाये,बाद में रहे अनुभवों का आंकलन कर यू पी में कदम बढाये जायें।
(कुनवा जुड तो गया किन्तु खुरपैंच नहीं हो रहीं बन्द) |
इस विलय को अंजाम तक पहुंचता देखने को सबसे अधिक बेचैनी राजद नेता
लालू प्रसाद यादव को है,जिनकी अपने परंपरागत जनाधार पर पकड अत्यंत कमजोर हो चुकी
है।अगर विलय नहीं होता है तो बिहार की अधी सीटों पर भी राजद के लिये प्रत्याशी
खडे करना एक चुनौती साबित होगा।जेडीयू अब अतिपिछडों का प्यार पाने को बेताब है
जिनका मोहपाश जतिन राम मांझी की सरकार के पतन के बाद से अनायास ही भाजपा की ओर बढ गया है।. जेडीयू के साथ आरजेडी
का भी कहना है कि विलय को लेकर जो भी अड़चने आएंगी उन्हें दूर करने की कोशिश होगी
लेकिन इससे पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है.
जो भी फिलहाल सपा मुखिया मुलायम सिह यादव जनता परिवर के शीर्ष
नेता बन जाने के बावजूद प्रभावी भूमिका में नहीं आ सके हैं। छह पार्टियों ने इस
परिवार के सदस्य के रूप में 15
अप्रैल को विलय का एलान किया था. नयी पार्टी का नाम, चुनाव चिह्न, झंडा तय करने का
काम छह सदस्यों वाली एक समिति को सौंपा गया था किन्तु अब तक दलों के इस समुच्य
को एक पार्टी तो दूर राजनैतिक गठबन्धन तक की पहचान नहीं मिल सकी है।