16 दिसंबर 2015

बडी आटो मोबाइल कंपनियों के एजेंट से बन गये है राजनैतिक दल

--रिसेल मार्केट को हतोत्‍साहित कर शोरूम में खडी ब्राडेड कारों को बनायी जा रही है जगह

आगरा: दिल्‍ली और एन सी आर के लिये दिये जाने वाले आदेशो और सक्षम प्राधिकारियों के द्वारा
(वहनों के रीसेल मार्केट कानूनी रूप से रोकर
 करनई कारो की खरीद को मिलेगा प्रोत्‍साहन।
)
लिये जाने वाले निर्णयों का सीधा असर जिन जिलों पर पडता है उनमें आगरा,बुंदशहर और आगरा शामिल हैं। इनमें से बुलंद शहर और मथुरा तो लगभग पिच्‍चहत्‍तर प्रतिशत नेशनल कैपीटल जोन में आ चुके है1फलस्‍वरूप आगरा ही अब ऐसा जनपद बचा है जिसपर नेशनल कैपीटल जोन के फैसलों का तो सीधा असर पडेगा किन्‍तु एन सी आर के तहत आने वाले जनपदो को मिलने वाले लाभों का नहीं मिलपाता है। दिल्‍ली में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर वाहनों पर लगाये जाने वाले प्रतिबंधों का सीधा असर आगरा के ट्रांसपोर्ट वाहनों के कारोबार पर पडेगा। कितना पडेगा यह तो समय ही बतायेगा किन्‍तु कई छोटी कंपनियां या स्‍वरोजगार
सरीखे छोटे कारोबारी भारी आर्थिक संकट में फंसने वाले हैं।

न्‍यायालय ने तो प्रभावितों के हित का मामला अपने समक्ष पेश न होने से उनके परिप्रेक्ष्‍य में कोई उल्‍लेख फैसले में किया है किन्‍तु दिल्‍ली,हरियाणा और उत्‍तर प्रदेश सरकार भी इस मामले में खामोश है।
जो लोग सडक मार्ग से दिल्‍ली आते जाते रहते हैं उन्‍हे यमुना एक्‍सप्रेस वे और कोसी –फरीदाबाद होकर आने जाने वाले वाहनों की स्‍थिति का अंदाज होगा। सबसे पहले तो समस्‍या यह है कि कामर्शियल आप्रेटर दस साल में वाहन लागत का दाम निकाल नहीं सकते हैं इस लिये इस रुट पर रोड ट्रांसपोर्ट का धंधा घाटे का हो जाना है।जो भी आदेशजारी होगा उससे यू पी रोडबेज तो सबसे पहले प्रभावित होगी जिसके ज्‍यादातर वाहन आदेश के प्रभावी होते ही सडक से बाहर हो जायेंगे।नान कामर्शियल वाहनों का संचालन भी घाटे का ही होगा। 11प्रतिशत ब्‍याज दर वाली ई एम आई पर वाहन खरीदने की हिम्‍मत केवल ऊपरी कमाई वाला ही दिखा सकेगा।
भारतीय मानकों के बारे में पुनर्विचार हो
एक यक्ष प्रश्‍न जो कि शायद हर व्‍यक्‍ति केन्‍द्र सरकार से जानना चाहता है कि  भारतीय मानक ब्‍योरों ( Indian Standards Act, 1986 and Rules and Regulations) से उसने इस प्रकार के मानक तैयार करने को क्‍यो नहीं कहा जिससे खरीदे गये वाहन कम से कम बीस साल तक उपयोग आते रह सकें।भारत में आटो मोबाइल इंडस्‍ट्रीज के लिये प्रचलित मानक एक प्रकार से वाहन बिक्री करने वालों, कर्ज देने वालों के हक के ही है उस आम उपभोक्‍ता को तेा एक प्रकार से पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया गया हे जिसके पैसे से ही पूरी इंडस्‍ट्री चल रही है।
प्रदूषण तो केवल इंजन बदलकर भी कम हो सकता है
एक अन्‍य ध्‍यान देने योग्‍य तथ्‍य यह है कि वायू प्रदूषण फैलाने में वाहन का इंजन ही मुख्‍य रोल अदा करता है। इसको सहजता के साथ बदला जा सकताहै फिर वाहन जनित प्रदूषण को आधार बनाकर पूरा नया वाहन खरीदने की अनिवार्यता की भूमिका क्‍यो नहीं तैयार की जा रही है। अगर नेकनियति से बात की जाये तो जब न्‍यायलय में विचाराधीन होने के बावजूद नेशनल हैरल्‍ड के मामले में संसद में बहस हो सकती तो फिर वाहनों की सडक पर रहने की अवधि सहित उनकी गुणत्‍ता के प्रचलित उन मानको की उपयोगिता को लेकर क्‍यो नहीं जिनके आधार पर उत्‍पादित वहन भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के जरा भी अनुकल नहीं हैं।

लगता है कि देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टियां बडी आटो मोबाइल कंपनियों की एजेंट बन कर रह गयी हैं ।जिनकी स्‍ट्रेटजी पुराने वहनों को एक न एक कारण से सडक से बाहर कर अपने खरीदारों की संख्‍या में बढोत्‍तरी करते रहनाहै।जबकि हकीकत यह है कि भारतमें रिकंडीशंड वाहनों का एक बडा बाजार है जो कि औसत आय वाले भारतीय परिवारों को भी कार रखने या रोड ट्रांसपोर्ट का धधा कम पैसो में ही शुरू करने की इजाजत देता है।