-- मिट्टी के घोंसलों के बाद पखेरुओं को अब मिनी पौंड भी
(पक्षियों की ग्रीष्म कालीन जरूरत को पूरा करने के लिये र श्री प्रदीप खंडेलवाल करवा रहे हैं 'मिनी पैंड ' की व्यवस्था।) |
(मिट्टी के घोंसले कोयल को भी आने लगे हैं पसंद) |
व्यवस्था थी।बजीरपुररा होकर नहरी गूल से पानी यहां तक पहुंचता था। अब ट्यूब वैल से पौंडिग होती है।बिजली कनैक्श न कटा होने पर इसमें भी मुश्किटल आ जाती है। हाल में जब झील सूख गयी थी तब यहांरहने वाली बत्तशखों को सुरक्षित रखने को एक रैस्यूे सेंटर को भेजना पडा था।मार्निंग वाकर एवं समाज सेवी के सी जैन की इसमें सक्रिय भूमिका ही थी।
ईको
क्लवब बागवानी के अध्य क्ष प्रदीप खंडेलवाल का कहना है कि नागरिकों के छोटे छोट
प्रयासों से ही पार्क अब पहले की अपेक्षा अधिक जीवंत हो गया है।पक्षियों की
जरूरत को पूरा करने के लिये यहां अधिक अनुकूल स्थिधतियां उत्पन्नर की जा रही
है।बाथ टब को पक्षियों की जरूरत पूरी करने वाले पौंड के रूप में उपलब्धथ करवा दिया
गया है।सामाजिक संस्थाक ‘लोकस्वंर’ के श्री
राजीव गुप्ता मिट्टी के कई घोंसले पार्क
के पेडों पर लगवा चुके हैं। कुछ और भी लगवाने को तैयार है।मूल रूप से ‘गौरय्या’
प्रेमी श्री गुप्ताै के घोंसलों को गौरय्याओं ने तो पंसद किया ही है
किन्तुप कोयल सरीखे अतिसंवेदनशल पक्षियों के जोडों के द्वारा भी इनका उपयोग ब
तब आशियाने के रूप में होते देखा गया है।
जो भी हो आने वाले वक्तम मे पार्क की भूतलीय
बनावट और हिरयाली के परिप्रेक्ष्यक में वाइल्ड रनेस बचे या नहीं किन्तु पक्षियों
की स्वटच्छंनदता जरूर संरक्षित रहेगी। ईको क्ल ब पालीवाल पार्क के श्री अनिल
शर्मा का कहना है कि वाइल्ड रनेस और नेचुरल लैंड स्कैयपिग कंसैप्टक पर इंग्लिसश
हार्टीकल्चंरिस्टक मि ग्रीसन के द्वारा किये गये कार्य को समझना चाहिये ।जो
पार्क की मौलिकता है।सिटी पार्क के रूप में विकसित यह पार्क तमाम दखलो और
उपेक्षाओं के बावजूद उत्तर प्रदेश के सबसे बढिया माने जा सकने वाले सिटी
फारैस्टों में दूसरे या तीसरे नमबर पर
माना जाता है।