13 नवंबर 2016

गोल्डन ट्राइंगिल का टूरिस्ट ट्रेड ठप होने के कागार पर

आयकर छापों की चर्चाओं का असर शुरू, बरोजगारी ने पैर पसारा


आगरा, सरकार या उसके किसी विभाग का इकबाल जनता में होना एक अच्छी बात है किन्तु उसकी ताकत के आधार पर जनता को प्रताड़ित  करने या फिर हालातों का दुरोपयोग करने का प्रयास खुद सरकार के लिये गंभीर रूप से शोचनीय है। आयकर छापों के नाम पर आगरा, जयपुर और दिल्ली में चल रहा अफरा--तफरी का दौर भी इसी प्रकार का मामला है। 'गोल्डन ट्राइंगिल' के रूप में प्रख्याात देश के सबसे महत्वपूर्ण इन पर्यटन प्रधान शहरों में पांच सौ और एक हजार के नोटों के अचानक बन्द हो जाने से पर्यटकों के साथ कारोबार करने
वाले प्रतिष्ठानों की व्यवसायी गतविधियों पर जो प्रतिकूल असर पड सकता था वह तो पडा ही किन्तुं दो दिन के अंतराल में आयकर विभाग की गतविधयों संबधी चर्चाओं के कारण कामकाज लगभग ठप सा ही पड गया।
गोल्डन ट्रांइंगिल में थोडा बहुत करोबार स्टार होटल और फॉरेन करैसी स्वीकार करने वाले प्रतिष्ठान जरूर जारी रख सके हैं किन्तुं बजट होटलों और छोटे टूर आपरेटरों का काम पूरी तरह से ठप प्राय: हो चुका है। सबसे ज्यादा परेशान सर्राफा बाजार खास करके जयपुर के 'प्रेशियस स्टोन' कारोबारी हैं। इनकी गद्दियां जो कि पर्यटन सत्र में देशी विदेशी करोबारियों की भीड से आबाद रहती थीं पिछले चार दिन से एक दम सूनी पडी हुई हैं। आयकर विभाग के छापों को लेकर बनी जनधारणा के फलस्वरूप बने हुए हालातों से जल्दी  छुटकारा मिलपाने की कोई संभावना भी फिलहाल अनुमानित नहीं है।
ज्यादातर कारोबारियों का मानना ​​है कि अगर वित्त मंत्रालय के मौजूदा तौर तरीके यही रहते हैं तो हो सकता है कि कुछ समय के लिये अपवंचित धन कर के दायरे में लाया जा सके किन्तु कारोबारी गतविधियां सीमित हो जायेंगी और बडे पैमाने पर बैरोजगारी का बेहद कष्टकारी दौर शुरू हो जायेगा।
आगरा के टूरिस्ट ट्रेड संबधित प्रमुख संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी जो कि अपने नाम से सरकार के वित्तीय सुधार के प्रयासों पर कुछ नहीं बोलना चाहते, का कहना है कि खेती और कारोबार की प्रवृति में अंतर सरकार को समझना चाहिये, खेती एक बार चौपट हो जाये तो भी दुबारा भरपूर फसल मिलने की संभावना बनी रहती हे, बशर्त खेत पर किसान का हक बना रहे किन्तु अगर एक बार कारोबार पटरी से उतर जाये तो फिर उसे दुबारा लाइन पर लाना काफी टेढी खीर होता है। अब जब कि वित्त मंत्रालय की एजैंसियों की पूंजी सर्जन व निवेष करने को लेकर दखलंदाजी कही अधिक बढने जा रही हे तो एक बार पटरी से उतरे हुए कारोबारी का दुबारा लाइन पर आना लगभग न मुमकिन होता है।