30 मई 2015

'जाम के झाम में अकबर' की भीडभाड पूर्ण प्रस्तुति‍

--‘अकबराबाद’ के ‘आगरा’ हो जाने के बाद भी अकबर जनमानस में सहज स्‍वीकार्य

(जाम के झाम में अकबर की एक प्रस्‍तुति‍ में रंगकर्मी योगेन्‍द्र दुबे
अपने सहकलाकार के साथ।)
आगरा:ट्रैफि‍क जाम की स्‍थि‍ति‍ से जूझते महानगर वासि‍यों को वस्‍तु स्‍थि‍ति‍ से अवगत करवाने और उनकी इस समस्‍या को कम करने में हो सकती भूमि‍का का अहसास करवाने का काम सांस्‍कृति‍क क्षेत्र की प्रमुख संस्‍था रंगलीला कर रही है। महानगर के प्रमुख पार्कों और कालोनि‍यों के मुख्‍य स्‍थानों पर इस समस्‍या को समर्पि‍त नुक्‍कड नाटक ‘जाम के झाम में अकबर’प्रस्‍तुत कि‍या जा रहा है।रवि‍वार को यह नाटक पालीवाल पार्क के सेट्रल पार्क में हुआ। काफी संख्‍या में लोगों के द्वारा इसे देखा गया गया। दर्शकों में स्‍कूली छात्रों के अलावा मदरसों के छात्र भी काफी संख्‍या में शमि‍ल थे।
 नाटक के नि‍देशक श्री अनि‍ल शुक्‍ला ने कहा कि‍ आगरा अब अकबराबाद तो नहीं रहा कि‍न्‍तु इसके बावजूद मुगल सम्राट अकबर केवल इति‍हास की कि‍ताबों तक ही सीमि‍त नहीं है,आगरा की गंगा जमुनी संस्‍कृति‍ में सबसे सहज ग्राहृय ऐसा पात्र है जि‍ससे समाज का हर वर्ग अपने को जुडा मानने को तैयार है।बस जनमानसि‍कता की इसी स्‍थि‍ति‍ के के कारण आगरा की ट्रैफिक जाम समस्‍या को कम करने में  जनता की हो सकने वाली भूमि‍का को प्रचारि‍त करने उसी को माध्‍यम बनाया है।

अब तक सभी प्रस्‍तुति‍यां भीड के जुटने की दृष्‍ट से अतयंत कामयाब रही है। अब तो लाग खुद भी रंगलीला के दल को नाट्य प्रस्‍तुति‍ के लि‍ये आमंत्रि‍त कर रहे हैं।