24 अगस्त 2016

बृज की वन विरासत के साक्ष्य ‘पीलू’ के प्राचीन पेड

--बृज बौद्धिक विरासत का उदगम स्‍थल है ठकुरानी घाट का 'पाकर' का पेड  

( सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एवं सोशल एक्‍टिविस्‍ट श्री केे सी जैन साधुओं के साथ  कुसुम सरोवर
पर   प्राचीन  पीलू के पेडों की छांव में।)
आगरा: बृज क्षेत्र क्षेत्र तमाम ऐसी विरासतों से भूरपूर रहा है, जिनके साक्ष्यं न केवल गौरवान्विथत करते हैं,बल्‍कि अतीत से भी जोडते हैं।। इनमें ही पीलू के पेड भी शामिल है,जो कि अब लगातार कम होते जा रहे हैं। विलुप्त प्राय वृक्ष प्रजाति '' पीलू '' के अनेक वृक्षों को गोर्वधन परिक्रमा मार्ग पर कुसुम सरोवर के निकट संयोग से अब भी  खडे रह गये हैं।
 सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एवं आगरा के सोशल एक्टि्विस्ट श्री के सी जैन के अनुसार प्रथमदृष्य: ही ये बृक्ष सैकडों साल पुराने लगते हैं.सरोवर के निकट रहने वाले साधुओं ने भी पूछे जाने पर
इन पेडों के पंच सौ साल से ज्यादा पुराना होने की पुष्टि की है।
श्री जैन जो कि विरासत संरक्षण के कार्यों में दलचस्पीे रखते हैं का कहना है कि करोड़ों व्यक्ति जो कि प्रतिवर्ष गोर्वधन की परिक्रमा करते हैं लेकिन कदाचित पीलू वृक्ष की विरासत से अनभिज्ञ ही रहते हैं.काश उनकी इनके महत्वा को जानने में दिलचस्पी उत्पदन्न की जा सके। उल्लेखनीय है कि 8-10 पुराने पीलू के वृक्ष गोबर्धन परिकृम्मा मार्ग के दोनों ओर स्थित हैं।
वैसे बृज मंडल का बौद्धिक विरासत के रूप में मान्य सबसे पुराना बृक्ष गोकुल का ठकुरानी घाट स्थित 'पाकर' का वह जीर्णशीर्ण स्‍थििति में पहुंच चुका पेड है जिसके नीचे बैठ कर कभी चौरासी वैष्णोवों की वार्ता हुई थींं।.ये वार्तायें ही महाप्रभु बल्लणभाचार्य काल का लौकिक कल्पतनाओं पर आधारित वह अध्यात्मिमक -सामाजिक सहित्य है जो कि बृज संस्कृति के असधार भूत स्त्रोतों में शामिल है। वैसे इससे भी महत्व पूर्ण पेड आगरा के अछनेरा विकास खंड का मांगरौल गूजर गांव में खडा एक वट बृक्ष है। बताया जाता है, कि ब्यास जी की मां मत्स्यगंधा (सत्यवती) यही की थीं और इसी स्थान पर व्‍यास जी का जन्म  हुआ था.गांव में ब्याास पीठ और मत्सय गंधा के मन्दिर मंदिर अब भी बने हुए हैं। ब्यास पीठ के पास खडा बट बृक्ष अपने विशालतम रूप में है, इसकी क्लोनिंग फारैस्ट रिसर्च इंस्टीरटयूट ( F.R.I.) से करवाने का प्रयास भी एक बार किया जा चुका है।