'गांध और आंबेडकर नाटक का उद्घाटन।फोटो:असलम सलीमी |
आगरा:गांधीजी के मोहम्मद अली जिन्ना से वैचारिक मतभेदों के कारण जहां भारत टूटा और पाकिस्तान बना वहीं डा भीमराव अम्बेडकर के साथ रहे उनके सैद्धान्तिक द्वन्दों की परिणिती स्वरूप भारत को एक ऐसी मजबूत लोकतांत्रित व्यवस्था मिली जो दुनियां में अपने आप में बे मिसाल है। यह जनतांत्रिक व्यवस्था उस संविधान पर आधारित है जिसे कि भरत रत्न डा भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में बडी सूझबूझ के साथ देश की संविधान सभा ने तैयार किया था। संविधान को रचने का गुरुत्व-दायित्व बाबा साहिब को सौंपे जाने महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय को जीवंत किया गया डाअम्बेडकर विश्वविद्यालय के 'जे पी सभागार' में मंगलवार को 'गांधी और आंबेडकर' नाटक मंचित कर। वर्तमान ......
युवा पीढी केअधिकांश सुधी दर्शक पहलीबार रूबरू हुए महात्मा गांधी और डा भीम राव अम्बेडकर के बीच आजादी के पूर्व उस अंर्तद्वन्द से आजाद भारत के सपने के साथ ही उस समाज की कल्पना को साकार करने के लिये चला था जिसमें वर्ण,जाति भेद और कुरितियों की बुराईयों से मुक्त हो।
युवा पीढी केअधिकांश सुधी दर्शक पहलीबार रूबरू हुए महात्मा गांधी और डा भीम राव अम्बेडकर के बीच आजादी के पूर्व उस अंर्तद्वन्द से आजाद भारत के सपने के साथ ही उस समाज की कल्पना को साकार करने के लिये चला था जिसमें वर्ण,जाति भेद और कुरितियों की बुराईयों से मुक्त हो।
डा अम्बेडकर विविआगरा के वी सी डा अरविंद कुमार ने किया |
वर्ग विशेष में सदियों से चले आ रहे दासत्व भाव से छुटकारे को चलायी अपनी मुहिमो के वक्त सामना करना पडा था ।
नाट्य अभिव्यक्ति में भी इस तथ्य को नहीं लाया जा सका कि डा अम्बेडकर और नेहरू जी के बीच ही वस्तविक मतभेद थे, गांधी जी तो एक बीच की ऐसी कडी थे सामाजिक और धार्मिक संरचनाओं केआधार पर देश को और अधिक टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। दोनों के ही अंग्रेजों से बहुत अच्छे संबध थे। नेहरू जहां चाहतेथे कि पहले अंग्रेज भारत से जायें वहीं डा अम्बेडकर को लगता था कि जायें तो जरूर किन्तु जो भावी व्यवस्था हो वह कट्टर हिन्दूवादी उस व्यवस्था की संरक्षक न हो जिसके तहत शूद्र,दलित या हरिजन हाशिये पर ही रखेजाते रहे। नाट्य मंच से अभिव्यक्तियों की व्यापक संभावना रहती हैं,शायद इस पर भी कभी प्रस्तुत नाटक के लेखक राजेश कुमार जी की ही सशक्त कलम चले।मंचन के दर्शकों में मुख्यातिथि के रूप में डा अम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति डा अरविंद कुमार दीक्षित तो गारिमा बढायीरहेथे किन्तु दर्शक वर्ग में की शोभा बढाने वालों श्री करतार सिंह भारतीय एडवोकेट भी शामिल थे । जो शायद अकेले थे जिन्होंने डाक्टर साहब को ने केवल आगरा मेहुईउनकी सभाओं में बोलते सुना बल्कि तत्कालीन आयोजनों की व्यवस्थाओं में एक युवा के रूप में भागीदारी भी की थी।
स्व जयप्रकाश नारायण के नाम पर बने 'जे पी सभागार' का मंच हुई इस सशक्त प्रस्तुति से जो वैचारिक अभिव्यक्तियों का सिलसिला शुरू हुआ है उसे अगे भी चलते रहने की अपेक्षा को डादीक्षित कीइस घोषणा से बल मिलता है कि वह स्वयं भी कुछ स्क्रिप्ट मंचन के लिये देंगे। डा डीबी शर्मा ,डाआनंद टाईटलर , दिलीप रघुवंशी ,पत्रकार का.स्नेही किंथ, डा गिरजा शंकर,ओम प्रकाश पाराशर, कविवर रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी आदि जो भी नट्यविधा की सूझ रखते थे ,ने डाकुलदीप त्यागी(डा भीमराव अम्बेडकर),सुभाष चन्द्र(महात्मागांधी),श्रष्टी गुप्ता(रमाबाई अम्बेडकर-बाबासाहिब कीपत्नी)विराज नायक,स्वपनिल सोलंकी,विपिनकुमार,रिहान खान, रियाज अहमद, खुशी, याशिका अग्रवाल,वैशाली पाराशर आदि सभी कलारों ने मंचन में छोटी से छोटी भूमिका को जीवंत करने का कोयी अवसर नहीं छोडा।
अभिनय थियेटर की इस प्रस्तुति का निर्देशन युवा डायरैक्टर अभिनव पाराशर ने जिस अंदाज में किया उससे उम्मीद हैकि वह वक्त दूर नहीं जबकि वहअपनेआपमें एक खास पहचान बनचुकेंगे। सोनू सोलंकी, इमरान खान,कनिष्ठा पाठक,आशीश कुमार, की मंचीय व्यवस्थाओं में सक्रिय सह भागिता रही।