आगरा। कहते हैं यदि दृढ़ संकल्प मज़बूत हो तो सब कुछ संभव । ऐसी ही कहानी रही है आगरा के हरिकिशन पिप्पल की। बचपन से ही खाए हैं गरीबी के थपेड़े हरिकिशन पिप्पल के पिता उत्तरप्रदेश के आगरा में जूते बनाने की एक छोटी-सी फैक्टरी चलाते थे।वे जातिवादी भेदभाव के भी शिकार रहे थे , लेकिन विपरीत परिस्थितियों व बड़ी-बड़ी चुनौतियों के सामने उन्होंने कभी हार नहीं मानी
तबीयत कुछ इस तरह से बिगड़ी कि पिता काम करने की स्थिति में नहीं रहे, इसीलिए घर-परिवार चलाने की जिम्मेदारी हरिकिशन के कंधों पर आ गयी। घरवालों को बताए बिना वे शाम को साइकिल-रिक्शा चलाने लगे जो उनके मामा के बेटे की थी। कोई उन्हें पहचान न ले इस मकसद से वे अपने चेहरे पर कपड़ा लपेटकर साइकिल-रिक्शा चलाया करते थे। पिता की फैक्ट्री दोबारा शुरु करने के फैसले