सोम ठाकुर आज भी हमारे बीच हैं। उनकी कविताएँ, गीत और मधुर आवाज़ आगरा की गलियों में गूँजती हैं और इस शहर की सांस्कृतिक धड़कन का हिस्सा बनी हुई हैं। उनके शब्द रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रेम, संवेदनशीलता और सौंदर्य का अनुभव कराते हैं। "छोड़ चली घर तेरा बाबुल, ले चली तू अपनी यादें,भइया रे भइया, तुझको क्या हो गया,ये गीत आज भी आगरा की गलियों में गूँजते हैं और हर उम्र के लोगों के दिलों को छूते हैं। गीतकार और कवि सोम ठाकुर आज भी सक्रिय रूप से अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से लोगों तक अपने शब्दों की मिठास पहुँचाते हैं।
सिक्के केवल लेन-देन के साधन नहीं थे। हर सिक्का उस समय के शासक, साम्राज्य और कला की कहानी बताता है। आगरा में पाए गए मुगलकालीन सिक्के आज भी बताते हैं कि व्यापार और शासन किस तरह संचालित होता था। उदाहरण के लिए, अकबर और शाहजहाँ के समय के सिक्कों पर उनके नाम और प्रतीक अंकित होते हैं। इससे पता चलता है कि सिक्कों के माध्यम से शासन और व्यापार दोनों ही नियंत्रित होते थे।
सोम ठाकुर का जन्म 5 मार्च 1934 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ। आगरा की ऐतिहासिक गलियों, यमुना की ठंडी हवाओं और ब्रज की मधुर बोली में पली-बढ़ी प्रतिभाएँ आज भी इस शहर की सांस्कृतिक धड़कन हैं, और उनमें प्रमुख हैं सोम ठाकुर।
गीतों में बसती संवेदनाएँ और उनका काव्यिक जादू
सोम ठाकुर की लेखनी में प्रेम, करुणा, प्रकृति और मानव भावनाओं का सुंदर संगम स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है। उनके गीत और कविताएँ सरल, सीधे और दिल को छू लेने वाली हैं। उनके शब्दों में हमेशा संगीत का प्रवाह रहता है जैसे हर कविता और गीत जीवंत धुन में बदल जाए। यही कारण है कि उनके कविता पाठ और गीत सुनने का अनुभव हर उम्र के लोगों के लिए आज भी उतना ही ताज़ा और मोहक है।
